Advertisement

झारखंड: कोयलांचल और सिंह मेंशन की सियासत कैसे बदल रही है? झरिया में जेठानी-देवरानी की फाइट

धनबाद की झरिया सीट को लेकर वर्चस्व की लड़ाई है. 2014 के चुनाव में में चेचेरे भाई आमने-सामने थे तो वहीं 2019 ककी जंग जेठानी-देवरानी के बीच थी. इस बार भी मुकाबला जेठानी और देवरानी के बीच ही है.

झरिया सीट पर जेठानी और देवरानी में चुनावी फाइट झरिया सीट पर जेठानी और देवरानी में चुनावी फाइट
सत्यजीत कुमार
  • रांची,
  • 25 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 11:26 AM IST

धनबाद यानी देश की कोयला राजधानी का नाम आते ही माफिया और गैंगवार , गैंग्स ही  जेहन में आते हैं. जाहिर है ऐसा वहां के रक्त रंजित इतिहास और वर्चस्व के लिए होने वाले खून खराबे की वजह से ही है. धनबाद की झरिया सीट को लेकर वर्चस्व की लड़ाई है. 2014 के चुनाव में में चेचेरे भाई आमने-सामने थे तो वहीं 2019 ककी जंग जेठानी-देवरानी के बीच थी.

Advertisement

झारखंड का चुनावी कुरुक्षेत्र फिर से सज गया है और इस बार के चुनाव में भी 2019 वाली लड़ाई का ही रीकैप है. झरिया से मौजूदा विधायक पूर्णिमा सिंह कांग्रेस से मैदान में हैं जिनके सामने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उनकी ही देवरानी रागिनी सिंह को उतारा है. कोयलांचल की झरिया सीट पर एक ही परिवार की दो बहुओं की चुनावी फाइट है.

इस सीट पर धनबाद के सबसे पावरफुल सियासी खानदान सूर्यदेव सिंह के परिवार की दो बहुएं आमने-सामने हैं. नीरज सिंह की पत्नी और मौजूदा विधायक पूर्णिमा सिंह के सामने पूर्व विधायक संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह की चुनौती है. इस सीट पर 2019 के चुनाव में भी जेठानी पूर्णिमा औऱ देवरानी रागिनी सिंह के बीच ही मुकाबला था. तब पूर्णिमा सिंह पांच हजार वोट से अधिक के अंतर से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचने में सफल रही थीं.

Advertisement

देवरानी और जेठानी, अब दोनों के रहने का ठिकाना अलग है और दोनों ही के परिवारों के बीच दूरियां भी बहुत बढ़ चुकी हैं. 2009 के चुनाव तक धनबाद की सियासत में दबदबा रखने वाला सिंह मेंशन एकजुट था लेकिन इसके बाद परिवार में बढ़ी दूरियों की वजह से एक शाख और निकली- रघुकुल. एक ही परिवार से निकली इन दो साखों की लड़ाई है.

2014 से शुरू हुई सिंह मेंशन-रघुकुल की अदावत

धनबाद की सियासत में 2009 के चुनाव तक सिंह मेंशन का दबदबा था. सिंह मेंशन सिंह परिवार का आवास है जिसे सूर्यदेव सिंह ने बनवाया था. सूर्यदेव सिंह 1977 से 1991 तक झरिया सीट से विधायक रहे और पूरे धनबाद की सियासत में इस परिवार की तूती बोलती थी. सियासत में दबदबा रखने वाला सिंह मेंशन 2009 के चुनाव तक एकजुट था. सूर्यदेव सिंह के निधन के बाद उनकी विरासत उनके भाई बच्चा सिंह ने संभाली. बच्चा सिंह विधायक रहे, झारखंड सरकार में मंत्री भी बने लेकिन सिंह मेंशन में रहने वाले सूर्यदेव सिंह और उनके भाइयों के बच्चे जब बड़े हुए, संपत्ति से लेकर बिजनेस और सियासी विरासत को लेकर टकराव की स्थिति उत्पन्न होने लगी.

साल 2005 में बच्चा सिंह को झरिया सीट सूर्यदेव सिंह की पत्नी कुंती देवी के लिए खाली करनी पड़ी. बच्चा सिंह बोकारो से चुनाव मैदान में उतरे लेकिन हार मिली. यह बात बच्चा सिंह को नागवार लगी और इसी को सूर्यदेव सिंह के परिवार में दरार की शुरुआत कहा जाता है. सूर्यदेव सिंह और उनके भाइयों के बच्चे बड़े हुए तो राजनीतिक विरासत से लेकर बिजनेस, ट्रेड यूनियन और संपत्ति को लेकर आपसी टकराव बढ़ने लगा. दरार बढ़ी तो आवास अलग हुए. सूर्यदेव सिंह के भाई राजनारायण सिंह का परिवार सिंह मेंशन छोड़ रघुकुल में रहने लगा. बच्चा सिंह भी रघुकुल समर्थक हो गए.

Advertisement

यह भी पढ़ें: झारखंड चुनाव: कौन हैं जयराम महतो जो NDA और INDIA गठबंधन के बन सकते हैं चुनौती

राजनारायण सिंह के बड़े बेटे नीरज सिंह राजनीति में सक्रिय हो गए. नीरज सिंह कांग्रेस के टिकट पर 2014 के झारखंड चुनाव में झरिया सीट से उतर गए.नीरज के सामने सूर्यदेव सिंह के पुत्र संजीव सिंह ने बीजेपी के टिकट पर ताल ठोक दी. एक ही छत के नीचे, एक साथ पले-बढ़े दो चचेरे भाइयों की चुनावी फाइट में नतीजा संजीव के पक्ष में गया. नीरज चुनाव हार गए. वे धनबाद के डिप्टी मेयर बने और जनता की समस्याओं को लेकर उनके अप्रोच की तारीफ होने लगी. नीरज की लोकप्रियता धीरे-धीरे बढ़ने लगी. इसी बीच बदमाशों ने मार्च 2017 में स्टील गेट के व्यस्ततम इलाके में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी. हत्या का आरोप संजीव सिंह पर लगा और वह  अब तक जेल में हैं.

2019 से जेठानी-देवरानी की फाइट

नीरज सिंह और संजीव सिंह, दोनों चचेरे भाइयों की राजनीतिक विरासत को अब उनकी पत्नियां संभाल रही हैं. कांग्रेस के नीरज सिंह की हत्या के बाद पूर्णिमा नीरज सिंह ने कमान संभाल ली जो मौजूदा विधायक भी हैं. वहीं, संजीव के जेल जाने के बाद से सियासी मोर्चे पर उनकी पत्नी रागिनी सिंह आ डटीं. रागिनी 2019 में भी बीजेपी के टिकट पर चुनाव मैदान में थीं लेकिन हार गई थीं. इस बार भी कांग्रेस ने मौजूदा विधायक पूर्णिमा सिंह पर विश्वास जताया है तो वहीं बीजेपी ने रागिनी सिंह को उम्मीदवार बनाया है.

Advertisement

यह भी पढ़ें: 'सरकार बनने पर लात मारकर घुसपैठियों को बाहर निकालेंगे', झारखंड में बोले हिमंत बिस्वा सरमा

नीरज के भाई हर्ष ने 2019 में कहा था कि चार दशक से झरिया पर राज करने वाले चचेरे भाई को परिवार को ये बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कि उनकी राह में कोई आए. अगर कोई ये हिमाकत करता है तो उसे रास्ते से हटा दिया जाता है. भय और दहशत का माहौल बना रखा है. स्वर्गीय नीरज सिंह की पत्नी पूर्णिमा उसी भय को दूर करने, झरिया से माफिया का टैग हटाने और जनहित के मुद्दों के साथ चुनाव में जाने की बात करती रही  हैं. पूर्णिमा सिंह ने झरिया सीट से बतौर कांग्रेस उम्मीदवार नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद भी कहा- झरिया को डर और हत्या की राजनीति से दूर करना है.

पूर्णिमा ने जताया जीत का विश्वास

पूर्णिमा ने करोड़ों की योजनाओं के शिलान्यास का जिक्र करते हुए कहा कि कुछ पर काम चल रहा है. सभी कार्यों को पूरा कराना है. उन्होंने ये भी कहा कि अभी कई कार्य कराए जाने हैं. झरिया के विस्थापन के सवाल पर पूर्णिमा ने कहा कि अग्नि प्रभावित क्षेत्रों में बसे लोगों को हटाना जरूरी है लेकिन पिछले पांच साल में किसी के साथ जबरदस्ती नहीं की गई है. डर की राजनीति का इस्तेमाल नहीं हुआ है. विस्थापन ससम्मान होगा. लोग जैसे चाहें, वैसे जाएंगे. उन्होंने अपनी जीत का विश्वास व्यक्त किया.

Advertisement

यह भी पढ़ें: झारखंड: सीट बंटवारे को लेकर INDIA ब्लॉक में दरार, JMM और CPI(ML) के बीच मतभेद

हाल ही में सिंह मेंशन से पृथ्वी मेंशन भी अलग हुआ है. पृथ्वी मेंशन सूर्यदेव सिंह के छोटे भाई रामाधीर सिंह का आवास है. रामाधीर सिंह के पुत्र शशि सिंह की पत्नी आशनी सिंह भी सियासत में सक्रिय हैं. आशनी ने 2017 के यूपी चुनाव में बलिया जिले की बैरिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था. हालांकि, वह हार गई थीं. सूर्यदेव सिंह का पैतृक गांव बैरिया विधानसभा क्षेत्र में ही पड़ता है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement