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इंजीनियरिंग की पढ़ाई, रेवेन्यू सर्विस के ऑफिसर, आंदोलन और फिर सियासत... केजरीवाल ने ऐसे खुद को बनाया शीला दीक्षित का विकल्प

अरविंद केजरीवाल का जन्म हरियाणा के हिसार जिले के सिवानी गांव में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा मिशनरी के स्कूलों से पूरी की. दिल्ली चुनाव में केजरीवाल की पार्टी 2015 और 2020 में चुनाव जीती और प्रचंड बहुमत हासिल किया. 2013 के चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा 31 सीटें मिली थीं. दूसरे नंबर पर AAP (28 सीटें) आई थी.

अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक हैं. दिल्ली में उनकी पार्टी की सरकार है. अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक हैं. दिल्ली में उनकी पार्टी की सरकार है.
उदित नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 27 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 5:46 PM IST

दिल्ली में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं. स्पेशल सीरीज में आज हम आपको दिल्ली के सातवें मुख्यमंत्री यानी अरविंद केजरीवाल की कहानी बताएंगे. केजरीवाल कुल 10 साल दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे. उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियर की पढ़ाई की और राजनीति में आने से पहले सिविल सर्विस का एग्जाम पास किया.  इंडियन रेवेन्यू सर्विस यानि आयकर विभाग में सहायक आयकर आयुक्त के रूप में भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में नौकरी की. लेकिन, मन में सिस्टम में बदलाव लाने की कसक चलती रही. 

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अंतत: केजरीवाल ने 2006 में नौकरी छोड़ी और पहले खुद का एनजीओ चलाया. उसके बाद 2011 में अन्ना आंदोलन में कूद पड़े. फिर 2012 में अपनी खुद की पार्टी (आम आदमी पार्टी) बना ली. सालभर बाद ही जब 2013 में चुनाव हुए तो केजरीवाल दिल्ली की जनता के बीच शीला दीक्षित के खिलाफ मजबूत विकल्प बनकर उभरे. 2013 में कांग्रेस की सत्ता का किला ढह गया और 15 साल के शासन पर विराम लग गया.

जब कांग्रेस के समर्थन से पहली बार सीएम बने केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल का जन्म हरियाणा के हिसार जिले के सिवानी गांव में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा मिशनरी के स्कूलों से पूरी की. दिल्ली चुनाव में केजरीवाल की पार्टी 2015 और 2020 में चुनाव जीती और प्रचंड बहुमत हासिल किया. 2013 के चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा 31 सीटें मिली थीं. दूसरे नंबर पर AAP (28 सीटें) आई थी. तीसरे नंबर पर कांग्रेस (8 सीटें) खिसक गई थी. बीजेपी मैजिक नंबर (5 सीटों की जरूरत) के करीब थी. लेकिन कांग्रेस ने AAP को समर्थन दे दिया और केजरीवाल नए मुख्यमंत्री बन गए. जबकि 2013 के पूरे चुनाव प्रचार में AAP के निशाने पर कांग्रेस रही और नतीजे में भी इसका असर देखने को मिला था. कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक AAP में चला गया था. दिल्ली में कुल 70 सीटें हैं. बहुमत के लिए 36 सीटें होना जरूरी हैं. शिरोमणि अकाली दल, जनता दल (यूनाइटेड) और निर्दलीय ने भी एक-एक सीट पर जीत हासिल की थी.

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49 दिन में केजरीवाल को देना पड़ा इस्तीफा

2013 में जब दिल्ली पहली बार त्रिशंकु विधानसभा (किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं) बनी तो केजरीवाल उसी कांग्रेस के समर्थन से 28 दिसंबर को पहली बार मुख्यमंत्री बने, जिसे सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए सियासत में कदम रखे थे. कांग्रेस ने बीजेपी को सरकार बनाने के लिए केजरीवाल का समर्थन किया था, लेकिन विचार बेमेल थे और मुद्दे भी दोनों पार्टियों के बिल्कुल अलग थे. नतीजन, केजरीवाल को 49 दिन में ही सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी और 14 फरवरी 2014 को इस्तीफा दे दिया. 

जन लोकपाल विधेयक पर घिर गए थे केजरीवाल

दरअसल, चुनाव में केजरीवाल की पार्टी ने सरकार में आने पर जन लोकपाल विधेयक लाने का वादा किया था. सरकार बनने के लिए बीजेपी ने AAP पर दबाव बनाया तो केजरीवाल घिर गए. चूंकि जन लोकपाल बिल को पेश करने के लिए केजरीवाल सरकार को तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग की अनुमति लेनी थी. लेकिन AAP ने बिना अनुमति के इसे विधानसभा में पेश करने की कोशिश की, जिसे बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने अवैध बताया और विरोध किया. विधानसभा में बिल पेश नहीं हो सका और समर्थन भी नहीं मिला. इसे केजरीवाल ने अपने चुनावी वादे और जनता के साथ धोखा माना और सीएम पद छोड़ने का ऐलान कर दिया. 

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2015 के नतीजों ने बनाया नया रिकॉर्ड, AAP को मिलीं 67 सीटें

दिल्ली में सालभर राष्ट्रपति शासन लगा रहा. उसके बाद 2015 में नए सिरे से विधानसभा चुनाव हुए तो केजरीवाल ने ऐतिहासित जीत दर्ज की. 2015 में AAP ने लंबी छलांग लगाई और ना सिर्फ 39 सीटों की बढ़त हासिल की, बल्कि 24.8 फीसदी वोटों में भी इजाफा किया. AAP ने 67 सीटें जीतीं और 54.5 वोट शेयर हासिल किया. कांग्रेस का पूरा जनाधार ही खिसक गया और उसका पूरा वोट बैंक केजरीवाल की पार्टी AAP में शिफ्ट हो गया. केजरीवाल 14 फरवरी 2015 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. उसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में भी केजरीवाल के नेतृत्व में AAP ने शानदार जीत दर्ज की. केजरीवाल लगातार तीसरे बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. 

जब तिहाड़ जेल भेजे गए अरविंद केजरीवाल

हालांकि, 2024 में केजरीवाल नई मुसीबत में घिर गए. इसी साल मार्च में वे शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में जेल गए. उसके बाद 10 मई को केजरीवाल को आम चुनाव में प्रचार के लिए 21 दिन की जमानत मिली. 2 जून के बाद उन्होंने फिर तिहाड़ जेल में सरेंडर कर दिया और फिर जब सिंतबर में बेल पर आए तो उन्होंने मुख्यमंत्री पद छोड़ने का ऐलान कर दिया. केजरीवाल 21 सितंबर 2024 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे. यानी शुरुआत में 49 दिन दिल्ली के सीएम रहे, उसके बाद उन्होंने 9 साल 316 दिन लगातार सीएम की कुर्सी संभाली. अब आतिशी दिल्ली की मुख्यमंत्री हैं.

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1993 में रेवेन्यू सर्विस में ऑफिसर बने थे केजरीवाल

केजरीवाल 28 दिसंबर 2013 को जब पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, तब उनकी उम्र 45 साल थी. उसके बाद 14 फरवरी, 2015 को दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली. तीसरी बार 16 फरवरी, 2020 को दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. केजरीवाल आईआईटी खड़गपुर के स्टूडेंट रहे हैं. उन्होंने 1989 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक पूरा किया. उन्हें 1993 में भारतीय राजस्व सेवा के लिए चुना गया और 2006 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया. केजरीवाल की शादी सुनीता केजरीवाल से हुई. उनके दो बच्चे हैं. हर्षिता केजरीवाल और पुलकित केजरीवाल. केजरीवाल के माता-पिता भी उनके साथ रहते हैं. 

केजरीवाल ने 2006 में छोड़ दी थी नौकरी

केजरीवाल जब दिल्ली में आयकर आयुक्त कार्यालय में ऑफिसर थे, जब उन्होंने महसूस किया कि सरकार में बहुप्रचलित भ्रष्टाचार के कारण प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है. अपनी अधिकारिक स्थिति पर रहते हुए ही उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम शुरू की. शुरुआत में अरविंद ने आयकर कार्यालय में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कई परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जनवरी 2000 में उन्होंने काम से विश्राम लिया और राजनीति में एंट्री करने से पहले 'परिवर्तन' नाम का गैर सरकारी संगठन (NGO) का गठन किया. 

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इस NGO के जरिए वे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), जनता से संबंधित कार्य, सामाजिक कल्याण योजनाएं, आयकर और बिजली से संबंधित शिकायतों को दूर करने के लिए काम करते थे. उन्होंने 2006 में आयकर विभाग की नौकरी से इस्तीफा दिया और उसी साल उन्होंने पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना के लिए कॉर्पस फंड के रूप में अपनी मैग्सेसे पुरस्कार राशि दान कर दी. उसके बाद वे पूरे समय के लिए सिर्फ 'परिवर्तन' में ही काम करने लगे. 2006 में उन्होंने पूरे भारत में RTI के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए अभियान शुरू किया.

केजरीवाल ने 'स्वराज' नाम से किताब लिखी

2 अक्टूबर 2012 को अरविंद ने अपने राजनीतिक सफर की औपचारिक शुरुआत की. वे गांधी टोपी पहनकर मैदान में आए. इसे अन्ना टोपी भी कहा गया. उन्होंने टोपी पर लिखवाया, 'मैं आम आदमी हूं.' राजनीति में आते ही कांग्रेस पर हमलावर हुए और आंदोलन चलाए. बड़े खुलासे के दावे भी किए. केजरीवाल ने 2013 में नई दिल्ली सीट से पहली बार चुनाव लड़ा और लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को 22,000 से ज्यादा वोटों से हराया था. 

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2013 में जब वे सीएम बने तो सबसे पहले उन्होंने अपनी सिक्योरिटी वापस लौटा दी, जिससे चर्चा में आ गए. उसके बाद बिजली की दरों में 50% की कटौती की घोषणा कर दी. दिल्ली पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्रालय के खिलाफ धरना देकर सुर्खियां बटोरीं. 2015 और 2020 में वे फिर नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़े और जीत हासिल की. केजरीवाल को सूचना के अधिकार के प्रति प्रतिबद्धता और जन लोकपाल को लेकर संघर्ष करने के लिए भी जाना जाता है. उन्होंने लोकल सेल्फ गवर्नेंस और एडमिनिस्ट्रेशन के डिसेंट्रलाइजेशन के अपने मॉडल पर एक पुस्तक 'स्वराज' लिखी है. देशभर में भ्रष्टाचार विरोधी वॉरियर के रूप में पहचाई बनाई और इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सदस्यों को वैकल्पिक राजनीति की ओर प्रेरित किया. 2 अक्टूबर, 2012 को उन्होंने आम आदमी पार्टी की स्थापना की.

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