
लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरा तो इंडिया ब्लॉक में शामिल दलों के साथ सीट शेयरिंग के मुद्दे पर उसकी बारगेनिंग पॉवर भी बढ़ी थी. लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनाव में लगे झटके के बाद कांग्रेस को अपने सहयोगियों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है. ऐसा मालूम पड़ रहा है कि इंडिया ब्लॉक की एकता और अखंडता खतरे में है. हरियाणा विधानसभा चुनाव में हार के बाद आम आदमी पार्टी और शिवसेना यूबीटी ने कांग्रेस पर तंज कसा था और अतिआत्मविश्वासी नहीं होने की सीख दे डाली थी.
अब झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले इंडिया ब्लॉक में शामिल प्रमुख सहयोगी दल राष्ट्रीय जनता दल ने भी तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं. राजद ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस द्वारा राज्य की 81 में से 70 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा को लेकर शनिवार को निराशा जताई थी. वहीं रविवार को आरजेडी सांसद मनोज झा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट कह दिया कि हमें झारखंड में 12-13 सीटों से कम स्वीकार नहीं है.
मनोज झा ने कहा, 'झारखंड में 18-20 सीटों पर राष्ट्रीय जनता दल की मजबूत पकड़ है और 12-13 सीटों से कम हमें कबूल नहीं है. हमारा एकमात्र उद्देश्य बीजेपी को हराना है. झारखंड में अगर हम अकेले भी चुनाव लड़ेंगे तो इंडिया ब्लॉक को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे और 60-62 सीटों पर कांग्रेस-झामुमो उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे. राजद ने झारखंड में कम से कम 15 से 18 ऐसी सीटों की पहचान की है जहां वह अपने दम पर भारतीय जनता पार्टी को मात दे सकती है. 2019 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने सात सीटों पर चुनाव लड़ा था और एक सीट जीती थी. पांच सीटों पर वह दूसरे स्थान पर रही थी.'
प्रभाव वाली सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी राजद
राजद नेता ने कहा, 'हमने आपके (मीडिया) माध्यम से सब कुछ सामने रख दिया है, क्योंकि हमें विश्वास है कि हम यह लड़ाई जीतेंगे. अगर हम एकजुट रहेंगे तो जीतेंगे. यदि हम कुछ सीटों पर चुनाव लड़ते हैं, जिनका हमने पहले उल्लेख किया है, तब भी हम उस विकल्प (इंडिया ब्लॉक) का हिस्सा होंगे जो भाजपा के खिलाफ है. हमारी राजनीति साफ है...नैया डूबने नहीं देंगे, अंत तक प्रयास करेंगे...सीएम हेमंत सोरेन होंगे. चूंकि उन्हें सीएम बनाना है, इसलिए व्यापक जनाधार वाली पार्टी (राजद) के लिए संवेदनशील नजरिया अपनाना चाहिए. हम 60-62 सीटों पर आपकी (कांग्रेस-झामुमो) खुलकर मदद करेंगे...लेकिन 2014 और 2019 में जहां भी हमारे उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे, और जहां भी हाल में हमारी पार्टी का प्रभाव बढ़ा है, हम वहां आएंगे (वहां पार्टी के उम्मीदवार उतारेंगे)...सीटवार विवरण जल्द साझा करेंगे. हमारा एकमात्र उद्देश्य बीजेपी को हराना है.'
महाराष्ट्र में भी MVA में सीट शेयरिंग पर खींचतान
ऐसा ही कुछ माजरा महाराष्ट्र में भी देखने को मिल रहा है. यहां विदर्भ की 12 सीटों पर कांग्रेस और शिवसेना यूबीटी दोनों दावा ठोक रहे हैं. इधर भाजपा, शिवसेना, एनसीपी गठबंधन ने सीट शेयरिंग पर सहमति बना ली है और बीजेपी ने तो 99 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का भी ऐलान कर दिया है. विदर्भ की सीटों पर जारी मतभेद सुलझाने के लिए उद्धव सेना और कांग्रेस दोनों शरद पवार के पास पहुंचे हैं. इधर यूपी में होने वाले उपचुनाव में भी समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से हरियाणा का बदला लेने का संकेत दिया है.
यूपी में सपा ने कांग्रेस को ऑफर कीं सिर्फ दो सीटें
हरियाणा में सपा ने कांग्रेस से कुछ सीटें मांगी थीं, लेकिन दीपेंद्र हुड्डा ने यह कहकर अखिलेश की पार्टी का दावा खारिज कर दिया था कि हरियाणा में उसका कोई प्रभाव नहीं है. यूपी में कांग्रेस उपचुनाव वाली 10 में से 5 सीटें चाह रही थी, लेकिन समाजवादी पार्टी उसे 2 से ज्यादा सीट देने के मूड में नहीं है. सपा ने कांग्रेस को गाजियाबाद सदर और अलीगढ़ की खैर सीट ऑफर की है. कांग्रेस प्रयागराज की फूलपुर सीट भी चाहती है, लेकिन सपा ने यहां से मुस्तफा सिद्दीकी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है.
दिल्ली में AAP ने दिए अकेले चुनाव लड़ने के संकेत
हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने तंज भरे लहजे में कहा था- अतिआत्मविश्वास का नतीजा यही होता है. बता दें कि हरियाणा चुनाव के लिए सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बनने के कारण कांग्रेस और AAP के बीच गठबंधन नहीं हो सका था. दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव नजदीक है. उससे पहले आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने एक बयान में संकेत दे दिया था कि AAP दिल्ली में अकेले ही चुनाव लड़ेगी.
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावना के बारे में पूछे जाने पर राघव चड्ढा ने कहा, 'दिल्ली में AAP अपने दम पर बीजेपी को हराने में पूरी तरह सक्षम है. मुझे नहीं लगता कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी को किसी समर्थन या पार्टनर की जरूरत है.' इधर जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का व्यक्तिगत प्रदर्शन निराशाजनक रहा था. उसने 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था और सिर्फ 6 सीटें जीत सकी थी. इसके विपरीत उसकी सहयोगी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 51 सीटों पर चुनाव लड़ा था 42 सीटें जीतने में कामयाब रही.
कमजोर पड़ रही इंडिया ब्लॉक के दलों की एकता?
इसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस को जम्मू-कश्मीर सरकार में मनचाहा मंत्रालय नहीं मिला. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने निर्दलीयों की मदद से सरकार बनाई और कांग्रेस उसे बाहर से समर्थन दे रही है. इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस पार्टी ने जो मोमेंटम और कॉन्फिडेंस हासिल किया था, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजों से उसे बड़ा डेंट लगा है. कांग्रेस के सहयोगी दल अब खुलकर कह रहे हैं कि बीजेपी के साथ सीधे मुकाबले में वह कमजोर पड़ जाती है. आरजेडी, सपा, AAP, शिवसेना यूबीटी के हालिया स्टैंड से यही संदेश जाता है कि इंडिया ब्लॉक में दलों के बीच एकता कमजोर पड़ रही है.