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कौन थे जाट राजा सूरजमल? जिनके जिक्र पर 'पानीपत' फिल्म का हो रहा विरोध

मराठों के साथ मिलकर मुगलों को धूल चटाने वाले इस राजा को लेकर ही फिल्म पानीपत का हरियाणा-राजस्थान में विरोध हो रहा है. कहा जा रहा है ये फिल्म राजा सूरजमल के जीवन से ही प्रेरित है. आइए जानें- इस राजा से जुड़े ये तथ्य.

प्रतीकात्मक फोटो (Social Media) प्रतीकात्मक फोटो (Social Media)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 2:41 PM IST

राजपूत राजाओं के बीच अकेले जिस जाट महाराजा को इतिहास वीरों में गिनता रहा है, वो हैं जाट राजा सूरजमल. स्वतंत्र हिन्दू राज्य बनाने का सपना देखने वाला ये राजा कभी मुगलों के सामने नहीं झुका. मराठों के साथ मिलकर मुगलों को धूल चटाने वाले इस राजा को लेकर ही फिल्म पानीपत का हरियाणा-राजस्थान में विरोध हो रहा है. कहा जा रहा है ये फिल्म राजा सूरजमल के जीवन से ही प्रेरित है. आइए जानें- इस राजा से जुड़े ये तथ्य.

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महाराजा सूरजमल का जन्म औरंगजेब की मौत वाले दिन 13 फरवरी 1707 को हुआ. उनके पिता राजा बदनसिंह ने उनका पालन पोषण किया. राजा सूरजमल को ही भरतपुर रियासत की नींव रखने का श्रेय जाता है. जो आज राजस्थान के भरतपुर शहर के नाम से जाना जाता है. साल 1733 में भरतपुर रियासत की स्थापना की थी.

फिरोजशाह कोटला तक फहराया झंडा

साल 1753 तक महाराजा सूरजमल ने दिल्ली और फिरोजशाह कोटला तक अपना राजपाठ बढ़ा लिया था. इस बात से खफा दिल्ली के नवाब गाजीउद्दीन ने सूरजमल के खिलाफ मराठा सरदारों को भड़काया और मराठों ने भरतपुर पर चढ़ाई कर दी. उन्होंने कई महीनों तक कुम्हेर के किले को घेरे रखा. बताते हैं कि आक्रमण के बावजूद मराठा भरतपुर पर कब्जा नहीं जमा सके. उल्टा हमले में मराठा सरदार मल्हारराव के बेटे खांडेराव होल्कर की मौत हो गई. लेकिन इतिहास इस बात का भी गवाह है कि मराठों ने सूरजमल से संधि कर ली थी.

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बनवाया ये किला

बता दें कि सूरजमल ने ही भरतपुर में अभेद्य लोहागढ़ किला बनवाया जिसे 13 बार आक्रमण करके भी अंग्रेज हिला तक नहीं सके. मिट्टी के बने इस किले की दीवारें इतनी मोटी बनाई गई थीं कि तोप के मोटे-मोटे गोले भी इन्हें कभी पार नहीं कर पाए. यह देश का एकमात्र किला है, जो हमेशा अभेद्य रहा. इस राजा के कारण ही उस दौरान जाट शक्ति चरम पर रही.

पानीपत से ये संबंध

इतिहास के मुताबिक पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों का संघर्ष अहमदशाह अब्दाली से हुआ. इस युद्ध में हजारों मराठा योद्धा मारे गए. मराठों के पास रसद सामग्री भी खत्म हो चुकी थी. मराठों के सम्बंध अगर सूरजमल से खराब न हुए होते, तो इस युद्ध में उनकी यह हालत न होती. इसके बावजूद सूरजमल ने अपनी इंसानियत का परिचय देते हुए घायल मराठा सैनिकों के लिए चिकित्सा और खाने-पीने का प्रबन्ध किया. महाराजा सूरजमल 25 दिसम्बर 1763 को नवाब नजीबुद्दौला के साथ हिंडन नदी के तट पर लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए.

इसलिए हो रहा विरोध

फिल्म पानीपत में महाराजा सूरजमल के चरित्र को गलत तरीके से दिखाए जाने का आरोप लग रहा है. इसे लेकर राजस्थान में विरोध हो रहा है. इतिहासकार तर्क दे रहे हैं कि सूरजमल ने मराठा सेना के साथ आई महिलाओं और बच्चों को सुरक्षित स्थान ग्वालियर, डीग और कुम्हेर के किले में रखने का सुझाव दिया था. लेकिन, उनके परामर्श को नहीं माना गया और उपेक्षा की गई, इस पर वे अलग हो गए. वहीं महाराजा सूरजमल की 14 पीढ़ी के वंशज पर्यटन मंत्री विश्वेंद्रसिंह ने भी फिल्म पर बैन लगाने की मांग की है. उनका कहना है कि पेशवा और मराठा जब पानीपत युद्ध में घायल होकर लौट रहे थे तो महाराजा सूरजमल और महारानी किशोरी ने 6 माह तक मराठा सेना और पेशवाओं को पनाह दी थी.

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