Advertisement

चुनावी मौसम में वीरान हुए गुरुग्राम के लेबर चौक... बिना काम किए ​हर दिन 800 से 1000 रुपये कमा रहे श्रमिक, खाना भी मुफ्त

हरियाणा में 5 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी दलों का प्रचार अभियान जोर पकड़ चुका है. राजनीतिक दलों को अपने बड़े नेताओं की रैलियों में भीड़ दिखानी होती है. इन रैलियों में भीड़ बनने के लिए इन मजदूरों की काफी मांग है.

  रैलियों में भीड़ बढ़ाने के लिए राजनीतिक दल लेबर चौक से श्रमिकों को दिहाड़ी पर हायर करते हैं. (PTI Photo) रैलियों में भीड़ बढ़ाने के लिए राजनीतिक दल लेबर चौक से श्रमिकों को दिहाड़ी पर हायर करते हैं. (PTI Photo)
aajtak.in
  • गुरुग्राम,
  • 20 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 8:35 AM IST

मिलेनियम सिटी के नाम से मशहूर गुरुग्राम में 'लेबर चौक' इन दिनों वीरान नजर आ रहे हैं. इसलिए नहीं कि कोई त्योहार नजदीक है, जिस कारण वर्कर्स छुट्टी पर चले गए हों. निर्माण गतिविधियों पर भी प्रतिबंध नहीं है. लेबर चौक पर यह वीरानी इसलिए है, क्योंकि कामगारों को  इन दिनों दिहाड़ी की बजाय राजनीतिक रैलियों में शामिल होने का बेहतर विकल्प मिल गया है. हर सुबह श्रमिक शहर में चिन्हित स्थानों पर इकट्ठा होते हैं, जिन्हें लेबर चौक कहा जाता है. जिसको भी अपने यहां कामगारों की जरूरत होती है, वे लेबर चौक पहुंचते हैं और यहां से मजदूरी वगैरह तय करके श्रमिकों को काम के लिए ले जाते हैं.

Advertisement

आमतौर पर लेबर चौक त्योहारों से पहले वीरान नजर आते हैं, क्योंकि मजदूर अपने गृहनगर गए होते हैं. सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर जब वायु प्रदूषण से जूझता है, तब निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है. इस दौरान भी लेबर चौक वीरान नजर आते हैं. हालांकि, हरियाणा में 5 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी दलों का प्रचार अभियान जोर पकड़ चुका है. राजनीतिक दलों को अपने बड़े नेताओं की रैलियों में भीड़ दिखानी होती है. इन रैलियों में भीड़ बनने के लिए इन मजदूरों की काफी मांग है और इसके लिए राजनीतिक दल इन्हें दिहाड़ी पर हायर कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें: गरीबों को दो कमरे का मकान, महिलाओं को हर महीने 2 हजार... हरियाणा चुनाव के लिए कांग्रेस ने जारी किया गारंटी पत्र

प्रत्येक रैली के 800 से 1000 रुपये तक मिलते हैं

Advertisement

आठ साल से गुरुग्राम में रह रहे बिहार के मजदूर सुंदर ने पीटीआई को बताया, 'ज्यादातर पार्टियों और उम्मीदवारों को अपनी रैलियों में भीड़ की आवश्यकता होती है. यह काम हमारे लिए कम मेहनत वाला है और हमें ​एक दिन की मजदूरी के बराबर पैसे मिल जाते ​हैं. प्रत्येक रैली के लिए हमें 800 रुपये से 1,000 रुपये मिलते. अगर हम मजदूरी के लिए जाते हैं तो हमें दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद इतने पैसे मिलते हैं. इसलिए मैं और मेरा परिवार इन दिनों लेबर चौक पर नहीं जाते और राजपीतिक रैलियों में भाग ले रहे हैं.'

अपने परिवार के सदस्यों के साथ रैली में जाते हैं

सुंदर, गुरुग्राम में मतदाता नहीं हैं. उन्होंने बताया कि या तो राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि रैलियों में भीड़ जुटाने के लिए अपने श्रमिक संघ नेताओं के पास पहुंचते हैं या मजदूर सीधे उम्मीदवारों के कार्यालयों में जाते हैं. उनकी पत्नी घरों में डोमेस्टिक हेल्प के रूप में काम करती हैं. वह भी इन दिनों राजनीतिक रैलियों में अपने पति सुंदर के साथ शामिल होती हैं. सुंदर ने पीटीआई को बताया, 'मेरे पत्नी के लिए छुट्टी लेना मुश्किल है. वह जिन घरों में काम कर रही हैं, वहां छुट्टी करने पर पैसे काट लिए जाते हैं. हालांकि, एक दिन की छुट्टी पर उनका जितना पैसा कटता है, उससे कहीं बेहतर भुगतान रैलियों ने शामिल होने के लिए मिलता है और इसके साथ मुफ्त भोजन भी मिलता है.'

Advertisement

यह भी पढ़ें: महिलाओं को हर माह 2 हजार, 500 में सिलेंडर.... हरियाणा चुनाव को लेकर कांग्रेस का गारंटी पत्र जारी

एक अन्य मजदूर मोहन जो उत्तर प्रदेश के बलिया के रहने वाले हैं, उन्होंने पिछले साल गुरुग्राम में बतौर मतदाता अपना रजिस्ट्रेशन करा लिया. उन्होंने न्यूज एजेंसी पीटीआई से बातचीत में कहा, 'कंस्ट्रक्शन का काम मौसम के हिसाब से चलता है. बारिश शुरू होने के बाद से काम भी कम हो जाता है. अक्टूबर और नवंबर दिवाली और छठ के महीने हैं, इसलिए मजदूर लंबी छुट्टियों पर अपने गृहनगर चले जाते हैं. सर्दियों के दौरान प्रदूषण के कारण निर्माण गतिविधियों पर रोक लग जाती है, उस दौरान भी हमें काम नहीं मिलता. इसलिए, मैं इन रैलियों में शामिल होता हूं. जरूरी नहीं एक ही पार्टी की रैली में जाऊं. अलग-अलग पार्टियों की रैलियों में भी जाता हूं. यह पहली बार है जब मैं गुरुग्राम में मतदान करूंगा.'

कार्यकर्ताओं पर होती है भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी

एक राजनीतिक दल के जिला स्तरीय कार्यकर्ता ने रैलियों के लिए मजदूरों को हायर करने की पुष्टि की. उन्होंने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, 'केंद्रीय नेतृत्व का जब कोई बड़ा नेता आ रहा होता है, तो शक्ति प्रदर्शन के लिए रैली में भीड़ का होनी चाहिए. हम रैलियों में अधिकतम लोगों को शामिल करने के लिए जमीन पर अपनी नेटवर्किंग का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन हमें भीड़ दिखाने के लिए कुछ तरीकों का भी उपयोग करना पड़ता है.' पंजाब-हरियाणा सीमा पर गुलहा चीका गांव के टैक्सी संचालक बिन्नी सिंघला के अनुसार, राजनीतिक रैलियों में हमेशा भुगतान वाली भीड़ की मांग रहती है.

Advertisement

यह भी पढ़ें: UP में योगी बनाम अखिलेश, उपचुनाव से पहले छिड़ी जुबानी जंग तेज, देखें शंखनाद

उन्होंने कहा, 'हरियाणा में कहीं भी बड़ी राजनीतिक रैलियों के लिए गाड़ियों के साथ-साथ भीड़ जुटाने के लिए टैक्सी ऑपरेटरों से संपर्क किया जाता है. स्थानीय रैलियों के लिए पार्टियां लेबर चौक से मजदूरों को उठाती हैं. श्रमिकों पर कोई बाध्यता नहीं होती कि वे किसे वोट दें, उन्हें उनकी दिहाड़ी के आधार पर भुगतान किया जाता है. आम तौर पर ये लोग ग्रुप बनाकर रहते हैं. ताकि पार्टियां को भी दिक्कत न हो और वे 50-100 लोगों तक एक साथ पहुंच सकें.' हरियाणा में 90 सदस्यीय विधानसभा के लिए मतदान 5 अक्टूबर को होगा जबकि वोटों की गिनती 8 अक्टूबर को होगी.
 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement