
एक ऐसा नाम जो पैड़-पोधों के लिए भगवान साबित हुआ. उत्तराखंड के लाता गांव में जन्मीं गौरा देवी ने आज ही के दिन 26 मार्च 1974 में पेड़ों से चिपकर उन्हें बचाने का अभियान शुरू किया था. जिसे 'चिपको आंदोलन' का नाम दिया गया.
आइए जानते है उनके बारें में:-
1. गौरा देवी को पेड़ों से बेहद लगाव था, इसलिए उन्होंने पेड़ों को कटने से बचाने के लिए जिला चमोली के रैंणी गांव में जंगलों के प्रति अपने साथ की महिलाओं को जागरूक किया.
2.वह कभी स्कूल नहीं गई लेकिन उन्हें प्राचीन वेद ,पुराण ,रामायण, भगवतगीता ,महाभारत तथा ऋषि - मुनियों की सारी जानकारी थी.
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3. अपनी हिम्मत के दम पर उत्तराखंड के रेनी गांव की 'महिला मंगल दल' की अगुवा थीं.
4. 22 साल की उम्र में वह विधवा हो गई थी. जिसके बाद उन्होंने विडम्बनाओं के साथ जीवन जीना पड़ा.
5. गौरा देवी की इस पहल से प्रेरित होकर देश भर में इस तरह के आंदोलन शुरू हुए.
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6. पर्यावरण कार्यकर्ता सुंदरलाल बहुगुणा और कवि धनश्याम रातुड़ी चिपको आंदोलन से जुड़े दूसरे जाने-मानें नाम हैं.