
पहले मुफ्त के वादे. फिर पुजारियों-ग्रंथियों के लिए 18 हजार रुपये महीने का वादा. फिर जाट वोट के लिए आरक्षण का दांव. और अब दिल्ली के चुनाव में यूपी-बिहार से जुड़े पूर्वांचल के वोट बैंक को लेकर खींचतान हो रही है. अरविंद केजरीवाल के एक बयान पर बीजेपी ने पूर्वांचल वोटर्स के अपमान का मुद्दा उठाया.
प्रदर्शन, प्रेस कॉन्फ्रेंस और पोस्टर... दिल्ली के चुनाव में इन्हीं तीनों के सहारे एक-एक वोट की राजनीति अपने हिसाब से सेट करने की कोशिश चल रही है. जहां एक पार्टी प्रदर्शन करती है तो दूसरी भी. एक तरफ से पोस्टर निकलता है तो दूसरी तरफ से भी. एक आरोप प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी लगाती है तो दूसरा आरोप प्रेस कॉन्फ्रेंस करके आम आदमी पार्टी. इस बीच अब अरविंद केजरीवाल के एक बयान पर बीजेपी ने पूर्वांचल के वोटर के अपमान का मुद्दा छेड़ दिया है.
अरविंद केजरीवाल चुनाव आयोग के पास फर्जी वोटर जोड़ने की शिकायत करके गुरुवार को लौटे तो मीडिया के सामने बीजेपी ने इसी मुद्दे पर उन्हें घेरना शुरू कर दिया. पहले बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा लिखते हैं कि केजरीवाल ने यूपी-बिहार के हमारे लोगों को फर्जी वोटर कहकर उनका अपमान किया है. दिल्ली की जनता जवाब देगी. तो वहीं आम आदमी पार्टी ने भी फिर से वही आरोप दोहराना शुरू कर दिया कि बीजेपी तो पूर्वांचल के लोगों को रोहिंग्या, बांग्लादेशी बताकर वोट कटवाती है.
बयानों से प्रदर्शन तक पहुंची पूर्वांचल वोटर्स की लड़ाई
शक्रवार को दिल्ली में पूर्वांचल के वोटर की लड़ाई बयानों से आगे प्रदर्शन तक पहुंच जाती गई. जहां बीजेपी कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल के खिलाफ विरोध मार्च निकाला और पोस्टर पर लिखा कि केजरीवाल पूर्वांचल विरोधी हैं और माफी मांगने की मांग हुई. पूर्वांचल सम्मान के नाम पर निकले प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए केजरीवाल के घर के बाहर बैरिकेडिंग की गई, जिन्हें तोड़कर बीजेपी कार्यकर्ता आगे बढ़ गए. इसके बाद पुलिस ने पानी की बौछार की.
सम्मान-अपमान की ये सियासत दिल्ली में फैले 25 प्रतिशत से ज्यादा पूर्वांचली वोटर की है, जो 30 सीटों पर फैले हुए हैं. 20 सीटों पर बड़ा असर रखते हैं और 16 सीटों पर तो नतीजे ही तय करते हैं. इन्हीं सीटों पर दबदबा रखने वाले पूर्वांचली वोटर्स को साधने के लिए एक दूसरे पर अपमान का आरोप लगाते-लगाते शब्दों की मर्यादा दोनों तरफ से तोड़ी जा रही है.
पूर्वाचंल वोटर के सम्मान की सियासत की वजह क्या?
दरअसल, रोज एक नए वोटबैंक को लेकर होती सियासत के पीछे कई वजह हैं. पहली वजह- भले आम आदमी पार्टी को दो विधानसभा चुनाव में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट बैंक हासिल हुआ हो, लेकिन अब दस साल की सीधी सत्ता के बाद एंटी इनकंबेंसी का डर अरविंद केजरीवाल को हो सकता है. दूसरी अहम बात है कि कांग्रेस का वोट बढ़ने का मतलब बीजेपी विरोधी वोट में बंटवारा, यानी नुकसान आम आदमी पार्टी और तीसरी अहम बात है कि पिछले दो चुनाव के बीच जो पूर्वांचल का वोटर आम आदमी पार्टी के पास सबसे ज्यादा रहा है, वही यूपी के पूर्वी इलाके, बिहार, झारखंड से आने वाला मतदाता दिल्ली में अब बीजेपी के पास भी थोड़ा बढ़ा है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इसीलिए बीजेपी को इस वोट बैंक में अबकी बार अपने लिए और उम्मीद के साथ अरविंद केजरीवाल की पार्टी के लिए डेंट करने का मौका लगता है, जिसकी वजह से पूर्वाचंल वोटर के सम्मान की सियासत तेज हुई?
इन सीटों पर जीत-हार तय करते हैं पूर्वांचली वोटर
दरअसल, दिल्ली में माना जाता है कि पूर्वांचल के वोटर की आबादी करीब 45 लाख हो सकती है. दिल्ली के नक्शे पर देखें तो देवली, बुराड़ी, किराड़ी, संगम विहार, विकासपुरी, द्वारका, पालम, लक्ष्मीनगर, मटियाला, करावलनगर, सीमापुरी, रिठाला, मंगोलपुरी, बादली. ये वो प्रमुख सीटें हैं, जहां जीत-हार सीधे पूर्वांचल का वोटर तय करता है. अब तक आम आदमी पार्टी के साथ पूर्वांचल के वोटर का विधानसभा चुनाव में जु़ड़ाव देखा गया है. जबकि लोकसभा चुनाव में ये वोट बीजेपी के पास जाता है. ऐसे वोटर हैं जो ज्यादातर दिल्ली के स्लम और अवैध कॉलोनियों में बसे हुए हैं. इन वोटर्स के लिए 200 यूनिट मुफ्त बिजली और महिलाओं की मुफ्त बस यात्रा जैसे फायदे प्रभावी हैं. यही वजह है कि दिल्ली की लड़ाई में ये पूर्वांचली वोट आम आदमी पार्टी के साथ डटकर खड़ा रहा.
पिछले चुनावों में किसी तरफ रहा पूर्वांचली वोटर?
2015 के चुनाव में पूर्वांचली प्रभाव वाली सभी 16 सीटें और 64 प्रतिशत वोट आप को मिले जबकि बीजेपी को कोई सीट नहीं मिली सिर्फ 29 फीसदी वोट मिले और कांग्रेस को 4 फीसदी वोट मिले थे. 2020 के चुनाव में फिर 16 में से 14 सीटें और 54.62 प्रतिशत वोट आप को मिले. बीजेपी को 2 सीटें मिल गईं, वोट प्रतिशत भी 39.09 तक पहुंच गया, कांग्रेस को सिर्फ 2.44 फीसदी वोट मिले. मतलब ये कि 5 साल के अंदर 2020 में ही 10 फीसदी पूर्वांचली वोट आप से बीजेपी के खाते में आ चुके थे. बीजेपी को उम्मीद है कि इस वोट बैंक का मोह अब आप से टूट रहा है. यही वजह है कि फर्जी वोटर्स का मुद्दा अब बीजेपी पूर्वांचली अस्मिता के साथ जोड़ रही है.