
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजों का असर का न सिर्फ स्टेट और नेशनल पॉलिटिक्स पर असर हुआ है. बल्कि इससे कांग्रेस-बीजेपी की गठबंधन करने की क्षमता पर प्रभाव पड़ा है. लोकसभा चुनाव के बाद अनिच्छा से ही सही INDIA ब्लॉक के घटक दलों को कांग्रेस के प्रति सम्मान दिखाना पड़ा था. राहुल की प्रतिष्ठा और प्रभाव दोनों में ही वृद्धि हुई थी.
लेकिन इन नतीजों ने महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में कांग्रेस के सहयोगियों को राहुल से सवाल पूछने का मौका दे दिया है. वही इन नतीजों ने सहयोगियों के साथ बीजेपी की तोल-मोल की शक्ति बढ़ा दी है.
अब इसे आने वाले चुनावी राज्यों के संदर्भ में समझते हैं. सबसे पहले बात महाराष्ट्र की.
चुनाव नतीजे आते ही बीजेपी के कट्टर आलोचक रहे संजय राउत की प्रतिक्रिया गौर करने लायक रही. संजय राउत ने कहा कि बीजेपी ने शानदार तरीके से चुनाव लड़ा. बीजेपी ने बेहतरीन चुनाव लड़ा. बीजेपी ने हारी हुई बाजी जीत ली.
कांग्रेस की ओर साफ इशारा करते हुए संजय राउत ने कहा कि हमकश्मीर इसलिए जीते क्योंकि INDIA ब्लॉक ने मिलकर चुनाव लड़ा. हरियाणा हारे क्योंकि कांग्रेस को लगता था कि हमें कोई नहीं चाहिए, हम तो खुद ही ताकतवर है और जीत जाएंगे.
संजय राउत की बातों का मतलब साफ है कि जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे की बात आएगी तो उद्धव ठाकरे की शिवसेना अपने लिए अधिक से अधिक सीटें मांगेंगी और कांग्रेस को उनसे जबरदस्त मोलभाव करना पड़ेगा.
शिवसेना (UBT) नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने तो इस ओर इशारा भी कर दिया. प्रियंका ने कहा कि कांग्रेस को गठबंधन धर्म निभाना चाहिए. कांग्रेस अपना आत्मचिंतन करे. आने वाले राज्यों के चुनाव में कांग्रेस गठबंधन के साथ लड़े. प्रियंका ने मांग की कि महाराष्ट्र में CM कैंडिडेट की घोषणा चुनाव से पहले होनी चाहिए.
संजय राउत की बात को दोहराते हुए प्रियंका ने कहा कि INDIA गठबंधन ने जम्मू और कश्मीर ने अच्छा काम किया है और सरकार बनने वाली है लेकिन हरियाणा में कांग्रेस ने ही ये लड़ाई लड़ी थी, वहां पर गठबंधन बन नहीं पाया था और उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
महाराष्ट्र में कांग्रेस की चुनौती और दांव दोनों ही अधिक है. यहां पर पार्टी को एनसीपी के साथ भी सीटें शेयर करनी है. शरद पवार की एनसीपी भी राज्य में अपने लिए ज्यादा से ज्यादा सीटें मांग रही है.
इस बीच कांग्रेस ने महाराष्ट्र में अपने सहयोगी दलों को याद दिलाया है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ही नंबर वन पार्टी थी और ये बात सहयोगियों को याद रखनी चाहिए. पार्टी नेता जयराम रमेश रने कहा,"महाराष्ट्र में, मैं याद दिलाना चाहता हूं कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पहले स्थान पर थी और गठबंधन धर्म यह है कि हम मुद्दों पर आपस में चर्चा करें, मीडिया के माध्यम से नहीं." आगे उन्होंने कहा, "हम महाराष्ट्र में गठबंधन में हैं, गठबंधन को मजबूत करना हमारी जिम्मेदारी है. हम अपने सहयोगियों के बारे में कुछ नहीं कहेंगे."
कांग्रेस यहां सहयोगियों के सामने तीन महीने पहले का रिपोर्ट कार्ड पेश कर रही है लेकिन उसकी सहयोगी पार्टियां ताजा-ताजा रिपोर्ट कार्ड कांग्रेस को दिखा रही हैं. जहां उसका प्रदर्शन उस स्तर का नहीं रहा है जैसी की अपेक्षा उससे की जा रही थी. लिहाजा कुछ ही दिन बाद जब कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (SP) के साथ सीटों के बंटवारे के लिए बैठेगी तो जबरदस्त रस्साकशी तय है.
वहीं हरियाणा के नतीजे महाराष्ट्र के संदर्भ में बीजेपी के लिए मोल तोल की शक्ति में इजाफा साबित करने वाले होंगे. यहां शिवसेना चाहती है कि चुनाव मौजूदा सीएम एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में लड़ा जाए. बीजेपी ने इस बारे में अपनी रणनीति जाहिर नहीं की है. लेकिन इस चुनाव के नतीजे बीजेपी को नैतिक ताकत देते हैं कि वो सीटों के बंटवारे से लेकर सीएम चेहरे पर ज्यादा से ज्यादा बारगेनिंग कर सके.
दिल्ली
दिल्ली में भी कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने को हैं. गौरतलब है कि यहां लोकसभा चुनाव कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर लड़ी थी. लेकिन यहां के चुनाव में इन दोनों पार्टियों में से किसी को भी एक भी सीट नहीं मिली थी. इसके बाद ये गठबंधन टूट सा गया था. अब हरियाणा में कांग्रेस की हार आम आदमी पार्टी के फिसड्डी प्रदर्शन के बाद दिल्ली में गठबंधन की आस भी शून्य हो गई.
हरियाणा नतीजों के बाद आम आदमी की प्रवक्ता प्रियंका कक्कर ने साफ कह दिया कि दिल्ली में कांग्रेस के साथ विधानसभा चुनाव के लिए कोई गठबंधन नहीं होगा. प्रियंका कक्कर ने कहा कि कांग्रेस के हार की वजह अति आत्मविश्वास है. इन्होंने समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया. जबकि इन्हीं दलों ने यूपी और दिल्ली में कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए ज्यादा सीटें दी थी.
झारखंड
झारखंड में इसी साल के अंत तक चुनाव होने वाले हैं. यहां INDIA ब्लॉक में कांग्रेस के अलावा, जेएमएम, आरजेडी शामिल है. हरियाणा का नतीजा कांग्रेस के लिए मनोवैज्ञानिक रोड़ा साबित होगा. कांग्रेस यहां जेएमएम के सामने रोटेशन पर सीएम बनाने की शर्त पर अड़ी हुई थी, अब इन नतीजों से वो पीछे हटेगी. गौरतलब है कि रोटेशन के सवाल पर ही अभी तक झारखंड में इंडिया ब्लॉक में सीटों का बंटवारा नहीं कर पाया है.
वहीं इन नतीजों ने झारखंड में बीजेपी को आत्मविश्वास दिया है. झारखंड में वापसी की राह देख रही बीजेपी को AJSU के साथ सीटों का बंटवारा करना है. ऐसे में इन नतीजों के बाद बीजेपी ज्यादा से ज्यादा तोल-मोल करने की स्थिति में होगी. हरियाणा की जीत से गदगद प्रदेश अध्यक्ष ने दावा किया झारखंड में भी बीजेपी भारी बहुमत के साथ सरकार बनाएगी.
उत्तर प्रदेश
अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो अखिलेश यादव ने विधानसभा उपचुनाव के लिए मझवां और फूलपुर सीट पर अपने प्रत्याशी का ऐलान करके कांग्रेस को एक तरीके से ठेंगा दिखा दिया है. अखिलेश का ये कदम कांग्रेस के हरियाणा हारते ही आया है.
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय अपने बेटे शांतनु राय के लिए मझवां सीट चाह रहे थे, जबकि प्रयागराज से जुड़े फूलपुर सदर की सीट पर कांग्रेस पार्टी बहुत मजबूती से अपनी दावेदारी पेश कर रही थी. अखिलेश यादव ने अपनी पहले लिस्ट में ही इन दोनों सीटों पर कांग्रेस के लिए दरवाजे बंद कर दिए.