जनरल डायर से जलियांवाला बाग का बदला कुछ इस तरह लिया ऊधम सिंह ने...

आज ही के दिन साल 1940 में भारतीय क्रांतिकारी ऊधम सिंह ने अंग्रेजों से जलियांवाला बाग का बदला लेने के लिए जनरल डायर के साथ लंदन में कुछ ऐसा किया था...

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ऊधम सिंह ऊधम सिंह

जालियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में आपने सुना होगा. इतिहास के सबसे कठोर और भयानक पन्ने में से एक जालियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में सोचने भर से ही रूह कांप जाती है.

वैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के नजदीक जलियांवाला बाग में रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी. अंग्रेजों को यह बात पसंद नहीं आई और अंग्रेजों के एक अफसर जनरल माइकल ओ डायर ने वहां एकत्रित सभी लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलवानी शुरू कर दीं. इस हादसे में हजार से ज्यादा लोग और बच्चे भी मारे गए. 2000 से ज्यादा जख्मी हुए. सैकड़ों महिलाओं, बूढ़ों और बच्चों ने जान बचाने के लिए कुएं में छलांग लगा दी.

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अंग्रेजों का मानना था कि हिंसा के जरिये वो भारतीयों को डराकर उनकी आवाज दबा देंगे. लेकिन इसके विपरीत हुआ. इस घटना ने आजादी की आग को और हवा दे दी.

बचपन में ही मां बाप को खो चुके ऊधम सिंह की परवरिश अनाथालय में हुई थी. इस घटना ने उनके मन में भी गुस्सा भर दिया. पढ़ाई लिखाई के बीच ही वह आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. जनरल डायर को मारना उनका खास मकसद बन गया.

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बदला पूरा करने के लिए साल 1934 में ऊधम सिंह लंदन जाकर रहने लगे. 13 मार्च 1940 को 'रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी' की लंदन के 'कॉक्सटन हॉल' में बैठक थी. इस बैठक में डायर को भी शामिल होना था. ऊधम भी वहां पहुंच गए. जैसे ही डायर भाषण के बाद अपनी कुर्सी की तरफ बढ़ा किताब में छुपी रिवॉल्वर निकालकर ऊधम सिंह ने उसपर गोलियां बरसा दीं. डायर की मौके पर ही मौत हो गई. ऊधम सिंह को पकड़ लिया गया और मुकदमा चला. 31 जुलाई 1940 को उन्हें फांसी दे दी गई.

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