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अनवरा तैमूर: पहली मुस्लिम महिला मुख्यमंत्री, जिन्हें मिली थी सुलगते असम को संभालने की जिम्मेदारी

अनवरा तैमूर को सीएम की गद्दी संभालने का मौका उस दौरान मिला था जब असम आंदोलन की आग में झुलस रहा था. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और ऑल असम गण परिषद के नेतृत्व में मूल निवासी बनाम अवैध शरणार्थियों की लड़ाई चल रही थी. असम में पूरी तरह अशांति थी. केंद्र में जनता पार्टी का असर खत्म हो चुका था और इंदिरा गांधी ने पीएम पद संभाल लिया था.

सैयदा अनवरा तैमूर (फाइल फोटो-इंडिया टुडे) सैयदा अनवरा तैमूर (फाइल फोटो-इंडिया टुडे)
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 08 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 5:35 PM IST
  • अनवरा तैमूर दिसंबर 1980 में बनी थीं असम की CM
  • पहली बार 1972 में अनवरा तैमूर बनी थीं विधायक

वजूद-ए ज़न से है तस्वीर-ए-कायनात में रंग, इसी के साज़ से है ज़िंदगी का सोज़-ए दरूं...मशहूर शायर अल्लामा इक़बाल ने इस शायरी के जरिए दुनिया और जिंदगी के लिए महिलाओं की अहमियत को बताने की कोशिश की है. आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है, लिहाजा इस मौके पर पूरी दुनिया में मां, बहन, पत्नी और बेटी के रूप में जीवन को कामयाब बनाने और मुश्किल वक्त में ताकत बनने के लिए महिलाओं की भूमिका को याद कर रहे हैं. इस खास मौके पर आपको एक ऐसी ही महिला शख्सियत के बारे में बताते हैं जो कभी सियासी संकट के दौर में कांग्रेस के लिए बड़ा सहारा बनकर उभरी थीं.

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हम बात कर रहे हैं सैयदा अनवर तैमूर की. पिछले साल यानी 2020 में जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस की गिरफ्त में थी, उसी बीच सितंबर के महीने में अनवरा तैमूर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. 84 साल तक जिंदगी जीने वाली अनवरा तैमूर ने अपने आखिरी वक्त से पहले शिक्षा से लेकर सियासत तक के क्षेत्र में बहुत काम किए. असम की एकमात्र महिला मुख्यमंत्री होने का खिताब आज भी उनके नाम है. साथ ही देश की पहली मुस्लिम महिला मुख्यमंत्री का खिताब भी अनवरा तैमूर के पास ही है.

अनवरा तैमूर को सीएम की गद्दी संभालने का मौका उस दौरान मिला था जब असम आंदोलन की आग में झुलस रहा था. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और ऑल असम गण परिषद के नेतृत्व में मूल निवासी बनाम अवैध शरणार्थियों की लड़ाई चल रही थी. असम में पूरी तरह अशांति थी. केंद्र में जनता पार्टी का असर खत्म हो चुका था और इंदिरा गांधी ने पीएम पद संभाल लिया था. जबकि असम में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था. असम के लोगों में कांग्रेस के प्रति गुस्सा पनप रहा था. इस आक्रोश को शांत करने के मकसद से कांग्रेस ने दिसंबर 1980 में अनवरा तैमूर को असम के मुख्यमंत्री की कमान सौंपी.

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इसलिए दी गई सीएम की जिम्मेदारी

दरअसल, इसके पीछे बड़ी वजह ये थी कि अनवरा तैमूर का समाज में काफी सम्मान था. वो एक मूल निवासी होने के साथ मुस्लिम महिला थीं. जो लोग आंदोलन कर रहे थे वो भी मूल निवासी थी और आंदोलन मुख्य रूप से बांग्लादेश से आए लोगों के खिलाफ था, जिनमें बड़ी संख्या मुस्लिमों की ही थी. कहा जाता है कि अनवरा तैमूर को सत्ता देकर जहां स्थानीय लोगों का गुस्सा शांत करने की कोशिश की गई, वहीं माइग्रेंट्स मुस्लिमों को साधने के रूप में भी इस कदम को देखा गया.  इन तमाम समीकरणों और हालातों को देखते हुए अनवरा तैमूर ने असम की कुर्सी संभाली.

हालांकि, अनवरा तैमूर एक साल भी इस कुर्सी पर नहीं रह सकीं और जून 1981 में असम में फिर से राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. इसके बाद जब एक बार फिर असम में कांग्रेस की सरकार बनी तो अनवरा तैमूर को PWD जैसा अहम मंत्रालय दिया गया. दूसरी तरफ इंदिरा गांधी की हत्या के बाद केंद्र की सत्ता में राजीव गांधी आए और 1985 में असम अकॉर्ड के साथ आंदोलन भी खत्म हो गया.

अनवरा तैमूर के राजनीतिक करियर की बात की जाए तो वो पहली बार 1972 में विधायक बनी थीं, इसके बाद 1978, 1983 और 1991 में भी उन्होंने विधायक का चुनाव जीता. 1988 में अनवरा तैमूर को राज्यसभा के लिए भेजा गया. इसके बाद 2004 में भी वो राज्यसभा सांसद बनीं. इस तरह अनवरा तैमूर ने असम से लेकर केंद्र तक की राजनीति की. उनका राजनीतिक जीवन कांग्रेस के साथ गुजरा, लेकिन आखिरी वक्त में वो ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के साथ जुड़ गईं. 2011 में अनवरा तैमूर ने मौलाना बदरुद्दीन अजमल की पार्टी AIUDF ज्वॉइन की थी. हालांकि, उन्होंने इस पार्टी से चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन उनके लिए प्रचार जरूर किया.

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बदरुद्दीन अजमल की पार्टी में गुजरा अंतिम वक्त

AIUDF के महासचिव और विधायक डॉ. हाफिज रफीकुल इस्लाम ने अनवरा तैमूर को याद करते हुए बताया कि वो बहुत शरीफ नेता थीं और उनकी समाज में स्वीकार्यता थी. एक मुस्लिम लीडर होकर भी वो सबको साथ लेकर चलती थीं. हाफिज रफीकुल इस्लाम ने बताया कि वो हमारी पार्टी की उपाध्यक्ष रही हैं और उन्होंने एक स्टार कैंपेनर के रूप में एआईयूडीएफ को मजबूत करने का काम किया. रफीकुल इस्लाम के बताया कि अनवरा तैमूर ने 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद 2016 के असम विधानसभा चुनाव में भी पार्टी के प्रचार किया, उम्रदराज होने के बावजूद वो मौलाना बदरुद्दीन के साथ मिलकर जनता के बीच जाती रहीं और जब वो इस दुनिया में नहीं हैं और असम में एक बार फिर चुनाव होने जा रहे हैं तो पार्टी उनकी कमी को महसूस कर रही है. इसके साथ ही हाफिज रफीकुल इस्लाम ने कहा कि अनवरा तैमूर ने असम के लिए इतना कुछ किया लेकिन अफसोस है कि उनका इंतेकाल ऑस्ट्रेलिया में हुआ और हम उन्हें मिट्टी भी नहीं दे सके.

बता दें कि अनवरा तैमूर का जन्म 24 नवंबर 1936 को असम में ही हुआ था. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की. इकोनॉमिक्स में पढ़ाई करने के बाद अनवरा तैमूर ने जोरहाट के गर्ल्स कॉलेज में बतौर प्रोफेसर भी अपनी सेवाएं दीं. अनवरा तैमूर के बेटे-बेटी दोनों ही विदेश में रहते हैं. उनका निधन भी 28 सितंबर 2020 को बेटे के पास ऑस्ट्रेलिया में हुआ.

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