
बिहार में इसी साल के अंत तक विधानसभा चुनाव हैं और चुनावी साल में सियासी दल गठबंधनों का गणित दुरुस्त करने, जातीय समीकरण सेट करने में जुट गए हैं. सूबे की सत्ता पर काबिज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने पहले ही ये ऐलान कर दिया है कि बिहार चुनाव नीतीश कुमार की अगुवाई में लड़ा जाएगा. विपक्षी महागठबंधन की अगुवाई कर रही लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने भी साफ कर दिया है कि उसकी ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा तेजस्वी यादव होंगे.
सेनापति तय हैं, सेनाएं तैयार हैं. नीतीश कुमार और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से मुकाबले के लिए लालू की पार्टी के साथ पांच सहयोगी दल भी हैं- कांग्रेस, सीपीआई- एमएल, सीपीआई, सीपीएम के साथ ही मुकेश सहनी की अगुवाई वाली विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी). केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस की अगुवाई वाली राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) का भी महागठबंधन में शामिल होना तय बताया जा रहा है. पशुपति सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ लगातार मुखर हैं और यह तक कह दिया है कि जनता जानती है कि हम किसके साथ जाएंगे. उन्होंने 14 अप्रैल को इसे लेकर औपचारिक ऐलान की बात कही है.
पशुपति पारस की पार्टी भी महागठबंधन में शामिल हो जाती है तो इसमें शामिल घटक दलों की संख्या आरजेडी को लेकर सात पहुंच जाएगी. नीतीश कुमार और बीजेपी की जुगलबंदी को पटखनी देने में विपक्षी खेमे में ये 'सात का संगम' कितना सफल होगा या विफल होगा, ये चुनाव नतीजे ही बताएंगे लेकिन बात इन दलों की ताकत और कमजोरियों को लेकर भी हो रही है. विपक्षी गठबंधन में शामिल पार्टियों की ताकत और कमजोरी क्या है?
राष्ट्रीय जनता दल
मजबूती
- पैन बिहार मजबूत संगठन
- तेजस्वी यादव के रूप में युवा चेहरा
- लालू यादव की राजनीतिक विरासत
- यादव और मुस्लिम वोट बैंक
कमजोरी
- यादव- मुस्लिम की पार्टी का इमेज
- लालू यादव और रबड़ी देवी सरकार के समय की कानून-व्यवस्था
- गैर यादव ओबीसी के बीच कमजोर पैठ
- परिवारवादी पार्टी की इमेज
कांग्रेस
मजबूती
- मुस्लिम वोट बैंक में ठीक-ठाक पैठ
- सबसे पुरानी पार्टी का टैग
- किसी जाति की पार्टी का टैग नहीं
-कोसी-सीमांचल में मजबूत
कमजोरी
- वर्षों से प्रदेश में संगठन का न होना
- लालू यादव की छत्रछाया में चलने की इमेज
- किसी मजबूत वोट बैंक पर एकाधिकार नहीं
- कैडर की कमी
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विकासशील इंसान पार्टी
मजबूती
- सहनी जाति के वोट बैंक पर मजबूत पकड़
- मिथिला, खासकर दरभंगा और आसपास मजबूत
- बिहार के अधिकतर हिस्से में संगठन
कमजोरी
- मुकेश सहनी के चेहरे पर निर्भर
- पकड़ एक जाति तक सीमित
- एक बेल्ट तक ही मजबूत मौजूदगी
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लेफ्ट पार्टियां
महागठबंधन में तीन लेफ्ट पार्टियां- सीपीआई-एमएल, सीपीआई और सीपीएम भी शामिल हैं. लेफ्ट पार्टियों की पकड़ भी समय के साथ कमजोर पड़ी है. बिहार में मुख्य धारा की राजनीति पर ट्रेड यूनियन पॉलिटिक्स की छाप मद्धिम पड़ी और लालू यादव, नीतीश कुमार जैसे नेताओं के मजबूत उभार के बाद लेफ्ट कमजोर होता चला गया. लेफ्ट पार्टियों के पास कैडर है, वोट बेस भी है जो किसी अन्य दल के साथ चला जाए तो जीत की संभावनाएं बढ़ा दे.