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'बात बिहार की हो, नाम नीतीश...', JDU के नए नारे में विरोधियों और अपनों सबके लिए छिपा है संदेश

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा की शुरुआत से पहले जेडीयू ने पोस्टर जारी किया है. इस पोस्टर पर स्लोगन लिखा है 'जब बात बिहार की हो, नाम सिर्फ नीतीश कुमार का हो'. इस नारे के निहितार्थ क्या हैं?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 23 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:12 AM IST

बिहार चुनाव में करीब एक साल का समय बचा है लेकिन सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में मुख्यमंत्री फेस को लेकर बहस तेज हो गई है. सीएम कैंडिडेट को लेकर जारी बहस के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चंपारण से प्रगति यात्रा पर रवाना हो गए हैं. इस यात्रा की शुरुआत से पहले नीतीश की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) ने एक पोस्टर जारी किया. जेडीयू के ऑफिशियल एक्स हैंडल से जारी किए गए पोस्टर पर स्लोगन लिखा है- 'जब बात बिहार की हो, नाम सिर्फ नीतीश कुमार का हो'. सीएम की यात्रा से ठीक पहले जारी इस पोस्टर के सियासी मायने क्या हैं?

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सियासत में संकेत की भाषा अहम होती है, खासकर बात जब बिहार और नीतीश कुमार की हो. बिहार चुनाव में एनडीए का चेहरा कौन होगा, इसे लेकर जेडीयू अपना स्टैंड पहले भी साफ कर चुकी है. जेडीयू ने साफ कहा था कि नीतीश कुमार की अगुवाई में ही चुनाव लड़ा जाएगा. एनडीए की सबसे बड़ी घटक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रदेश अध्यक्ष रहे और अब नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने भी दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह साफ कर दिया है कि अगला चुनाव नीतीश कुमार और पीएम मोदी के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा.

सम्राट चौधरी के बयान में भी चुनावी नेतृत्व की ही बात है. इससे बिहार बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने भी नीतीश कुमार की ही अगुवाई में चुनाव लड़ने की बात कही थी. बिहार में सीएम को लेकर चर्चा तब छिड़ी, जब महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनी. एजेंडा आजतक में गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में सीएम फेस को लेकर सवाल पर कहा था कि बीजेपी में निर्णय लेने की एक प्रक्रिया है. पार्लियामेंट्री बोर्ड इस तरह के फैसले लेता है. सभी दल साथ में बैठ कर ये तय करेंगे और तय करेंगे तो यह बता भी देंगे.

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जेडीयू का पोस्टर

इन सबके बीच अब नया स्लोगन देकर जेडीयू ने सहयोगियों से विरोधियों तक, सबको यह संदेश दे दिया है कि सीएम पद की बात होगी तो पार्टी सुशासन बाबू के नाम से टस से मस नहीं होगी. वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने इसे लेकर कहा कि स्लोगन की टाइमिंग देखिए. पहले बिहार में सीएम फेस को लेकर अमित शाह का बयान, फिर आंबेडकर को लेकर गृह मंत्री के बयान को लेकर अरविंद केजरीवाल की नीतीश को चिट्ठी, फिर एनडीए की बैठक से पहले सीएम का बीमार हो जाना और अब दिलीप जायसवाल से सम्राट चौधरी तक नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात तो करते हैं लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि सीएम फेस नीतीश ही होंगे. नीतीश बिहार की सियासत के ऐसे उस्ताद हैं जिसे डूबकर दरिया पार करने का हुनर अच्छी तरह से आता है.

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महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि बीजेपी के नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने की बात करते रहे, खुद देवेंद्र फडणनवीस ने भी यही कहा और चुनाव नतीजे आए तो संख्याबल के आधार पर कुर्सी बीजेपी के पास आ गई. नीतीश जानते हैं कि बिहार में संख्याबल के लिहाज से उनकी पार्टी बीजेपी के मुकाबले करीब करीब आधे पर है. ऐसे में सीट शेयरिंग के समय वर्तमान संख्याबल आधार बना तो जेडीयू के मुकाबले बीजेपी की दावेदारी अधिक सीटों पर होगी और ये उन्हें स्वीकार नहीं होगा. दूसरा ये कि नतीजों के बाद संख्याबल चाहे जिसका जितना हो, सीएम की कुर्सी को लेकर बीजेपी सार्वजनिक रूप से उनके नाम का ऐलान कर दे. जेडीयू ने इस पोस्टर के जरिये बीजेपी को इस बात का स्पष्ट संदेश दे दिया है.

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बिहार की सियासत में दो प्रमुख गठबंधन हैं- एनडीए और महागठबंधन. प्रशांत किशोर की नई नवेली जन सुराज को छोड़ दें तो राष्ट्रीय पार्टियों बीजेपी-कांग्रेस के साथ ही राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (लोकतांत्रिक) समेत करीब करीब सभी प्रमुख दल इन्हीं दो गठबंधनों के बैनर तले हैं. ऐसे में अगर नीतीश कुमार और उनकी पार्टी को बीजेपी या एनडीए की ओर से सीएम को लेकर कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं मिलता है तो उनके पास महागठबंधन का ही विकल्प बचता है.

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महागठबंधन में सीएम के लिए तेजस्वी यादव का चेहरा पहले से ही है. ऐसे में जेडीयू चुनाव से आगे का सोचकर चल रही है और लालू की पार्टी को भी यह संदेश दे दिया है कि अगर ऐसी परिस्थितियां बनती भी हैं कि दोनों धुर विरोधी दल तीसरी बार साथ आएं तो सीएम की कुर्सी से नीतीश को अलग करके यह सोचना संभव नहीं होगा. कुल मिलाकर, जेडीयू के नारे के निहितार्थ चुनावी तैयारी के साथ ही चुनाव बाद की तस्वीर और समीकरणों को भी संबोधित करते नजर आ रहे हैं.

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