
हरियाणा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का कैंपेन कई तरह के विद्रोह के साथ शुरू हुआ. इसलिए, पार्टी के लिए इस बार हरियाणा विधानसभा में मजबूत मोर्चा दिखाना और जीत हासिल करना बेहद जरूरी है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी की हार का अन्य राज्यों पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि राज्यों के चुनाव बीजेपी के लिए मजबूत खेल नहीं रहे हैं और इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.
पीएम मोदी की जीवनी के लेखक और हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति के विशेषज्ञ नीलांजन मुखोपाध्याय ने कहा, 'हरियाणा में चुनाव भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव 2024 की गिरावट को उलटने का पहला अवसर है. इसका मतलब है कि यह वापसी की राह हो सकती है और महाराष्ट्र, झारखंड और उसके बाद दिल्ली चुनावों पर बेहतर असर डाल सकती है.' राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हरियाणा के इन चुनावों में बीजेपी के सामने तीन बड़ी चुनौतियां हैं.
किसानों का गुस्सा
पहला है किसान आंदोलन या किसानों का गुस्सा. भाजपा हरियाणा में सत्ता में थी और उसने कभी भी किसानों को सिंघू बॉर्डर पार नहीं करने दिया, जो हरियाणा और दिल्ली के बीच किसानों के विरोध का केंद्र था. राज्य सरकार की हरियाणा पुलिस ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय किए कि विरोध प्रदर्शन दिल्ली तक न पहुंचे, ताकि राष्ट्रीय राजधानी में अशांति न फैले और केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी को भी शर्मिंदगी न उठानी पड़े.
पहलवानों का विरोध प्रदर्शन
मुखोपाध्याय ने कहा, 'खेल, खासकर कुश्ती इको-सिस्टम एक बड़ी चुनौती है. पहलवानों के प्रदर्शन का नेतृत्व विनेश फोगट और बजरंग पूनिया के हाथ में था. दोनों हाल ही में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए हैं. यह महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि हरियाणा में कुश्ती बड़े पैमाने पर खेली जाती है. शायद ही कोई ऐसा गांव हो जहां कोई अखाड़ा न हो. इन पहलवानों को अपना आदर्श मानने वाले युवा लड़कों और लड़कियों को समझाना बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकता है.'
अग्निवीर योजना
उन्होंने कहा, 'तीसरी और सबसे बड़ी चुनौती है अग्निवीर योजना. एक ओर जहां पूर्व सैनिक और इच्छुक युवा सशस्त्र बलों में शामिल होना चाहते हैं. वहीं यहां पर लोगों ने अग्निवीर योजना को स्वीकार नहीं किया है. हालांकि सरकार ने अर्धसैनिक और सरकारी नौकरियां देने की कोशिश की है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं होगा.'
नेतृत्व परिवर्तन
एक और बड़ा कारण यह है कि बीजेपी हरियाणा जीतना चाहती है, क्योंकि बीजेपी ने हरियाणा में एक बड़ा नेतृत्व परिवर्तन किया है. उसने हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को कुर्सी पर बिठाया है. मुख्यमंत्री के तौर पर वह अपेक्षाकृत कम लोकप्रिय चेहरा थे लेकिन प्रासंगिक सैनी जाति समुदाय को अपने पाले में खींचने की क्षमता रखते हैं. बीजेपी के लिए इसे सही साबित करना जरूरी है क्योंकि इससे बीजेपी पर से संघ का भरोसा उठ सकता है. यहां जीत से दिल्ली में भी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ सकता है. हरियाणा में राजनीतिक हार का मतलब यह हो सकता है कि भाजपा के लिए बुरा समय अभी जारी रहेगा.
हाथ से निकल सकता है गुरुग्राम
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने यह भी कहा कि वे राज्य में किए गए विकास कार्यों को लेकर आश्वस्त हैं. लेकिन उस विकास को बनाए रखने के लिए, किसी को राज्य की सत्ता में बने रहने की जरूरत है. हालांकि इस बार, बीजेपी सरकार बनाने के लिए जेजेपी जैसी पार्टियों का समर्थन नहीं लेना चाहती है और पूर्ण बहुमत से जीत हासिल करना चाहती है.
अगर बीजेपी हरियाणा में हारती है तो वह तेजी से आगे बढ़ रहे बिजनेस डेवलपमेंट शहर गुरुग्राम को भी खो सकती है. यह बड़ा नुकसान इसलिए होगा क्योंकि हालिया अनुमानों के अनुसार, अकेले गुरुग्राम ने 2022-23 में 2,600 करोड़ रुपये का एक्साइज रेवेन्यू पैदा किया था. हरियाणा का लगभग 45-48 प्रतिशत रेवेन्यू एक्साइज ड्यूटी, सेल्स टैक्स स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन के माध्यम से गुरुग्राम से प्राप्त होता है.
नोएडा से तुलना करें तो 2023-24 में नोएडा ने 1,975 करोड़ रुपये का राजस्व पैदा किया था. बीते चुनावों में, बीजेपी ने बिजनेस डेवलेपमेंट के प्रमुख केंद्र खो दिए हैं- दिल्ली, तेलंगाना में हैदराबाद, कर्नाटक में बेंगलुरु. इन सभी जगहों पर विपक्षी दलों आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की सरकार है.