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हरियाणा में 'खाप पॉलिटिक्स' को समझिए... कितने खाप हैं, कौन प्रमुख चेहरे और किसका बिगाड़ेंगे चुनावी गेम?

हरियाणा की सियासत खाप पॉलिटिक्स का जोर रहा है. खाप का समर्थन कभी जीत की गारंटी माना जाता था. 2014 के हरियाणा चुनाव में ये नैरेटिव टूटा और अब हालिया लोकसभा चुनाव के बाद ये फिर से प्रभावी हो गया है.

खापों ने आम चुनाव में BJP-JJP कालोकसभा चुनाव में खापों ने किया था बीजेपी और जेजेपी का विरोध (फाइल फोटोः पीटीआई) खापों ने आम चुनाव में BJP-JJP कालोकसभा चुनाव में खापों ने किया था बीजेपी और जेजेपी का विरोध (फाइल फोटोः पीटीआई)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 13 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 10:42 AM IST

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में खाप पॉलिटिक्स की चर्चा तेज है. खाप के प्रमुख चेहरों से लेकर इनके समर्थन और विरोध का क्या, कैसे और कितना असर होगा, ये बिंदु भी चर्चा का हॉट टॉपिक बन गए हैं. इसकी वजह ये है कि सोनू अहलावत से लेकर आजाद पालवा तक चुनाव मैदान में उतर चुके हैं. बेरी सीट पर अहलावत खाप से जुड़ीं सोनू के साथ ही अमित अहलावत भी मैदान में हैं. 360 खाप महरौली के प्रमुख गोवर्धन सिंह भी बतौर निर्दलीय मैदान में हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि हरियाणा चुनाव में खाप पॉलिटिक्स कितनी असरदार है, कितने खाप हैं और इसके प्रमुख चेहरे कौन हैं. लेकिन सबसे पहले बात खाप की.

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खाप क्या है?

एक गोत्र या बिरादरी के गोत्र मिलकर खाप का गठन करते हैं. खाप कई गांवों को मिलाकर भी बनाए जाते हैं जो गांव-समाज के छोटे-मोटे विवादों का समाधान करने से लेकर किसी विषय पर सामूहिक राह का निर्धारण करने तक, निर्णायक भूमिका निभाते हैं. खाप का फैसला संबंधित गोत्र, बिरादरी या गांव के लिए अंतिम होता है और इसे सभी को मानना होता है. खाप पंचायतें कई तालिबानी फरमानों को लेकर विवादों में भी रही हैं लेकिन इनका अपना सामाजिक महत्व और स्थान है. जब किसी विषय पर सामूहिक निर्णय लेना होता है, तब सभी खाप मिलकर सर्वखाप बनाते हैं औरा इसका फैसला हर खाप मानता है.

कितने खाप और कौन प्रमुख चेहरे?

हरियाणा जाट बाहुल्य राज्य है और खाप इसकी पहचान से जुड़े हैं. सूबे में करीब 120 खाप हैं जिनमें सर्व खाप, महम चौबीसी, फोगाट खाप, सांगवान खाप, श्योराण, धनखड़, सतगामा, हवेली, मलिक, जाखड़, हुड्डा, कंडेला, बिनैन, गठवाला मलिक आदि प्रमुख हैं. कंडेला खाप के प्रमुख धर्मपाल कंडेला हैं तो वहीं सातबास खाप के बलवान सिंह मलिक. खाप पॉलिटिक्स में फोगाट खाप के प्रमुख बलवंत नंबरदार, सांगवान खाप की अगुवा सोमवीर सांगवान भी मजबूत स्थान रखते हैं.

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खाप ने सरकारों को दिखाया है दम

हरियाणा की सियासत में 2014 के बाद खापों का असर कमजोर पड़ने की बातें हो रही हैं. इसकी अपनी वजह है लेकिन जातीय गोलबंदी के टूल की तरह काम करने वाले खापों का सियासी दखल सूबे में इतना रहा है कि सरकारें और सीएम भी घुटने टेक चुके हैं. 1989 में वीपी सिंह की अगुवाई में बनी सरकार में उपप्रधानमंत्री बनाए जाने के बाद देवीलाल को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. तब वह महम से विधायक थे और महम चौबीसी खाप के समर्थन से चुनाव लड़ते-जीतते आए थे.

देवीलाल के दिल्ली की सियासत में एक्टिव हो जाने के बाद सरकार की कमान उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला के हाथ आ गई और वह महम सीट से चुनाव मैदान में उतरे. महम चौबीसी ने चौटाला के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे आनंद सिंह डांगी को समर्थन दे दिया और इसके बाद हिंसा के कारण बार-बार उपचुनाव स्थगित हुए और उन्हें सीएम पद से इस्तीफा तक देना पड़ गया. जब चुनाव हुए, खाप ने फिर दांगी का समर्थन किया और चौटाला को शिकस्त मिली थी.

पहलवानों के हालिया प्रदर्शन के दौरान भी खापों ने सरकार को बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एक्शन और प्रदर्शनकारियों से बातचीत के लिए 9 जून तक का अल्टीमेटम दिया था. इससे करीब हफ्तेभर पहले ही जंतर-मंतर पर बैठे पहलवानों को गृह मंत्री से बातचीत के लिए बुलावा आ गया था.

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सियासत में खाप कितने असरदार?

हरियाणा की राजनीति में कभी खाप और डेरा के समर्थन को जीत की गारंटी भी माना जाता था लेकिन 2014 के हरियाणा चुनाव में कांग्रेस की हार से सवाल खड़े होने लगे. खापों ने कांग्रेस के समर्थन का ऐलान किया था. तब चुनाव मैदान में उतरे गठवाला खाप के चौधरी दादा बलजीत सिंह और खाप से ही जुड़ीं संतोष दहिया खुद भी हार गए थे.

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लेकिन 2019 के हरियाणा चुनाव और हालिया लोकसभा चुनाव के बाद खाप फिर से प्रभावी भूमिका में आ गए हैं. 2019 के हरियाणा चुनाव में चरखी दादरी सीट से सांगवान खाप के प्रमुख सोमवीर सांगवान बतौर निर्दलीय मैदान में उतरे और बीजेपी की उम्मीदवार बबिता फोगाट को चुनावी दंगल में पटखनी दे दी थी. 2014 और 2019 के आम चुनाव में सूबे की सभी 10 सीटें जीतने वाली बीजेपी पांच सीटों पर हार गई तो इसके पीछे भी खापों का विरोध भी बड़ा फैक्टर था. खापों ने बीजेपी को हराने वाले उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान का आह्वान किया था.

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खापों के असर की बात करें तो ये छोटे शहर, कस्बे और गांवों की सियासत में मजबूत दखल रखते हैं. हर खाप का अपना एक प्रभाव क्षेत्र है. कंडेला खाप की बात करें तो जींद विधानसभा क्षेत्र में इसकी पकड़ मजबूत मानी जाती है. वहीं, गन्नौर, गोहाना, बरौदा, इसराना, सफीदो समेत करीब दर्जनभर विधानसभा सीटों पर गठवाला मलिक खाप अधिक असरदार माना जाता है. पिछले विधानसभा चुनाव में करीब आधा दर्जन सीटों पर इस खाप के समर्थित उम्मीदवार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. सर्व खाप का असर नवाना, टोहाना, उकलाना, बरवाला, कैथल, नारनौंद जैसी विधानसभा सीटों पर है तो वहीं बिनैन खाप नरवाना और उकलाना में अधिक प्रभावी माना जाता है.

किसका बिगाड़ेंगे चुनावी गेम?

इस बार हरियाणा चुनाव में कुछ खाप नेताओं की चुनाव मैदान में एंट्री ने सियासी दलों की टेंशन बढ़ा दी है. कादयान के साथ ही अहलावत, देशपाल और 360 खाप महरौली से भी चुनाव मैदान में उम्मीदवारों की एंट्री हो गई है. अहलावत खाप से जुड़ीं सोनू अहलावत को आम आदमी पार्टी ने बेरी सीट से मैदान में उतारा है. वहीं, पूर्व डिप्टी सीएम दु्ष्यंत चौटाला के खिलाफ उचाना कलां सीट पर 66 गांवों के प्रतिनिधियों की बैठक के बाद खाप ने आजाद पालवा को चुनाव लड़ाने का ऐलान कर दिया.

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अब सवाल है कि खाप किसका गेम बिगाड़ेंगे? लोकसभा चुनाव में खापों ने बीजेपी को हराने वाले को वोट देने का आह्वान किया था. इसका नतीजा ये हुआ कि जाट वोट कांग्रेस के पक्ष में गोलबंद हुआ और पार्टी पांच सीटों पर जीत गई. इस बार खाप से जुड़े लोगों का निर्दल या आम आदमी पार्टी के टिकट पर उतरने से जाट वोट बंटे तो कांग्रेस को नुकसान हो सकता है.

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