
असम विधानसभा चुनाव में बीजेपी एक बार फिर एकतरफा जीत दर्ज करती नजर आ रही है. इंडिया टुडे-एक्सिस-माय-इंडिया के एग्जिट पोल के मुताबिक असम में बीजेपी गठबंधन पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी कर रहा है जबकि कांग्रेस गठबंधन एक बार फिर अपने पुराने आंकड़े पर सिमटता दिख रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा और 5 साल में हुए विकास कार्य बीजेपी की वापसी का अहम कारण बने जबकि विपक्ष के पास सीएम का मजबूत चेहरा न होना कांग्रेस गठबंधन के अरमानों पर पानी फेर गया.
इंडिया टुडे-एक्सिस-माय-इंडिया के एग्जिट पोल के मुताबिक, असम विधानसभा चुनाव की कुल 126 सीटों में से बीजेपी गठबंधन सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर रहा है. बीजेपी गठबंधन को 75 से 85 सीटें मिलने का अनुमान है, जिसमें बीजेपी को 61-65 सीटें मिल सकती हैं. इसके अलावा एजीपी को 9-13 सीटें जबकि यूपीपीएल को 5-7 सीटें मिलने की संभावना है.
वहीं, असम में कांग्रेस गठबंधन को 40 से 50 सीटें मिलती दिख रही हैं, जिसमें कांग्रेस को पिछली बार की तरह 24-30 सीटें मिलने की संभावना है. वहीं, एआईयूडीएफ को 13-16 सीटें जबकि बीपीएफ को 3-4 सीटें मिलती नजर आ रही हैं. इसके अलावा अन्य को 1 से 4 सीट मिलती दिख रही हैं.
2016 में भी ऐसे ही थे नतीजे
बता दें कि पिछले 2016 के विधानसभा चुनाव में नतीजे कुछ ऐसे ही थे. बीजेपी को 60 और उसकी सहयोगी असम गण परिषद को 14 और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट को 12 सीटें मिली थीं. वहीं, कांग्रेस को 26, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट को 13, और निर्दलीय को एक सीट पर जीत मिली थी. इस बार के चुनाव में नतीजे ऐसे ही आते नजर आ रहे हैं. ये हाल तब है जब सीएए के खिलाफ असम में लोगों का जबरदस्त गुस्सा था. इसके अलावा चाय बागानों की मजदूरों की दिहाड़ी को कांग्रेस ने सबसे बड़ा मुद्दा बनाया था. इसके बावजूद असम में बीजेपी दोबारा से सत्ता में वापसी करती दिख रही है.
बराक घाटी, निचले असम, बोडोलैंड और ऊपरी असम से ज़्यादा फायदा हुआ. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक अनुमान लगा रहे थे कि लोग सरकार के खिलाफ वोट देने निकले थे. कांग्रेस मजबूत गठबंधन बनाने के बावजूद 50 सीटों को पार करने के लिए संघर्ष करती नजर आ रही है. बराक घाटी और निचले असम के मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों में कांग्रेस गठबंधन अच्छा काम कर रहा है. इन दोनों क्षेत्रों में कुल 49 सीटों में से बीजेपी गठबंधन के 20 सीटों के मुकाबले कांग्रेस गठबंधन को 28 सीटें मिलने की संभावना है.
बीजेपी असम के ऊपरी, मध्य और उत्तर क्षेत्र में अपनी राजनीतिक पकड़ को मजबूत बनाए रखने में कामयाब दिख रही है. इन तीन क्षेत्रों में कुल 77 सीटों में से एनडीए को 58 सीटों पर जीत मिलती दिख रही है. एक तरह से असम के ऊपरी हिस्से में बीजेपी का जीतना यह बता रहा है कि सीएए का कोई सियासी असर नहीं दिख रहा है.
इंडिया टुडे ग्रुप के कंसल्टिंग एडिटर प्रभु चावला ने कहा कि एग्जिट पोल के नतीजे से साफ जाहिर है कि असम के लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे और राज्य में पांच सालों में हुए विकास कार्यों पर बीजेपी को वोट दिया है. कांग्रेस भले ही असम में कई दलों के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी रही हो, लेकिन उनके पास राज्य में न तो कोई चेहरा था और न ही कोई नारा था. इतना ही नहीं, कांग्रेस गठबंधन ने चुनाव अभियान भी बहुत आखिर में शुरू किया, लेकिन तब तक बीजेपी ने काफी बढ़त बना ली थी.
कांग्रेस असम में उम्मीद लगाए हुए थी कि सीएए के खिलाफ हुए आंदोलनों, चाय बागानों के मजदूरों की नाराजगी, बेरोजगारी, महंगाई के मुद्दों के कारण उसे असम में राजनीतिक मदद मिलेगी. इसके अलावा एआईयूडीएफ और बीपीएफ जैसे अहम दलों के साथ आने के कारण भी कांग्रेस सत्ता में अपनी वापसी की उम्मीद कर रही थी, लेकिन एग्जिट पोल के नतीजे से कांग्रेस की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया है. कांग्रेस यह मानकर चल रही थी कि मुस्लिम वोट एकमुश्त मिलेंगे, लेकिन बीजेपी के ध्रुवीकरण के आगे सारे समीकरण फेल हो गए हैं.
इंडिया टुडे-एक्सिस-माय-इंडिया के एग्जिट पोल के मुताबिक असम के 69 फीसदी लोग मानते हैं कि बीजेपी ने अच्छा काम किया है जबकि 6 फीसदी लोग मानते हैं कि राज्य में सीएए नहीं लागू किया जाए. इसके अलावा 19 फीसदी लोगों ने राज्य के विकास कार्यों को देखते हुए बीजेपी को वोट किया है.
वरिष्ठ पत्रकार शशि शेखर कहते हैं कि एग्जिट पोल के अनुमान ही अगर नतीजों में तब्दील होता है तो साफ है कि दिल्ली से बैठे लोग असम की जमीनी हकीकत को नहीं समझ पा रहे थे. असम में बीजेपी की सत्ता में लौटना एक बड़ा सियासी संकेत है और उसके सियासी मायने भी है. सीएए विरोध के बाद भी बीजेपी का जीतना काफी अहम है. वहीं, बीजेपी की जीत से कांग्रेस के आंतरिक राजनीति पर भी असर पड़ेगा.
वरिष्ठ पत्रकार जयंतो घोषाल कहते हैं कि तरुण गोगोई का न होना कांग्रेस की हार का कारण बना है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी असम की राजनीति में कोई सियासी असर साबित नहीं कर पाए हैं. कांग्रेस का बदरुद्दीन अजमल के साथ गठबंधन करने का भी कोई फायदा नहीं मिल सका. बीजेपी ने असम में किसी चेहरे को आगे नहीं किया और नरेंद्र मोदी के नाम और काम पर उतरी थी, जिसका राजनीतिक तौर पर फायदा मिला है.
असम में सभी 126 सीटों पर हुए सर्वे में कुल 27 हजार 189 लोगों से बातचीत की गई. इनमें से ग्रामीण 86 फीसदी और शहरी 14 फीसदी थे. सर्वे में 28 फीसदी मुस्लिम, 22 फीसदी असमिया, 13 फीसदी बंगाली, 11 फीसदी चाय आदिवासी, 5 फीसदी बोडो तथा बाकी अन्य लोग थे. सैंपल में 71 फीसदी पुरुष और 29 फीसदी महिलाएं शामिल की गईं. जिनमें से 18 फीसदी 25 साल तक के वोटर, 31 फीसदी 26 से 35 साल, 35 फीसदी 36 से 50 साल, 11 फीसदी 51 से 60 साल तक के थे.
इनमें अशिक्षित 16 फीसदी, आठवीं तक 25 फीसदी, 10th पास 27 फीसदी, 12th पास 18 फीसदी व ग्रेजुएट 12 फीसदी वोटर थे. इनके व्यवसाय की बात करें तो पांच फीसदी बेरोजगार, 2 फीसदी छात्र, 22 फीसदी मजदूर, 12 फीसदी किसान, 22 फीसदी हाउसवाइफ शामिल थीं.