
केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में चुनावी शोर के बाद अब नतीजों का इंतजार है. 8 फरवरी, शनिवार को मतगणना के साथ नतीजे आएंगे और इसके साथ ही सरकार को लेकर तस्वीर भी साफ हो जाएगी. आम आदमी पार्टी सत्ता बरकरा रखेगी, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) दिल्ली की सत्ता से करीब 27 साल लंबा वनवास समाप्त कराने में सफल होगी या कांग्रेस 12 साल बाद दिल्ली की गद्दी पर काबिज होगी, इस फैसले का काउंटडाउन अब शुरू हो गया है. नतीजा चाहे जिस पार्टी के पक्ष में आए, एक बात तय है कि दिल्ली की सत्ता का त्रिकोण टूटेगा. तीनों ही दलों के लिए इस चुनाव में चौके का मौका है.
टूटेगा दिल्ली की सत्ता का त्रिकोण
दिल्ली का चुनावी अतीत देखें तो सूबे की सत्ता का एक त्रिकोण रहा है. केंद्र शासित प्रदेश में साल 1998 से लेकर 2008 के विधानसभा चुनाव तक, कांग्रेस को जीत मिली. लगातार तीन बार जीत के साथ दिल्ली में सरकार बनाने वाली कांग्रेस का विजय रथ 2013 के चुनाव में बीजेपी और तब की नई-नवेली पार्टी आम आदमी पार्टी ने रोक दिया था. तीन बार की सत्ताधारी कांग्रेस आठ सीटें ही जीत सकी थी. आम आदमी पार्टी की बात करें तो इस दल को 2013 के दिल्ली चुनाव में 28 सीटों पर जीत मिली थी. अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली पार्टी बीजेपी के बाद सीटों के लिहाज से दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी.
साल 2013 के दिल्ली चुनाव में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी रही आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के समर्थन से तभी पहली बार सत्ता का स्वाद चखा था. हालांकि, यह गठबंधन सरकार 49 दिन ही चल सकी थी और जन लोकपाल विधेयक विधानसभा में लाने में विफल रहने पर अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. दिल्ली में तब राष्ट्रपति शासन लागू हुआ और फिर 2015 में विधानसभा चुनाव हुए. 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में भी दिल्ली की जनता का जनादेश आम आदमी पार्टी की सरकार के पक्ष में रहा. 2013 की 49 दिन वाली सरकार को भी जोड़ लें तो केंद्र शासित प्रदेश में अब तक तीन बार आम आदमी पार्टी की सरकार रही है.
AAP की सरकार बनी तो केजरीवाल लगाएंगे चौका
दिल्ली चुनाव में अगर इस बार भी नतीजे आम आदमी पार्टी के पक्ष में आते हैं तो वह लगातार चौथी बार सरकार बनाएगी. अगर नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आए तो उसकी भी यह दिल्ली में चौथी सरकार होगी. यह अलग बात है कि दिल्ली के सियासी आकाश से शीला दीक्षित के अस्ताचल जाने के बाद नई कांग्रेस की ये पहली सरकार होगी. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस, दोनों ही दिल्ली में तीन-तीन बार सरकार चला चुके हैं. शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल, दोनों ही तीन-तीन बार दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे हैं.
अगर आम आदमी पार्टी को जीत मिलती है तो वह चौथी बार सीएम बनने वाले दिल्ली के पहले नेता बन जाएंगे और उनकी पार्टी दिल्ली में चौथी बार सरकार बनाने वाली पहली पार्टी. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने पर ये त्रिकोण टूट ही सकते हैं, अगर बीजेपी सत्ता में आती है तो उसके पास भी एक त्रिकोण तोड़ने का मौका होगा.
बीजेपी की सरकार बनी तो लगेगा ये चौका
एग्जिट पोल के तमाम अनुमानों में इस बार बीजेपी की सरकार के अनुमान जताए गए हैं. एग्जिट पोल अनुमान अगर नतीजों में बदलते हैं और दिल्ली की गद्दी पर बीजेपी काबिज होती है तो यह केंद्र शासित प्रदेश में पार्टी की दूसरी ही सरकार होगी लेकिन उसके पास भी त्रिकोण तोड़ चौका लगाने का मौका होगा. यह त्रिकोण है तीन मुख्यमंत्री का. बीजेपी ने 1993 के दिल्ली चुनाव में जीत के साथ दिल्ली में पहली बार सरकार बनाई थी लेकिन 1998 में चुनावी हार के साथ सत्ता से विदाई के बाद अब तक पार्टी विपक्ष में ही बैठती आई है. बीजेपी की इस एक सरकार में ही तीन मुख्यमंत्री रहे और अगर इस चुनाव में पार्टी जीतती है तो जो भी सीएम बने, वह दिल्ली में बीजेपी का चौथा मुख्यमंत्री होगा.
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दिल्ली के 1993 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद बीजेपी ने मदन लाल खुराना की अगुवाई में सरकार बनाई. तब बीजेपी के मजबूत नेताओं में गिने जाने वाले खुराना को जैन हवाला कांड में नाम आने पर तीन साल बाद ही सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. सरकार की कमान साहिब सिंह वर्मा को सौंपी गई. दिल्ली के ग्रामीण इलाके में मजबूत पकड़ रखने वाले जाट नेता साहिब सिंह वर्मा को 1998 के दिल्ली चुनाव से कुछ दिन पहले सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. दिल्ली में बीजेपी के दूसरे सीएम साहिब सिंह वर्मा के सीएम कार्यकाल में उपहार सिनेमा अग्निकांड, यमुना नदी में स्कूली बच्चों की बस गिरने जैसे हादसों से सरकार की छवि खराब हुई.
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1998 के दिल्ली चुनाव से पहले महंगाई चरम पर पहुंच गई. प्याज की किल्लत हो गई. तब प्याज 60 से 80 रुपये किलो बिकने लगा था. प्याज को लेकर एक सवाल पर साहिब सिंह वर्मा के बयान ने हलचल मचा दी. उन्होंने तब कहा था कि गरीब आदमी प्याज खाता ही नहीं है. उनके इस बयान को लपक कांग्रेस ने जोरदार अभियान चलाया. महंगाई से परेशान जनता की नाराजगी की आग में इस बयान ने घी का काम किया. जनता की नाराजगी भांपते हुए बीजेपी ने चुनाव से ऐन पहले सीएम बदलने का दांव चला. साहिब सिंह वर्मा की जगह सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बना दिया गया लेकिन ये दांव भी पार्टी की सत्ता में वापसी नहीं करा सका. 1998 में कांग्रेस ने शीला दीक्षित की अगुवाई में सत्ताधारी बीजेपी को पटखनी देकर दिल्ली में सरकार बनाई और 2003, 2008 में भी सत्ता बरकरार रखी.