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पहले सीता-गीता और अब चम्पाई... झारखंड चुनाव में बीजेपी को कितना होगा बाहर से आए नेताओं से फायदा?

चम्पाई सोरेन को झारखंड में बड़ा आदिवासी नेता माना जाता है. वे अपने गृह क्षेत्र में कोल्हान टाइगर के नाम से पहचाने जाते हैं. बिहार-झारखंड बंटवारे में चम्पाई ने शिबू सोरेन के साथ अहम भूमिका निभाई है. उन्होंने शिबू सोरेन के साथ करीब 2 दशक तक राजनीति की और सुलझे हुए नेता माने जाते हैं.

गीता कोड़ा और सीता सोरेन के बाद अब पूर्व सीएम चम्पाई सोरेन की बीजेपी में एंट्री होने जा रही है. गीता कोड़ा और सीता सोरेन के बाद अब पूर्व सीएम चम्पाई सोरेन की बीजेपी में एंट्री होने जा रही है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 27 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 2:45 PM IST

झारखंड में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं. सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा अलायंस से मुकाबले के लिए बीजेपी के नेतृत्व वाला NDA रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण और बड़े फैसले ले रहा है. JMM नेता और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का सबसे बड़ा समर्थन आधार झारखंड के आदिवासी और ग्रामीण समुदायों में है और बीजेपी इस वर्ग को अपने पाले में लाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन की बीजेपी में एंट्री हुई. उसके बाद राज्य के बड़े आदिवासी नेता और पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को पार्टी में शामिल कराया.

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बीजेपी ने दोनों महिला नेताओं को आम चुनाव में उतारा. हालांकि, ये दांव सफल नहीं हो सका और दोनों चुनाव हार गईं. अब विधानसभा चुनाव की बारी है. चुनाव से ठीक पहले बीजेपी एक और बड़ा दांव खेलने जा रही है और कोल्हान के टाइगर के नाम से मशहूर आदिवासी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन (68 साल) की पार्टी में एंट्री होने जा रही है. पूरी स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है. ये एंट्री 30 अगस्त को होगी.

सवाल उठ रहा है कि क्या चम्पाई सोरेन कोल्हान में बीजेपी का सूखा खत्म कर पाएंगे? क्या कोल्हान इलाके के आदिवासी वोट बैंक को बीजेपी के पक्ष में ला पाएंगे? क्या झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का अभेद्य किला भेद पाएंगे और 14 विधानसभा सीटों में बीजेपी का खाता खोल पाएंगे? इन सभी सवालों के जवाब विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद ही स्पष्ट हो पाएंगे, लेकिन चम्पाई के बीजेपी में शामिल होने की खबरों के बाद कोल्हान की राजनीति में गरमाहट देखने को मिल रही है.

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5 महीने तक झारखंड के सीएम रहे चंपाई

दरअसल, हेमंत सोरेन खनन लीज के आवंटन में कथित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं. प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लॉन्ड्रिंग में पूछताछ के बाद हेमंत को 31 जनवरी की रात गिरफ्तार किया था. उन्होंने जेल जाने से पहले सीएम पद से इस्तीफा दिया. पार्टी विधायक दल की बैठक में चम्पाई सोरेन को नया नेता चुना गया. चम्पाई ने 2 फरवरी को झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. हालांकि, करीब पांच महीने जेल में रहने के बाद हेमंत को जमानत मिल गई और वो रिहा हो गए. ऐसे में चम्पाई को कुर्सी छोड़नी पड़ी और 4 जुलाई को एक बार फिर हेमंत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इस पूरे घटनाक्रम के बाद चम्पाई की नाराजगी खुलकर सामने आ गई है. चम्पाई का कहना है कि 3 जुलाई से पहले मेरे सीएम रहते सारे कार्यक्रम स्थगित किए गए. अपमान किया गया.

चम्पाई का कहना था कि मुझे विधायक दल की बैठक का एजेंडा तक नहीं बताया गया. बैठक के दौरान मुझसे इस्तीफा मांगा गया. आत्म-सम्मान पर चोट लगने से भावुक हो गया हूं. पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनैतिक सफर में पहली बार भीतर से टूट गया हूं. तीन दिनों तक अपमानजनक व्यवहार किया गया. उन्हें सिर्फ कुर्सी से मतलब था. मुझे ऐसा लगा, मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है. कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिस पार्टी के लिए हमने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. इतने अपमान और तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने के लिए मजबूर हो गया.

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क्या है चम्पाई का अगला प्लान?

26 अगस्त की शाम चम्पाई दिल्ली पहुंचे और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की. इस बैठक के बाद असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने कन्फर्म किया कि चम्पाई 30 अगस्त को रांची में आधिकारिक रूप से बीजेपी में शामिल होंगे. इससे पहले केंद्र सरकार ने चम्पाई को जेड प्लस सुरक्षा मुहैया कराए जाने का निर्णय लिया है. चम्पाई 28 अगस्त को हेमंत कैबिनेट से इस्तीफा दे सकते हैं. इससे पहले 21 अगस्त को चम्पाई ने नई पार्टी बनाने का ऐलान किया था. चम्पाई वर्तमान में JMM के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. वे 2005 से लगातार सरायकेला से विधायक हैं. उन्होंने 1991 में पहली बार निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता था. 1995 में JMM के टिकट पर चुनाव लड़कर जीते थे.

चंपाई की मदद से कोल्हान में मजबूत होगी बीजेपी?

चम्पाई को झारखंड में बड़ा आदिवासी नेता माना जाता है. वे अपने गृह क्षेत्र में कोल्हान टाइगर के नाम से पहचाने जाते हैं. बिहार-झारखंड बंटवारे में चम्पाई ने शिबू सोरेन के साथ अहम भूमिका निभाई है. उन्होंने शिबू सोरेन के साथ करीब 2 दशक तक राजनीति की और सुलझे हुए नेता माने जाते हैं. चम्पाई जिस सरायकेला से विधायक हैं, वो कोल्हान इलाके में आता है और इस क्षेत्र में आदिवासियों का खासा दबदबा है. चम्पाई की नाराजगी और पार्टी छोड़ने की खबरों के बाद JMM बेहद सतर्क है और किसी भी स्थिति में जनता के बीच यह संदेश नहीं देना चाहती है कि चम्पाई सोरेन के अपमान का उनका कोई इरादा है. 

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कोल्हान की 14 सीटों पर चम्पाई का दबदबा

कोल्हान मंडल में तीन जिले पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला खरसावां और पश्चिमी सिंहभूम आते हैं. इन तीनों जिलों में 14 विधानसभा सीटें हैं और चम्पाई सोरेन का खासा प्रभाव है. इस इलाके में अभी JMM के पास ऐसा कोई नेता नहीं है, जो चम्पाई का विकल्प बन सके. चम्पाई की संगठनात्मक क्षमता का झारखंड मुक्ति मोर्चा को फायदा मिलता रहा है. बीजेपी को इस इलाके में मजबूत आदिवासी नेता की तलाश रही है. अब चम्पाई के जरिए बीजेपी ना सिर्फ 14 सीटों पर अपनी पकड़ मजबूत कर सकती है, बल्कि जीत का सिलसिला भी शुरू कर सकती है. चम्पाई इससे पहले NDA सरकार का भी हिस्सा रहे हैं. वे सितंबर 2010 से जनवरी 2013 तक NDA सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं. 2019 में परिवहन और पिछड़ा कल्याण मंत्री भी रहे हैं.

तत्कालीन सीएम रघुवर दास को मिली थी हार

कोल्हान प्रमंडल में पूर्वी सिंहभूम जिला आता है. इस जिले में छह सीटें हैं. इनमें बहरागोड़ा, घाटशिला, पोटका, जुगसलाई, जमशेदपुर (पूर्व) और जमशेदपुर (पश्चिम) का नाम शामिल है. 2020 के चुनाव में चार सीटों पर JMM ने चुनाव जीता था. एक सीट जमशेदपुर (वेस्ट) में कांग्रेस के बन्ना गुप्ता और जमशेदपुर (ईस्ट) से बीजेपी के बागी निर्दलीय सरयू राय ने जीत हासिल की थी. तत्कालीन सीएम रघुबर दास को शिकस्त मिली थी. बीजेपी का खाता नहीं खुल सका था.

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JMM अलायंस ने 13 सीटों पर किया था कब्जा

इसी तरह, सरायकेला खरसावां जिले में तीन सीटें हैं. इनमें ईचागढ़, खरसावां, सरायकेला का नाम शामिल है. 2020 में इन तीनों सीटों पर JMM ने कब्जा जमाया था. वहीं, पश्चिमी सिंहभूम जिले में पांच विधानसभा सीटें हैं. इनमें चाईबासा, मझगांव, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर, चक्रधरपुर का नाम शामिल है. 2020 के चुनाव में चार सीटों पर JMM ने चुनाव जीता था. एक सीट जगन्नाथपुर में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. यानी कोल्हान इलाके की 14 विधानसभा सीटों में से JMM ने 2020 में 11 सीटें जीतीं थीं. दो सीटें अलायंस में सहयोगी कांग्रेस ने जीतीं. एक सीट पर निर्दलीय का कब्जा रहा. बीजेपी के हाथ खाली रहे थे.

कोल्हान के नतीजों ने बीजेपी को सत्ता से कर दिया था दूर

2020 के विधानसभा चुनाव के समय राज्य में बीजेपी की सरकार थी. देशभर में मोदी फैक्टर और राम मंदिर की लहर देखने को मिल रही थी. उसके बावजूद हेमंत सोरेन की JMM ने बीजेपी के सारे समीकरणों पर पानी फेर दिया था और सरकार बनाने के लिए अलायंस के सहयोग से जरूरी समर्थन हासिल कर लिया था. 2020 में JMM को 30, कांग्रेस को 16, आरजेडी को एक, कम्युनिस्ट पार्टी को एक, एनसीपी को एक सीट मिली थी. झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) को 3, बीजेपी को 25, आजसू पार्टी को 2 और निर्दलीयों ने दो सीटों पर जीत हासिल की थी.

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लोकसभा चुनाव के बाद झारखंड में JMM के नेतृत्व वाले गठबंधन की ताकत घटकर 45 विधायकों तक रह गई है. JMM के 27, कांग्रेस के 17 और आरजेडी का एक विधायक है. बीजेपी की ताकत भी घटकर 24 रह गई है. 

चम्पाई ने मजदूर नेता के तौर पर बनाई पहचान

कोल्हान इलाके में चम्पाई सोरेन की मजबूत पकड़ का इतिहास काफी पुराना है. उन्हें मजदूर वर्ग के नेता के रूप में जाना जाता है. उन्होंने शिबू सोरेन के नेतृत्व में झारखंड के लिए लड़ाई लड़ी. उन्हें खुद इस बात पर गर्व है कि इस क्षेत्र के स्थानीय गांवों के 10 हजार से ज्यादा युवाओं को टाटा समूह जैसे औद्योगिक प्रतिष्ठानों में नौकरी मिली. जानकारों का कहना है कि चम्पाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने की स्थिति में JMM और कांग्रेस दोनों को नुकसान होना तया है. चम्पाई के प्रभाव का सीधे तौर पर बीजेपी को फायदा मिलेगा और
इस इलाके की सीटों पर JMM के वोट शेयर में कमी आएगी और BJP के लिए जीत के चांस ज्यादा बनेंगे.

हेमंत के नेतृत्व पर उठ रहे सवाल?

इधर, भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण हेमंत की नेतृत्व की वैधता पर सवाल उठ रहे हैं. केंद्रीय जांच एजेंसियों इस पूरे मामले में सबूत जुटा रही हैं. जानकार कहते हैं कि खनन लीज आवंटन केस की जांच ने हेमंत के राजनीतिक ग्राफ को प्रभावित किया है, जिससे उनकी स्थिति कमजोर हुई है. राज्य की सियासत में पूरे 5 साल बेरोजगारी, आर्थिक सुस्ती, और निवेश की कमी जैसे मुद्दे हावी रहे हैं. इन मुद्दों से निपटने में हेमंत सरकार की असमर्थता ने भी उनके राजनीतिक ग्राफ पर असर डाला है.

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लोकसभा चुनाव में गीता-सीता की जोड़ी को मिली हार?

इस साल मार्च में लोकसभा चुनावों का ऐलान हुआ. चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस को बड़ा झटका तब लगा, जब सिंहभूम सीट से मौजूदा सांसद गीता कोड़ा बीजेपी में शामिल हो गईं. गीता, पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी हैं. इस घटनाक्रम के बाद कांग्रेस को परंपरागत सीट अपने सहयोगी JMM को सौंपनी पड़ी. चूंकि ये सीट अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व थी और पार्टी के पास इस सीट पर बीजेपी को चुनौती देने वाला कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं था. JMM ने पांच बार मनोहरपुर विधानसभा सीट से विधायक चुनी गईं जोबा मांझी को मैदान में उतारा. बीजेपी ने गीता कोड़ा पर दांव लगाया. सिंहभूम लोकसभा सीट के नतीजे आए तो बीजेपी को बड़ा झटका लगा. गीता 1 लाख 68 हजार वोटों से चुनाव हार गईं. जोबा मांझी का कोल्हान इलाके में मजबूत पकड़ मानी जाती है. माना गया कि बीजेपी, आदिवासी वोट बैंक में पूरी तरह सेंध नहीं लगा पाई. क्योंकि 2019 में मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस उम्मीदवार रहीं गीता कोड़ा ने सिंहभूम सीट पर बीजेवी के दिवंगत लक्ष्मण गिलुवा को 50 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था. लेकिन इस बार वो कमाल नहीं कर सकीं.

इसी तरह, हेमंत सोरेन से नाराज होकर उनकी भाभी सीता सोरेन ने आम चुनाव से ठीक पहले JMM का साथ छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गईं. सीता, शिबू सोरेन की बहू और दिवंगत दुर्गा सोरेन की पत्नी हैं. वे दुमका जिले की जामा सीट से JMM विधायक रही हैं. सीता का कहना था कि JMM के भीतर लगातार उपेक्षा की जा रही थी, इससे परेशान होकर पार्टी छोड़ने का निर्णय लिया. दुमका को JMM का गढ़ माने जाना है. बीजेपी को उम्मीद थी कि सीता के पार्टी में आने से संगठन को मजबूती मिलेगी और दुमका लोकसभा सीट पर जीत दर्ज करने में आसानी होगी. हालांकि, सीता मामूली अंतर से चुनाव हार गईं. दुमका से JMM के नलिन सोरेन ने उन्हें 22 हजार 527 वोटों से हरा दिया.

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