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हरियाणा: गिरते वोट शेयर ने बढ़ाई BJP की चिंता, ग्रामीण वोटर्स को लुभाने की ये कोशिशें होंगी कामयाब?

हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर भी गिर रहा है. आरएसएस की एक आंतरिक रिपोर्ट में संकेत दिया था कि बीजेपी सरकार बनाने से चूक रही है. रिपोर्ट के बाद भाजपा ने मनोहर लाल के कामकाज से न ग्रामीण मतदाताओं विश्वास जीतने फैसला किया. साथ ही पार्टी विधायकों समेत पार्टी नेताओं और जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं  के लिए सक्रिय करने का फैसला किया.

BJP . (सांकेतिक फोटो) BJP . (सांकेतिक फोटो)
मनजीत सहगल
  • चंडीगढ़,
  • 27 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:52 PM IST

भारतीय जनता पार्टी हरियाणा में अपने गिरते वोट शेयर को लेकर चिंतित है. इस ट्रेड को बदलने की कोशिश में जुटी बीजेपी ने आरएसएस और जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं से ग्रामीण मतदाताओं को जोड़ने के लिए मदद मांगी है. 

विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर भी गिर रहा है. साल 2014 के 43 प्रतिशत से घटकर साल 2019 के चुनाव में 36.49 प्रतिशत रह गया. इसी तरह लोकसभा में भी पार्टी का वोट शेयर लगातार गिर रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में 58.21 प्रतिशत से गिरकर हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव 2024 में 46.10% हो गया.

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लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार ही कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हुआ.साल 2019 में कांग्रेस का वोट शेयर 28.51 प्रतिशत से बढ़कर साल 2024 में 43.68 प्रतिशत हो गया. हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के वोट प्रतिशत को अगर विधानसभा सीटवार बदलते हैं तो कांग्रेस ने 45 ग्रामीण सीटों पर जीत हासिल की है जो भाजपा के लिए सबसे बड़ी चिंता है और इसी के बाद बीजेपी ने जमीनी कार्यकर्ताओं, ग्रामीण मतदाताओं को फिर से जोड़ने के लिए आरएसएस के साथ आउटरीच कार्यक्रम शुरू किया है.

वहीं, लोकसभा चुनाव में विशेष रूप से दूरी बनाने वाले आरएसएस ने महसूस किया कि हरियाणा में पार्टी की सरकार तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ बढ़ती एंटी-इनकंबेंसी बीजेपी अपनी लोकप्रियता खो रही है.

इस साल अगस्त में आरएसएस की एक आंतरिक रिपोर्ट में संकेत दिया था कि बीजेपी सरकार बनाने से चूक रही है. रिपोर्ट के बाद भाजपा ने मनोहर लाल के कामकाज से न ग्रामीण मतदाताओं विश्वास जीतने फैसला किया. साथ ही पार्टी विधायकों समेत पार्टी नेताओं और जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं  के लिए सक्रिय करने का फैसला किया.

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आरएसएस की रिपोर्ट ने ये भी संकेत दिया कि मनोहर लाल को हटाने के फैसले से पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ, क्योंकि ये फैसला ले में पार्टी ने बहुत देर कर दी.

कैसे एंटी-इनकंपबेसी ने निपटेगा RSS-BJP

आरएसएस सूत्रों के अनुसार, संगठन ने सितंबर की शुरुआत में एक ग्रामीण मतदाता आउटरीच कार्यक्रम शुरू किया था, जिसके तहत कम-से-कम 150 स्वयंसेवकों को हर जिले में भेजा गया है. उन्हें कैडर और ग्रामीण मतदाताओं के जोड़ने काम सौंपा गया था.


आरएसएस आउटरीच कार्यक्रम की प्राथमिकता जमीनी स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं को सक्रिय करना था. कार्यक्रम की दूसरी प्राथमिकता सरकार के खिलाफ चल रही लहर को सत्ता में बदलना है. 
आरएसएस आउटरीच कार्यक्रम ने पार्टी के मतदाताओं और स्थानीय नेताओं को जोड़ने और सत्ता विरोधी मुद्दे को संबोधित करने की कोशिश की.

आरएसएस ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया कि सोलिड वोटर्स के समर्थन वाले कई दलों के दलबदलुओं को पार्टी टिकट दिया जाना चाहिए. भाजपा नेता जो एंटी-इनकंपबेसी का सामना कर रहे हैं. दूसरा कदम दलबदलुओं और भाजपा पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच सामंजस्य बनाना था.

आरएसएस के इस कैंपेन में भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के टैग के अलावा राज्य सरकार की ऐसी योजनाएं भी शामिल थी, जिनसे लोगों को फायदा हुआ है. मुख्यमंत्री नायब सैनी को ग्रामीण मतदाताओं के बीच खुद को ज्यादा-से-ज्यादा शामिल होने के लिए कहा गया था, जिन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र लाडवा समेत कई जगहों पर विरोध का सामना करना पड़ा. उन्हें सेवानिवृत्त अग्रि वीरों को रोजगार देने के राज्य सरकार के फैसले को बढ़ावा देने का काम सौंपा गया था.

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इसी के तहत  सीएम नायब सैनी ने खाप और पंचायत नेताओं से भी मुलाकात की जो मनोहर लाल की कार्यप्रणाली से नाखुश थे. बताया गया है कि खट्टर से कई विधायक भी दुखी थे. क्योंकि खट्टर उन्हें महीनों तक मिलने नहीं दिया था. उनके पास के नौकरशाहों को भी जमीनी स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं और मुख्यमंत्री के बीच दीवार बनाने के लिए दोषी ठहराया गया था.

आरएसएस ने जिला स्तर के स्वयंसेवकों को मंडल कार्यकर्ताओं के साथ काम करने के लिए कहा गया, जिन्होंने मतदाताओं से जुड़ने के लिए चौपाल के माध्यम से पंचायत स्तर के स्वयंसेवकों के साथ काम किया. ताकि लोगों को जोड़ा जा सके.


आरएसएस ने 20 जिलों में 22 बैठकें की हैं, जिसमें एक सितंबर को सभी जिला स्तर के वरिष्ठ पदाधिकारियों और शाखा प्रमुखों ने हिस्सा लिया. आरएसएस ने 7 से 9 सितंबर के बीच प्रत्येक विधानसभा में 90 बैठकें भी कीं. आरएसएस ने पार्टी कार्यकर्ताओं और ग्रामीण मतदाताओं के साथ लगभग 200 बैठकें कीं.


आरएसएस की रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर ईमानदार थे और उन पर भ्रष्टाचार का कोई मामला नहीं था, लेकिन उनका काम ठीक था और इसके परिणामस्वरूप राज्य भर में सत्ता विरोधी लहर पैदा हुई.

आरएसएस नेता ने कहा, ''अगर मनोहर लाल को हटाने का फैसला पहले लिया गया होता तो पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा होता.''

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पार्टी के करीबी सूत्रों का कहना है कि आरएसएस ने मार्च 2023 में समालखा में हुई बैठक में मनोहर लाल खट्टर को हटाने का सुझाव दिया था.

आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, "जहां एक ओर लोग खुश नहीं थे. वहीं, दूसरी ओर कार्यकर्ता और स्थानीय नेता भी नाराज थे जो लोकसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए भी जिम्मेदार थे." आरएसएस नेता ने आगे कहा कि खट्टर का नौकरशाही पर कोई नियंत्रण नहीं है. उनके हटने के बाद केवल मुख्य सचिव को ही बदला गया और अन्य अधिकारी अभी-भी सीएमओ में ही हैं.

पार्टी ने विधानसभा चुनावों में आरएसएस से मदद मांगी, क्योंकि लोकसभा चुनावों में आरएसएस अनुपस्थित था, जिसके परिणामस्वरूप 5 सीटों का नुकसान हुआ. दिलचस्प बात यह है कि आरएसएस कार्यकर्ताओं ने कभी-भी लोगों से भाजपा को वोट देने के लिए नहीं कहा, इसके बजाय उन्होंने परोक्ष रूप से उन्हें बताया कि भाजपा सरकार देश के लिए कितनी महत्वपूर्ण है.


एंटी इनकंबेंसी के खिलाफ BJP ने बनाई ये रणनीति

भूपिंदर हुड्डा और कुमारी सैलजा के बीच बंटी कांग्रेस में असमंजस की स्थिति थी. पार्टी को यह भी उम्मीद है कि आम आदमी पार्टी को कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा विरोधी वोट मिलेंगे. एक अन्य रणनीति यह थी कि मनोहर लाल खट्टर को मोदी की रैलियों से दूर रखा जाए, ताकि उनके खिलाफ मजबूत सत्ता विरोधी लहर को रोका जा सके. साथ ही जाटलैंड में खट्टर से परहेज किया गया, क्योंकि उनकी उपस्थिति से नुकसान हो सकता  था. उन्हें सिर्फ शहरी इलाकों तक ही सीमित रखा गया था.

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इसके अलावा मनोहर लाल के बदलना भी सत्ता विरोधी लहर को मनाना था. उनकी तस्वीरें भाजपा के कैंपेन से गायब थीं और यहां तक कि उनके लोकसभा क्षेत्र असंध में यूपी के सीएम योगी की रैली में भी उनकी तस्वीर नजर नहीं आई. वहीं, सोनीपत और कुरुक्षेत्र में पीएम मोदी की रैली से खट्टर की अनुपस्थिति ने यह भी साबित कर दिया कि पार्टी उनसे जुड़ी नकारात्मकता के कारण उन्हें दूर रख रही है.

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