
झारखंड और महाराष्ट्र के आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए यह 'करो या मरो' की लड़ाई है. हरियाणा में बीजेपी के साथ सीधी लड़ाई में करारी हार के बाद लय खो चुकी कांग्रेस को अंदर और बाहर दोनों तरफ से कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
पीएम मोदी के खिलाफ राहुल गांधी के हमलों ने न सिर्फ अपनी ताकत खो दी है, बल्कि कांग्रेस ने भी जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में अपने निराशाजनक प्रदर्शन से अपने गठबंधन सहयोगियों को नाराज कर दिया है. प्रतिष्ठा की लड़ाई महाराष्ट्र में लड़ी जाएगी क्योंकि यहां महाराष्ट्र विकास अगाड़ी (एमवीए) महायुति गठबंधन से सत्ता छीनना चाहता है.
कांग्रेस ने अनुभवी नेताओं को दी जिम्मेदारी
कांग्रेस ने उत्तर महाराष्ट्र, विदर्भ, मुंबई और कोंकण, मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र सहित प्रत्येक क्षेत्र में दो-दो पर्यवेक्षकों की नियुक्ति करके जिम्मेदारी पहले ही बांट दी है, जिसमें अनुभवी नेताओं अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, टीएस सिंह देव, सचिन पायलट और नासिर हुसैन सहित अन्य को कांग्रेस की नैय्या पार लगाने का काम सौंपा गया है.
पार्टी को एनसीपी (शरद पवार) और शिवसेना (यूबीटी) के साथ कोऑर्डिनेशन सुनिश्चित करना होगा और इसके लिए शानदार प्रदर्शन करना. मुकुल वासनिक और अविनाश पांडे को इलेक्शन कोऑर्डिनेटर नियुक्त किया गया है.
सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाना चाहती है कांग्रेस
सोमवार को पार्टी शीर्ष नेतृत्व के साथ रणनीति बैठक में अब तक के अभियान की रूपरेखा भी नेताओं को दी गई. 'भ्रष्टयुति अभियान' से लेकर 'लापता लेडीज कांग्रेस' जैसे कैंपेन का इस्तेमाल कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने के लिए कर सकती है.
साथ ही यह भ्रष्टाचार, महिला सुरक्षा, मराठी गौरव और पहचान के मुद्दों पर सत्तारूढ़ सरकार पर हमला करके मतदाताओं को लुभाने की भी एक कोशिश है. यह देखना अहम होगा कि यह कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने में कितना कामयाब होता है.