
दिल्ली में अगले महीने (फरवरी 2025) विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनावी गहमागहमी में एक बात तो साफ है कि दिल्ली की राजनीति हमेशा से दिलचस्प रही है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा भी दौर था जब दिल्ली में न मुख्यमंत्री था, न विधानसभा. इस दौरान प्रशासन कैसे चलता था, आइए जानते हैं.
दिल्ली की विधानसभा और मुख्यमंत्री का सफर
दिल्ली की पहली विधानसभा का चुनाव 27 मार्च 1952 को हुआ था. तब कुल 48 सीटों पर चुनाव हुए थे. कांग्रेस ने इसमें 39 सीटों पर जीत हासिल कर बहुमत पाया और चौधरी ब्रह्मप्रकाश को पहला मुख्यमंत्री बनाया. लेकिन उनका कार्यकाल विवादों में घिर गया. फिर सरदार गुरमुख निहाल सिंह को दूसरा मुख्यमंत्री बनाया गया.
1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश के बाद दिल्ली की विधानसभा और मंत्रिपरिषद भंग कर दी गई. इसके बाद दिल्ली पर केंद्र का सीधा शासन लागू कर दिया गया. इस समय को दिल्ली की राजनीति के लिए सबसे बड़ा बदलाव माना जाता है.
61 सदस्यीय मेट्रोपॉलिटन काउंसिल का गठन
दिल्ली में लोकतांत्रिक व्यवस्था और प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए 1966 में दिल्ली प्रशासन अधिनियम लागू किया गया. इसके तहत महानगर परिषद (मेट्रोपॉलिटन काउंसिल) बनाई गई. इसमें 56 सदस्य चुने जाते थे और 5 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते थे. यह काउंसिल दिल्ली का प्रशासन संभालती थी.
मेट्रोपॉलिटन काउंसिल का कार्यकाल
1966 से 1990 तक मेट्रोपॉलिटन काउंसिल दिल्ली का प्रशासन संभालता रहा. इसमें कई कार्यकारी पार्षद बने, जैसे मीर मुश्ताक अहमद, विजय कुमार मल्होत्रा, केदार नाथ साहनी और जग प्रवेश चंद्र. लेकिन काउंसिल के पास विधायी शक्तियां नहीं थीं, जिससे यह केवल सलाहकार की भूमिका निभाती थी.
दिल्ली को फिर से विधानसभा कैसे मिली?
1987 में केंद्र सरकार ने दिल्ली के प्रशासन से जुड़े मुद्दों की जांच के लिए सरकारिया समिति का गठन किया. इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता, लेकिन आम जनता के मामलों को संभालने के लिए विधानसभा दी जा सकती है. इस सिफारिश पर 1991 में संविधान का 69वां संशोधन पारित किया गया. इसके तहत दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का विशेष दर्जा मिला और विधानसभा का गठन हुआ.
1993 में हुआ पहला चुनाव
37 साल बाद 1993 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए. इसमें भाजपा ने 49 सीटों पर जीत हासिल की और मदन लाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद दिल्ली की राजनीति ने एक नया मोड़ लिया.
दिल्ली की राजनीति ने समय के साथ कई बदलाव देखे. 1952 से लेकर 2020 तक जितने भी विधानसभा चुनाव हुए उनमें कई पार्टियों और नेताओं ने अपनी छाप छोड़ी. कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी के दौर ने दिल्ली की राजनीति को कई नए आयाम दिए.
दिल्ली विधानसभा चुनाव और नतीजों पर एक नजर:
पहला विधानसभा चुनाव : 27 मार्च 1952
कुल सीटें : 48; कांग्रेस- 39, भारतीय जनसंघ (अब भाजपा)- 5
मुख्यमंत्री : पहले चौधरी ब्रह्मप्रकाश (कांग्रेस), फिर गुरमुख निहाल सिंह
वर्ष 1956 से 93 तक विधानसभा के चुनाव नहीं हुए.
दूसरा विधानसभा चुनाव: 1993
कुल सीटें: 70; भाजपा- 49, कांग्रेस- 14
मुख्यमंत्री : मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज
विधानसभा चुनाव 1998
कुल सीटें : 70; कांग्रेस- 52, भाजपा- 17, जदयू- 1
मुख्यमंत्री : शीला दीक्षित
विधानसभा चुनाव 2003
कुल सीटें: 70; कांग्रेस- 47, भाजपा- 20, जदयू-एनसीपी और आईएनडी को एक-एक सीट मिली
मुख्यमंत्री: शीला दीक्षित
विधानसभा चुनाव 2008
कुल सीटें: 70; कांग्रेस- 43, भाजपा- 23, बसपा- 2, निर्दलीय और लोक जनशक्ति पार्टी को एक-एक सीट मिली
मुख्यमंत्री: शीला दीक्षित
विधानसभा चुनाव 2013
कुल सीटें: 70; भाजपा- 31, AAP- 28, कांग्रेस- 8, आईएनडी-जदयू-एसएडी को एक-एक सीट मिली
मुख्यमंत्री: अरविंद केजरीवाल (49 दिन की सरकार)
विधानसभा चुनाव 2015
कुल सीटें: 70; AAP- 67, भाजपा- 03
मुख्यमंत्री : अरविंद केजरीवाल (AAP)
विधानसभा चुनाव 2020
कुल सीटें : 70; AAP- 62, भाजपा- 08
मुख्यमंत्री : पहले अरविंद केजरीवाल (AAP), अब आतिशी
दिल्ली में 37 साल तक जब न कोई मुख्यमंत्री था और न ही विधानसभा, तब भी प्रशासन चला, लेकिन उनमें जनता की भागीदारी नहीं थी.