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दिल्ली ग्राउंड रिपोर्ट पार्ट-1: बिजली-पानी, शिक्षा-रोजगार? जानें किन मुद्दों पर पहली बार वोट डालेंगे पाकिस्तान से आए हिंदू

मजनू का टीला और तिब्बती मार्केट से बढ़कर थोड़ा-सा आगे जाने पर एक गुरुद्वारा दिख जाता है और इसी गुरुद्वारे के ठीक बगल से पतला सा टूटा हुआ कच्चा रास्ता एक गली के अंदर जाता है. दिल्ली में ये एक ठिकाना है पाकिस्तानी हिन्दुओं का. यहां वो शरणार्थी रहते हैं जो 2011 में पाकिस्तान से भारत आए गए.

2011 में पाकिस्तान से भारत आए हिंदू पहली बार किसी चुूनाव में वोट डालेंगे 2011 में पाकिस्तान से भारत आए हिंदू पहली बार किसी चुूनाव में वोट डालेंगे
मनीष चौरसिया
  • नई दिल्ली,
  • 10 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 11:16 PM IST

एक ऐसा दौर भी आया जब संतों को मजनू कहा गया और जहां वो रहते थे, उस जगह को मजनू का टीला. दिल्ली में मजनू का टीला एक मशहूर जगह है. इसके ठीक बगल में तिब्बती मार्केट है, जहां पर तिब्बती लोगों के दुकान और मकान हैं. मजनू का टीला और तिब्बती मार्केट से बढ़कर थोड़ा-सा आगे जाने पर एक गुरुद्वारा दिख जाता है और इसी गुरुद्वारे के ठीक बगल से पतला सा टूटा हुआ कच्चा रास्ता एक गली के अंदर जाता है. दिल्ली में ये एक ठिकाना है पाकिस्तानी हिन्दुओं का. यहां वो शरणार्थी रहते हैं जो 2011 में पाकिस्तान से भारत आए गए.

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यहां लगभग अब सभी को भारतीय नागरिकता मिल चुकी है. इतना ही नहीं, पाकिस्तानी हिंदू पहली बार भारत में किसी चुनाव में हिस्सा लेने जा रहे हैं. ये लोग दिल्ली चुनाव में वोट डालेंगे. कुछ लोगों के वोटिंग कार्ड बनकर तैयार हैं तो कुछ के प्रक्रिया में हैं. हम इन्हीं पाकिस्तानी हिंदुओं से मिलकर यह जानने की कोशिश की कि आखिर दिल्ली के चुनाव में उनके लिए क्या मुद्दा है और किस आधार पर वो अपने वोट का इस्तेमाल करने जा रहे हैं.

लोगों के बीच गैस, राशन कार्ड जैसे मुद्दे 

सबसे पहले हम सोना दास के घर पहुंचे, जहां एक खाट पड़ी हुई थी. इसी पर सोना दास बैठे हुए थे. उनके ठीक सामने जमीन पर एक चूल्हा बना हुआ था, जिसमें लकड़ियां सुलगा दी गई और खाना बनाने की तैयारी शुरू हो चुका था. सोना दास की पत्नी रानी खाना तैयार करते-करते बोलीं कि वो अपना काम छोड़ना नहीं चाहती. वह बताती हैं कि खाना बनाने में बहुत तकलीफ होती है. सारा काम चूल्हे में ही होता है और जंगल से लकड़ियां बिन कर लानी पड़ती है. अधिकतर महिलाएं और छोटे बच्चे ही जंगल में लकड़ियां बीनने जाते हैं क्योंकि पुरुष पहले से ही घर के बाहर होते हैं. 

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वो कहती है कि जो उन्हें सुविधाएं देगा, वो उसी को वोट देंगे. सुविधाओं में सबसे पहले उनको गैस चाहिए. उसके बाद राशन कार्ड से अनाज भी उनके लिए एक बड़ा मुद्दा है. लेकिन इन सब के ऊपर वो कहती हैं कि जिसने उनको इस देश की नागरिकता दिलाई, सबसे पहले वह उनको ही वोट देंगी. रानी दास और सोना दास के घर में मोदी जी का एक बड़ा सा पोस्टर रखा हुआ दिखा.

'हमें फ्री बिजली पानी क्यों नहीं?'

सोना दास घर के मुखिया हैं. जब उनसे वोट किसे देंगे पूछा गया तो उन्होंने सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह का नाम लिया. वह कहते हैं कि उन्होंने ही हमें नागरिकता दिलवाई है. कुछ भी हो जाए, हम वोट तो उनको ही देंगे. केजरीवाल के बारे में पूछने पर वो कहते हैं कि आज तक वो इस मोहल्ले में नहीं आए. वो पूरी दिल्ली को फ्री बिजली, फ्री पानी देने की बात करते हैं तो आखिर हमारे लिए कभी कोई व्यवस्था क्यों नहीं की? क्या हमें बिजली और पानी नहीं मिलना चाहिए?

'सबसे पहले मांगेंगे पक्का मकान' 

एक टूटे फूटी गली में जैसे ही हम दाखिल हुए, बाईं तरफ हमें दो मकान दिखाई पड़े. इन दोनों मकानों के आगे का हिस्सा मिला हुआ है. एक मकान में जमुना तो दूसरे में लता रहती हैं. इस शरणार्थी कैंप में सभी के घर कच्चे हैं. छत पुआल या फिर टीन की बनाई गई है. जमुना बताती हैं कि बारिश में बहुत समस्या होती है. ऊपर से पानी टपकता रहता है. कई बार तो हम लोग पूरी पूरी रात भीगे भीगे ही बैठे रहते हैं. 

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लता बताती हैं कि पाकिस्तान में हमें बहुत सारी समस्याओं से जूझना पड़ता था. महिलाओं को तो वहां घर से बाहर निकलना भी मुश्किल था. यहां हम कम से कम आजादी से रहते हैं. लगभग 13 साल से हम लोग यहां रह रहे हैं और अब हम चाहते हैं कि बस किसी तरीके से एक पक्का मकान मिल जाए. हमने लता से पूछा कि अगर कोई नेता उनसे मिलने आए तो वो उससे क्या मांगेंगी तो वो कहती है कि वो उनसे पक्का मकान सबसे पहले मांगेंगी. हालांकि इस शरणार्थी कैंप में अभी तक कोई भी नेता चुनाव प्रचार के लिए नहीं पहुंचा है.

शिक्षा और रोजगार भी लोगों का मुद्दा

पाकिस्तानी हिंदुओं के इस मोहल्ले में आपको बने कच्चे मकान लगभग एक जैसे ही दिख जाएंगे लेकिन हर मकान के अंदर की तस्वीर, उसमें रह रहे लोगों के बीच का तानाबाना, कभी कभी अलग सा दिख जाता है. यहां हम एक मकान में पहुंचे. घुसते ही रसोई थी, जहां घर के मुखिया मोहन राम सब्ज़ी बना रहे थे. उनके पास में ही उनकी पत्नी खड़ी थी, जिनका नाम सीता है. सीता बताती हैं कि हमारे घर में ऐसे ही चलता है. ये (पति) सब्ज़ी बना देते हैं और मैं रोटी. 

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सीता बताती हैं कि राजनीति का तो उन्हें कुछ खास समझ में नहीं आ रहा. यहां वैसे भी उनसे दिल्ली का कोई नेता अब तक मिलने नहीं आया तो भला वो किसी के बारे में क्या ही जानें. मेरे दो बेटे पवन और राजकुमार. दोनों ने इस साल 12वीं पास की है. लेकिन इसके बाद वो कॉलेज नहीं गए बल्कि पैसे कमाने के लिए वो छोटा मोटा काम कर रहे हैं. उन्हें समझ नहीं आया कि बच्चों को आगे कैसे पढ़ाया जाए क्योंकि उनके पास पैसे ही नहीं थे. इस चुनाव में सीता के लिए शिक्षा और रोजगार एक बड़ा मुद्दा है. वो कहती हैं कि इतना पढ़ने लिखने के बाद भी बच्चों को मज़दूरी करनी पड़ रही है. ये बिलकुल अच्छा नहीं लगता.

'जिसने नागरिकता दिलाई उसे देंगे वोट'

ये शरणार्थी मोहल्ला यमुना के ठीक किनारे पर बसा हुआ है. ऐसे में बारिश के बाद जब भी यमुना थोड़ी भी उफान पर आती है तो यहां पानी भर जाता है और घरों में पानी घुस जाता है. ऐसे ही एक घर में शांति नाम की महिला खाट पर बैठकर कुछ बुन रही थी. उन्होंने बताया कि जब बाढ़ आती है तो उनके मकान डूब जाते हैं. ये सिलसिला हर साल का है. मकान डूबने के बाद हम सबको सड़क पर रहना पड़ता है. ना खाने का ठिकाना होता है, ना रहने का. वोट किसे देंगे? इस सवाल के जवाब में उन्होंने सीधा जवाब दिया, ‘जिसने नागरिकता दिलाई उसे.’

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मोहल्ले के ठीक बाहर हमें दर्शन लाल मिले, जिन्होंने फुटपाथ पर मोबाइल कवर और एसेसरीज की छोटी सी दुकान लगा रखी थी. दर्शन लाल बताते हैं दिन का 200-300 रुपया ही बचता है. ऐसे में घर चलाना तो बहुत मुश्किल होता है. कोई और अच्छा काम मिल जाए तो मज़ा आ जाए. वो कहते हैं पाकिस्तान किसी नर्क से कम नहीं था, जिसने उस नर्क से निकाला, पहला वोट तो उसी को जाएगा.

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