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सांस रोगियों के स्टेम सेल ट्रीटमेंट में अब मोटापा नहीं बनेगा वजह, जाम‍िया ने 12 साल के शोध में खोजी नई थेरेपी

Study: जामिया मिल्ल‍िया इस्लामिया ने 12 साल की स्टडी में एक ऐसी थेरेपी खोज निकाली है जो श्वसन संबंधी रोगों में ओबेसिटी से ग्रसित मरीजों की मदद करेगी. यह स्टडी कैसे आम लोगों के हित की है, यहां इस लेख के जरिये समझ‍िए.

प्रतीकात्मक फोटो (Getty) प्रतीकात्मक फोटो (Getty)
मानसी मिश्रा
  • नई दिल्ली ,
  • 19 मई 2023,
  • अपडेटेड 2:20 PM IST

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मल्टीडिसिप्लिनरी सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च एंड स्टडीज (MCARS) के शोधकर्ताओं ने फेंफड़ों के इलाज के लिए नई थेरेपी खोज निकाली है. इस खोज को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाश‍ित किया जा चुका है. अगले साल इस पर क्ल‍िनिकल ट्रायल भी शुरू हो जाएंगे. 12 साल से इस शोध में लगे MCARS के डॉ तनवीर अहमद ने इसे आम भाषा में समझाया. 

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मोटापा कैसे है समस्या  
डॉ तनवीर अहमद ने बताया कि एलर्जिक रेस्पिरेटरी इंफ्लेमेशन एक ऐसी समस्या है जिससे हमारे फेंफड़े बीमार हो जाते हैं. इसी तरह अस्थमा, सीओपीडी और ब्रोंकाइट‍िस जैसे रोग भी हैं जो मरीजों के लिए बहुत कष्टप्रद होते हैं. इन रोगों के इलाज में आज स्टेम सेल ट्रीटमेंट एक वरदान की तरह है. लेकिन हमने रिसर्च में पाया कि ओबेस‍िटी यानी मोटापे से ग्रसित लोगों में स्टेम सेल ट्रीटमेंट कारगर नहीं होता था. क्रॉनिक लंग डिजीज, अस्थमा में होने वाले स्टेम सेल ट्रीटमेंट में मोटे लोगों में सेल फंक्शनल नहीं होते, इसके कारण उनमें फेंफड़े के ऊतक फिर से रिपेयर नहीं हो पाते. 

12 साल की स्टडी कैसे बनी वरदान
MCARS ने 12 साल के इस शोध में फेफड़ों की बीमारियों के इलाज के लिए थेराप्यूटिक स्टेम सेल विकसित किए हैं. डॉ तनवीर अहमद की लीडरश‍िप में हुए इस शोध में शोधकर्ताओं ने पाया कि स्वस्थ व्यक्तियों में स्टेम सेल्स को फेफड़ों के रोगों के इलाज के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है. लेकिन ओबीज में ऊर्जा पैदा करने वाले ऑर्गेनेल माइटोकॉन्ड्रिया में कार्डियोलिपिन नाम की सामग्री में कमी के कारण उनकी स्टेम सेल्स निष्क्रिय हो जाती हैं और खराब मेटाबोलिज्म  फिटनेस प्रदर्शित करती हैं. 

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जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मल्टीडिसिप्लिनरी सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च एंड स्टडीज (MCARS) ने किया शोध

इस समस्या को हल करने के लिए रिसचर्स की टीम ने पायरोलो क्विनोलिन क्विनोन (PQQ) नाम के मॉलिक्यूल की पहचान की जो मोटे लोगों में होने वाले इस प्रभाव को पूरा उलट सकता है. यह मॉलिक्यूल इन स्टेम सेल्स की मेटॉबोलिज्सम प्रोसेस को रीस्टोर कर सकता है. इसे इस तरह समझ‍िए कि शोध के दौरान रिसचर्स ने 50 सैंपल कलेक्ट किए, फिर उसके कल्चर में PQQ मॉलिक्यूल मिला देने से आश्चर्यजनक रिजल्ट मिला. मोटे लोगों में स्टेम सेल का रिजेनरेशन हो रहा था, वो रिस्टोर होते हैं. इस तरह रिसर्चर्स ने ये थेरेपी ईजाद की. 

शोधकर्ताओं ने इन स्टेम सेल को प्री-क्लिनिकल मॉडल में पेश किया. इससे सामने आया कि मोटे रोगियों या जानवरों से प्राप्त PQQ-मॉड्यूलेटेड स्टेम सेल ने क्रोनिक एलर्जी वायुमार्ग की सूजन जैसे श्वसन रोगों को कम करने में बेहतर रिजल्ट दिया. ये शोध CSIR-IGIB में डॉ. सौम्या सिन्हा रॉय के ग्रुप के साथ मिलकर किया गया था और इसका मूल विचार CSIR-IGIB में डॉ. अनुराग अग्रवाल की प्रयोगशाला में तैयार किया गया. 

कैसे अलग और खास है ये स्टडी 
ये अध्ययन हाल ही में नेचर पब्लिशिंग ग्रुप के पीयर-रिव्यूड जर्नल "सेल डेथ एंड डिजीज" में प्रकाशित भी हुआ है. इसमें क्लिनिकल और मॉलिक्यूलर स्तर पर पहली बार ये सबूत दिए गए हैं कि कि कैसे मोटापा मेसेंकाईमल स्टेम सेल के चिकित्सीय कार्य में गिरावट करता है. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि उनके निष्कर्ष विभिन्न मेटाबॉलिज्म और मोटापे से संबंधित बीमारियों के इलाज में मदद करेंगे. इस पूरी टीम में डॉ. शक्ति सागर (पेपर के पहले लेखक,CSIR-IGIB), गौरव खरिया (बीएमटी हेड, अपोलो अस्पताल) भी शामिल थे. 

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