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विधानसभा चुनाव के नतीजे कुछ भी हों... जम्मू-कश्मीर में पहली बार दिखेंगे ये बदलाव

2019 के बाद से जम्मू और कश्मीर में कई अहम बदलाव हुए हैं. 2019 में अनुच्छेद 370 को हटने के बाद जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म हो गया और इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. इस निर्णय ने राजनीतिक माहौल को पूरी तरह बदल दिया है.

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे आ हो रहे हैं घोषित (तस्वीर: इंडिया टुडे) जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे आ हो रहे हैं घोषित (तस्वीर: इंडिया टुडे)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 08 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 8:04 AM IST

सियासी गलियारों में इस बार जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव की खूब चर्चा हो रही है. कश्मीर की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए यह चुनाव कई मायनों में खास है. जम्मू-कश्मीर में 370 हटने के बाद पहली बार हुए चुनाव हुए और बड़ी संख्या में लोगों ने वोट डाले. नई सरकार किसकी बनेगी? कौन मुख्यमंत्री का ताज पहनेगा? इन सारे सवालों पर से आज परदा हट जाएगा.

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विधानसभा चुनाव के नतीजे कुछ भी हों लेकिन राज्य में हुए बदलाव किसी से छिपे नहीं हैं. यह चुनाव कई वर्षों की उथल-पुथल और विशेष दर्जे को खत्म किए जाने के बाद क्षेत्र की भविष्य की शासन व्यवस्था में संभावित स्थायी बदलाव को दर्शाता है. 

10 साल में पहला विधानसभा चुनाव
राज्य में इस बार 10 साल के लंबे अंतराल के बाद विधानसभा चुनाव हुआ. 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में पीड़ीपी सबसे बड़ा दल बनकर उभरी थी जबकि बीजेपी दूसरी बड़ी पार्टी बनी थी. तब बीजेपी और पीडीपी ने गठबंधन कर राज्य में सरकार बनाई थी. तब अलगाववादी समूहों के बहिष्कार के आह्वान के बावजूद 66 प्रतिशत के आसपास मतदान हुआ था. 370 समाप्त करने के बाद लंबे समय तक राज्यपाल यहां सर्वेसर्वा रहे.

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केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पहला चुनाव
2019 के बाद से जम्मू और कश्मीर में अहम बदलाव हुए हैं. 9 अगस्त 2019 को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 पारित किया गया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों अर्थात् जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश में पुनर्गठित किया गया था. इस बदलाव के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है. अब यहां की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल की जगह देश के बाकी हिस्सों की तरह 5 साल का ही होगा. 

370 हटने के बाद पहला चुनाव
2019 में अनुच्छेद 370 को हटने के बाद जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म हो गया और इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. इस निर्णय ने राजनीतिक माहौल को पूरी तरह बदल दिया है. विधानसभा चुनाव में कई नेताओं अनुच्छेद 370 की बहाली और राज्य के विशेष दर्जे को लेकर जनता से अपने वादे किए.यह  कश्मीर घाटी में महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा रहा.

लद्दाख के बगैर पहला चुनाव
2019 में केंद्र ने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया और विशेषाधिकार समाप्त हो गए. इसके साथ ही जम्मू कश्मीर और लद्दाख अलग-अलग दो केंद्र शासित प्रदेश बना दिए. लद्दाख के बगैर यह पहला चुनाव है और सभी की नजरें इस पर बनी हुई हैं.

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परिसीमन के बाद की नई तस्वीर
परिसीमन से पहले जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की 111 सीटें थीं. इनमें से 46 कश्मीर में, 37 जम्मू में और चार सीटें लद्दाख में थीं. यानि जम्मू-कश्मीर में 87 सीटें थी. इनके अलावा 24 सीटें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में थीं. लद्दाख के अलग केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद पुनर्गठन अधिनियम में इन सीटों को बढ़ाकर 114 कर दिया गया है.इनमें 90 सीटें जम्मू-कश्मीर के लिए और 24 पीएके के लिए हैं.  परिसीमन के बाद जम्मू संभाग में 6 और सीटें जुड़ जाने से राजनीतिक महत्व बढ़ गया है. जम्मू में कुल सीटों की संख्या 43 हो गई है. इसी तरह कश्मीर संभाग में पहले 46 सीटें थीं, जो अब बढ़कर 47 हो गईं हैं.

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पहली बार ST के लिए 9 सीट आरक्षित
 लद्दाख अलग होने से इस क्षेत्र के पॉलिटिकल सिनेरियो पर गहरा असर पड़ा. परिसीमन ने सीमाओं को नया आकार दिया है और अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण नीतियों में बदलाव किया है. परिसीमन आयोग ने जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जनजाति के लिए 9 सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया था. थाना मंडी, सुरनकोटे, राजौरी, बुधल, कोकरनाग, गुरेज, पुंछ हवेली, मेंधर और गुलबर्ग सीट को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रहीं. इसके अलावा पहले दो मनोनीत सदस्य थे, अब यह संख्या पांच होगी. विस्थापित कश्मीरियों के लिए भी दो सीटें आरक्षित हैं.

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