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बिटकॉइन और Cash for Vote के आरोप, घुसपैठ पर रार... महाराष्ट्र-झारखंड की चुनावी जंग के 11 बड़े फैक्टर

ममहाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव में मतदान हो रहा है. इस सत्ता समर में कई ऐसे फैक्टर भी हैं जो चुनाव नतीजे तय करेंगे. बिटकॉइन और कैश फॉर वोट के आरोप से लेकर ध्रुवीकरण तक, वो कौन से फैक्टर हैं जो चुनाव नतीजे तय करेंगे?

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बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 20 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 10:33 AM IST

महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव अब अपने अंतिम पड़ाव पर है. महाराष्ट्र की 288, झारखंड में अंतिम चरण की 38 विधानसभा सीटों के लिए आज मतदान हो रहा है. तीन दिन बाद 23 नवंबर को विधानसभा चुनाव के नतीजे भी आ जाएंगे. इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाले गठबंधन के साथ ही विपक्षी पार्टियों और गठबंधनों का भी बहुत कुछ दांव पर लगा है.

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उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना (यूबीटी) और एकनाथ शिंदे की शिवसेना, शरद पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एसपी) और अजित पवार की एनसीपी (एपी) के बीच असली-नकली पार्टी की लड़ाई है. झारखंड में बीजेपी और जेएमएम आदिवासी अस्मिता की पिच पर आमने-सामने हैं. दोनों ही राज्यों में जीत-हार कौन से फैक्टर तय करेंगे? मतदान के दिन बात इसे लेकर हो रही है.

हार-जीत तय करेंगे ये फैक्टर

महाराष्ट्र से लेकर झारखंड तक चुनाव प्रचार में सियासी दलों ने विकास का सागर बहाने के वादे किए, उपलब्धियां गिनाईं और उज्ज्वल कल की सुनहरी तस्वीर भी जनता को खूब दिखाई. लगभग हर बड़े नेता की रैली में भारी भीड़ भी नजर आई लेकिन कौन सी पार्टी चुनावी जनसभाओं की भीड़ को वोट में तब्दील कर पाती है, नतीजे इस पर निर्भर करेंगे. वादों-इरादों के बाद अब निर्णय की घड़ी आ गई है जब मतदाता सुन तो सबको चुका है, अब उसे अपने मन के तराजू पर तौलकर किसी दल को वोट करना है, यह निर्णय करेगा. महाराष्ट्र से झारखंड तक 11 फैक्टर ऐसे हैं जो वोटर का वोट तय करने में, जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाएंगे. 

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1- कैश फॉर वोट कांड

मतदान से ठीक पहले वाली रात को निर्णायक रात कहा जाता है. चुनाव प्रचार थमने के बाद और मतदान से पहले, आधिकारिक रूप से तो यह साइलेंट पीरियड होता है लेकिन यही वह वक्त भी होता है जब सियासी दल और उम्मीदवार हवा का रुख भांपने और विपरीत होने की स्थिति में उसे अपने पक्ष में मोड़ने के लिए हर पैंतरा आजमाते हैं. एक दिन पहले महाराष्ट्र में तीन ऐसे आरोप सामने भी आए.

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बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े पर पैसे बांटने का आरोप लगाते हुए बहुजन विकास अघाड़ी के कार्यकर्ताओं ने उन्हें होटल में ही घेर लिया. हंगामा हुआ और मामले के तूल पकड़ने के बाद चुनाव आयोग ने तावड़े के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करा दी. शरद पवार की पार्टी से जुड़े और उन्हीं के परिवार से आने वाले रोहित पवार की कंपनी के एक अधिकारी पर भी पैसे बांटने के आरोप लगे और उसे पकड़ा भी गया.

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अंतिम पलों में कथित रूप से सुप्रिया सुले का एक ऑडियो क्लिप भी वायरल हुआ जिसमें बिटकॉइन को लेकर बातचीत है. साइलेंट पीरियड में आए इन वोकल मामलों का मतदाताओं के मन-मस्तिष्क पर कैसा और कितना प्रभाव पड़ता है, चुनाव नतीजे इस पर भी निर्भर करेंगे.

2- हमनाम उम्मीदवार

महाराष्ट्र की बात करें तो कई सीटें ऐसी हैं जहां किसी दल के उम्मीदवार के हमनाम कई निर्दलीय भी मैदान में उतर आए हैं. कहीं एक पार्टी के हमनाम दो-दो, तीन-तीन निर्दलीय मैदान में हैं तो कहीं-कहीं दोनों ही गठबंधनों से उम्मीदवार के दो-दो हमनाम. विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार के नाम से अधिक दल का सिंबल काम करता है लेकिन किसी उम्मीदवार का अपयश उसके हमनाम को नुकसान भी पहुंचा सकता है. चुनाव नतीजे हमनाम उम्मीदवार फैक्टर पर भी निर्भर करेंगे.

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3- किसान कार्ड

महाराष्ट्र में किसानों का मुद्दा भी खूब गर्म रहा. प्याज की कीमतें जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी थीं, तब सरकार की ओर से निर्यात रोकने के फैसले से भी किसान नाराज बताए जा रहे हैं. किसान और उनसे जुड़ी समस्याएं महाराष्ट्र में पहले भी चुनावी मुद्दा बनती रही हैं लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी और महायुति इसे लेकर अलर्ट है. महायुति ने किसानों की नाराजगी कम करने की कोशिश में ही किसान सम्मान निधि के तहत दी जा रही धनराशि 12 हजार रुपये वार्षिक से बढ़ाकर 18 हजार रुपये करने, किसान कर्जमाफी का वादा किया है. महायुति का किसान कार्ड चलता है या अन्नदाता एमवीए के साथ जाता है, महाराष्ट्र के नतीजे इस पर भी निर्भर करेंगे.

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4- चंपाई, सीता और कल्पना सोरेन इफेक्ट

झारखंड विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पूर्व मुख्यमंत्री कोल्हान टाइगर चंपाई सोरेन ने जेएमएम छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था. चंपाई का कोल्हान रीजन में अच्छा प्रभाव माना जाता है. कोल्हान रीजन बीजेपी के लिए पिछले चुनाव में सिरदर्द साबित हुआ था और तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास सत्ता तो दूर, अपनी सीट भी नहीं बचा पाए थे. कोल्हान में बीजेपी को इस बार चंपाई के आने से आस है तो वहीं सोरेन परिवार के गढ़ संथाल में सीएम हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन के आने से भी कमल खिलने की उम्मीद.

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जेएमएम की बात करें तो एक बहु (सीता सोरेन) के पार्टी छोड़ने के बाद सोरेन परिवार की दूसरी बहु कल्पना सोरेन इस चुनाव में फ्रंट से लीड करती नजर आईं. जेएमएम की ओर से कल्पना ने सबसे ज्यादा 98 चुनावी रैलियों को संबोधित कर अपने पति और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी पीछे छोड़ दिया. कल्पना रैलियों के जरिये जनता से जुाड़ने की भी कोशिश करती नजर आईं और इन चुनावों में बीजेपी के चंपाई और सीता फैक्टर के साथ ही जेएमएम का कल्पना फैक्टर भी जीत-हार तय करने में अहम होगा.

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5- घुसपैठिया कार्ड

बीजेपी और जेएमएम की अगुवाई वाले गठबंधनों के चुनाव युद्ध में घुसपैठ और घुसपैठिए सेंटर पॉइंट बने रहे. बीजेपी ने घुसपैठियों की वजह से संथाल में डेमोग्राफी चेंज का मुद्दा झारखंड चुनाव में खूब उछाला. इसे आदिवासी समाज के कम होते प्रभुत्व, आबादी में घटती हिस्सेदारी से भी जोड़ा गया. जेएमएम ने इसे काउंटर करते हुए कहा कि झारखंड किसी भी देश के साथ सीमा साझा नहीं करता. अगर घुसपैठ की समस्या है तो उसके लिए केंद्र जिम्मेदार है. बीजेपी या जेएमएम, जनता किसकी बात पर भरोसा करती है? चुनाव नतीजे इस पर भी निर्भर करेंगे.

6- आदिवासी

जेएमएम लोकसभा चुनाव के समय से ही सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ ईडी के एक्शन और उनकी गिरफ्तारी को आदिवासी अस्मिता से जोड़ने की कोशिश करती आई है. विधानसभा चुनावों में भी जेएमएम इसी रणनीति पर बढ़ती नजर आई. वहीं, बीजेपी ने आदिवासी समाज को साधने और आदिवासी अस्मिता की पिच पर जेएमएम को पटखनी देने की कोशिश में प्रतीकों की सियासत के अपने मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ चुनाव में आजमाए सफल फॉर्मूले पर फोकस किया. बिरसा मुंडा की जयंती पर दिल्ली से बिहार तक, बड़े नेताओं के कार्यक्रमों से आदिवासी समाज को संदेश देने की रणनीति साफ नजर आई. किसकी रणनीति कितनी कारगर होती है, यह देखना होगा.

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7- भ्रष्टाचार

बीजेपी ने महाराष्ट्र से झारखंड तक भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया. चुनाव प्रचार के अंतिम दिन जब राहुल गांधी ने पीएम मोदी के नारे एक हैं तो सेफ हैं पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में तिजोरी के जरिये वार किया तो बीजेपी ने तुरंत ही कांग्रेस को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेर लिया.

8- इमोशनल कार्ड

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे और शरद पवार ने अजित पवार को गद्दार बताते हुए जनता से सबक सिखाने की अपील की. वहीं, झारखंड में चुनाव प्रचार थमने से पहले जेएमएम ने भी अखबारों में एक पेज का विज्ञापन देकर झारखंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन की तस्वीरें दिखा भावनात्मक कार्ड चला. इस विज्ञापन में शिबू सोरेन की तस्वीर भी थी. 

9- ध्रुवीकरण

झारखंड में घुसपैठियों के कारण बदलती डेमोग्राफी का मुद्दा हो या आदिवासी लैंड से महाराष्ट्र तक सीएम योगी का बंटेंगे तो कटेंगे और बीजेपी का एक हैं तो सेफ हैं का नारा, यह ध्रुवीकरण की कवायद से जोड़कर ही देखा जा रहा है. जेएमएम ने इसे काउंटर करने के लिए न बंटे हैं ना बंटेंगे का नारा दिया. किसका नारा कितना कारगर होता है, यह भी डिसाइडिंग फैक्टर होगा.

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10- डायरेक्ट कैश बेनिफिट योजनाएं

महाराष्ट्र से लेकर झारखंड तक डायरेक्ट कैश बेनिफिट वाली योजनाओं का बोलबाला रहा. महाराष्ट्र में महायुति को लड़की बहन योजना से उम्मीद है तो झारखंड में जेएमएम को मैयां सम्मान योजना से. ये दोनों ही डायरेक्ट कैश बेनिफिट योजनाएं महिला वोटबैंक को टार्गेट करती हैं. ये योजनाएं महिला वोटबैंक को कितना प्रभावित कर पाती हैं, वोटों में तब्दील कर पाती हैं, दोनों ही राज्यों में जीत और हार तय करने में रोल इसका भी होगा.

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11- कांग्रेस का प्रदर्शन

महाराष्ट्र से झारखंड तक सत्ता का निर्धारण करने में कांग्रेस के प्रदर्शन का भी अहम रोल होगा. महाराष्ट्र की बात करें तो यहां विदर्भ रीजन को निर्णायक माना जाता है. इस रीजन में बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही मुकाबला रहता है. बीजेपी और कांग्रेस, इस रीजन में दोनों में से जो पार्टी बेहतर करेगी, उसकी मौजूदगी वाले गठबंधन के सत्ता तक पहुंचने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी.

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