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संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सर्विसेज परीक्षा में सीसैट (CSAT) का मुद्दा एक बार फिर उठ गया है और यूपीएससी उम्मीदवार सड़कों पर हैं. इस बार उम्मीदवारों की मांग की है कि उन्हें परीक्षा में एक-दो अटेंप्ट और दिए जाने चाहिए. क्योंकि सीसैट की वजह से उनके 4 साल खराब हुए हैं. अपनी मांग को लेकर छात्रों ने बुधवार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी मुलाकात की. केजरीवाल ने साथ देने का भरोसा दिया है.
पिछले हफ्ते से प्रदर्शन कर रहे उम्मीदवारों ने नए साल की पहली रात भी अपनी मांगों को लेकर मुखर्जी नगर में प्रदर्शन किया था. प्रदर्शन कर रहे छात्रों का आरोप है कि पुलिस ने उनके साथ बदतमीजी की और प्रदर्शनकारियों पर ठंडा पानी फेंका गया. कई छात्रों को हिरासत में भी लिया गया. हालांकि उम्मीदवार मांगे माने जाने तक प्रदर्शन जारी रखने की बात कह रहे हैं.
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क्या है पूरा मामला?
यूपीएससी उम्मीदवार और सीसैट मामले में कई सालों से संघर्षरत सौमिक जाना ने आजतक डॉट इन को बताया कि यूपीएससी सिविल सर्विसेज में साल 2011 में एक पेपर शुरू किया गया था, जिसे सीसैट नाम दिया गया था. ये पेपर 2014 तक मेरिट में काउंट होता था. यानी इसमें प्राप्त अंकों को मेरिट में भी शामिल किया गया था. यह 200 नंबर का पेपर था.
दरअसल, उस दौरान ही एग्जाम पैटर्न में हुए बदलाव पर बनाई गई 'निगवेकर कमेटी' ने भी कहा था कि इस पेपर का फायदा अंग्रेजी और विज्ञान उम्मीदवारों को होगा. अन्य उम्मीदवारों को इससे दिक्कत होगी. हालांकि 2015 में इस पेपर को मेरिट काउंट से हटा दिया गया और उसके इसे क्वालीफाइंग पेपर घोषित कर दिया गया. इसका मतलब है कि इसमें उम्मीदवारों को सिर्फ पास होना आवश्यक है. इसके नंबर मेरिट में शामिल नहीं किए जाएंगे.
छात्रों की क्या है मांग?
अब छात्रों की मांग की है कि अगर इस पेपर को अब क्वालीफाइंग कर दिया गया है तो 2011 से 2014 के उम्मीदवारों के अटेंप्ट खराब गए. हमारा करियर भी प्रभावित हुआ. 4 साल तक यह जरूरी रहा और फिर क्वालीफाइंग कर दिया गया. छात्रों की मांग है कि हमें एक बार फिर से मौका दिया जाए. हमें ख़ास रियायत या कोई नौकरी नहीं चाहिए... बस एक एडमिट कार्ड चाहिए.
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200 सांसदों का समर्थन
बता दें कि इस मुद्दे को संसद में भी उठाया गया है. मौजूदा संसद सत्र में भी भतृहरि महताब ने यूपीएससी की परीक्षा में सीसैट की व्यवस्था से प्रभावित अभ्यर्थियों का मुद्दा लोकसभा में उठाया और कहा कि सरकार को इन अभ्यर्थियों को अतिरिक्त अवसर प्रदान करना चाहिए. उन्होंने कहा, '2011 से 2014 के बीच यूपीएससी परीक्षा में सीसैट रहने की वजह से हिंदी भाषी और दूसरे स्थानीय भाषाओं से जुड़े अभ्यर्थियों को नुकसान का सामना करना पड़ा. उन्होंने कहा कि सरकार को इन अभ्यर्थियों को अतिरिक्त अवसर मुहैया कराना चाहिए ताकि इनके साथ न्याय हो सके.'
सौमिक का कहना है कि इस मामले में आरजेडी, बीएसपी, डीएमके, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, शिवसेना जैसी पार्टियों का साथ मिला है. हमारे पास 200 सांसदों के हस्ताक्षर हैं. इसमें बीजेपी के भी 50 सांसद शामिल हैं. बीजेपी नेताओं में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महेंद्रनाथ पांडे का नाम भी शामिल है. "इस मुद्दे हमें कई बार आश्वासन दिया गया, लेकिन आज तक कोई फैसला नहीं हुआ."
बता दें कि इससे पहले साल 1979 और 1992 में भी यूपीएसी सिविल सर्विसेज परीक्षा को लेकर बदलाव हुए थे और प्री का पेपर लागू किया गया था.