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झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल होने की अटकलों पर विराम लगाते हुए नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है. झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) से नाराजगी की लंबी अटकलों के बाद चर्चा ये भी थी कि चंपाई सोरेन बीजेपी के संपर्क में हैं. चंपाई दिल्ली पहुंचे और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लंबा-चौड़ा पोस्ट लिखकर जेएमएम छोड़ने का ऐलान कर दिया.
चंपाई ने अपना दर्द भी बयान किया और भविष्य के लिए तीन विकल्पों की भी बात की. अब चंपाई ने ये ऐलान कर दिया है कि वे नई पार्टी बनाने जा रहे हैं. चंपाई का नई पार्टी बनाना जेएमएम और हेमंत सोरेन के लिए कैसे मुश्किलें ज्यादा बढ़ाएगा, इसकी बात करने से पहले पूर्व सीएम की ताकत और प्रभाव की चर्चा भी जरूरी है.
चंपाई सोरेन झारखंड की सबसे बड़ी आदिवासी जाति संथाल से आते हैं. सूबे की कुल आबादी में करीब 26 फीसदी आदिवासी हैं. आदिवासी आबादी की बात करें तो इसमें 32 फीसदी भागीदारी संथाल समाज की है. संथाल समाज से ही सीएम हेमंत सोरेन का परिवार भी आता है और ये आदिवासी जाति जेएमएम की कोर वोटर मानी जाती है. चंपाई सोरेन की गिनती प्रभावशाली संथाल नेताओं में होती है. उनका झारखंड के कोल्हान क्षेत्र में मजबूत प्रभाव माना जाता है. कोल्हान रीजन में चंपाई जहां से विधायक निर्वाचित होते हैं, उस सरायकेला जिले के साथ ही पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम भी आते हैं. इन जिलों में 14 विधानसभा सीटें हैं. कोल्हान के लिए रणनीति तय करनी हो या उम्मीदवार, जेएमएम की फ्रंट सीट पर चंपाई ही नजर आते रहे हैं.
चंपाई की पार्टी कैसे बढ़ाएगी ज्यादा मुश्किलें
आदिवासी वोटबैंकः चंपाई भी आदिवासी हैं और उसी संथाल समाज से हैं जिससे हेमंत सोरेन भी हैं. चंपाई की पार्टी का टार्गेट भी जेएमएम के कोर आदिवासी, खासकर संथाल वोटबैंक ही होगा. चंपाई के नई पार्टी बनाने पर हेमंत के लिए आदिवासी वोटों की गोलबंदी मुश्किल हो सकती है.
पार्टी को एकजुट रखनाः चंपाई के पार्टी बनाने के बाद पार्टी में कोई टूट न हो, चुनावी मौसम में ये मुश्किल चुनौती भी जेएमएम के सामने होगी. असंतुष्ट नेताओं को भी एक विकल्प मिल जाएगा. चुनावी मौसम में टिकट नहीं मिलने से नाराज नेता चंपाई की पार्टी का रुख कर सकते हैं और ऐसे में जेएमएम के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.
आदिवासी अस्मिताः लोकसभा चुनाव में जेएमएम ने हेमंत की गिरफ्तारी को आदिवासी अस्मिता से जोड़ दिया था. विधानसभा चुनाव में भी पार्टी इसी रणनीति के साथ बढ़ रही है. चंपाई की बगावत ने बीजेपी को आदिवासी अस्मिता के मुद्दे पर पलटवार का मौका दे दिया है. चंपाई अगर बीजेपी में शामिल हो जाते तो आदिवासी अस्मिता की पिच पर हेमंत मजबूत हो सकते थे. तब मुकाबला जेएमएम बनाम बीजेपी होता और हेमंत के वोट बंटने का खतरा नहीं होता. चंपाई के अलग पार्टी बना लेने से उनको सोरेन के लिए अपनी इस मजबूत पिच को बचाए रखना भी मुश्किलों भरा हो सकता है.
मंईयां योजनाः जेएमएम नेताओं और सीएम हेमंत को भरोसा है कि महिलाओं के लिए शुरू की गई मंईयां योजना गेमचेंजर साबित होगी. इस योजना का ऐलान चंपाई सोरेन के सीएम रहते हुआ था. चंपाई भी इस योजना को अपनी उपलब्धि के रूप में जनता के बीच लेकर जाएंगे. ऐसे में ये क्रेडिट वॉर भी हेमंत के लिए मुश्किलें बढ़ा सकती है.
क्या कहते हैं जानकार?
वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि चंपाई का प्रभाव कोल्हान के बाहर उतना नहीं है. कोल्हान रीजन में विधानसभा की 14 सीटें हैं. चंपाई का इस इलाके में दबदबा रहा है लेकिन ये भी एक पहलू है कि उनके पीछे सबसे बड़े संथाली नेता शिबू सोरेन का नाम और उनकी विरासत जेएमएम रहे हैं. एक नैरेटिव ये भी चल रहा है कि चंपाई बीजेपी के प्लान पर काम कर रहे हैं और कोल्हान के करीब दर्जनभर विधायक तोड़ पार्टी में शामिल कराने का प्लान था. इससे ये माहौल बनता कि जेएमएम में भगदड़ मची है. ऐसा हुआ नहीं और फिर प्लान बी तय हुआ कि चंपाई पार्टी बनाएं.
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उन्होंने कहा कि इसमें कितनी सच्चाई है, ये बीजेपी और चंपाई ही जानें लेकिन इसके पीछे रणनीति यही बताई जा रही है कि अगर चंपाई जेएमएम के वोटबैंक में थोड़ी बहुत भी सेंध लगा पाते हैं और बीजेपी का वोट इंटैक्ट रहता है तो विपक्षी दल के जीतने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं.
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राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि चंपाई सोरेन के नई पार्टी बनाने से जेएमएम को नुकसान की जितनी आशंकाएं हैं, उतनी ही लाभ की संभावनाएं भी. हालिया लोकसभा चुनाव में जयराम महतो की झारखंडी भाषा खतियानी संघर्ष समिति कम से कम तीन सीटों पर जेएमएम की हार का कारण बनी. जयराम की पार्टी के मैदान में आने से सरकार विरोधी वोट बंटे. खुद जयराम को गिरीडीह में तीन लाख से ज्यादा वोट मिले तो वहीं दो और सीटों पर पार्टी एक लाख से अधिक वोट पाने में सफल रही. इसका लाभ बीजेपी को मिला. चंपाई की पार्टी के आने से एंटी गवर्नमेंट वोट बंटे तो जेएमएम को इसका लाभ भी मिल सकता है. चंपाई अगर आदिवासी वोटबैंक में सेंध लगाने में सफल रहे तो निश्चित रूप से जेएमएम को नुकसान पहुंचेगा.
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पिछले चुनाव में कोल्हान की 10 सीटों पर जेएमएम और कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार बड़े अंतर से जीते थे. चार सीटें ही ऐसी थीं जहां हार-जीत का अंतर 10 फीसदी से कम रहा था. तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास खुद भी जमशेदपुर सीट से हार गए थे. जमशेदपुर भी कोल्हान रीजन में ही आता है. इस रीजन में बीजेपी की बड़ी हार को आधार बनाकर जेएमएम चंपाई चैप्टर को बीजेपी की रणनीति साबित करने में जुट गई है. इसके पीछे रणनीति यही है कि आदिवासी वोटबैंक को अपने साथ लामबंद रखा जा सके.