Advertisement

दिल्ली के दूसरे CM की कहानी... जिनके बाद 37 साल खाली रही कुर्सी, लागू की थी शराबबंदी

शिक्षाविद से राजनेता बने गुरमुख निहाल सिंह ने 12 फरवरी 1955 को दिल्ली के दूसरे मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. वे 31 अक्टूबर 1956 तक सीएम की कुर्सी पर रहे. गुरुमुख का कार्यकाल एक साल 262 दिन रहा. 1952 में हुए चुनाव में गुरमुख ने पहली बार चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी.

गुरमुख निहाल सिंह दिल्ली के दूसरे मुख्यमंत्री बनाए गए थे. गुरमुख निहाल सिंह दिल्ली के दूसरे मुख्यमंत्री बनाए गए थे.
उदित नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 20 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 1:32 PM IST

दिल्ली में चुनावी माहौल है. यहां की राजनीति में कभी सिरमौर रहने वाले दिग्गज नेता आज गुमनाम हो गए हैं. कई चेहरे सदियों बाद भी प्रांसगिक बने हुए हैं. स्पेशल सीरीज में आज हम आपको दिल्ली के दूसरे मुख्यमंत्री सरदार गुरमुख निहाल सिंह के बारे में बताएंगे. गुरमुख के एक साल के कार्यकाल में ही दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश बना और विधानसभा भंग हो गई. उसके बाद 36 साल तक दिल्ली में कोई सीएम नहीं बन सका. गुरमुख ने 1955 में सीएम की कुर्सी संभाली और दिल्ली में शराबबंदी लागू कर चर्चा में आ गए थे. विवाद बढ़ा तो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू तक को दखल देना पड़ा था.

Advertisement

1952 में दिल्ली भारतीय संघ का पार्ट-सी राज्य बनाया गया था. उसके बाद चुनाव हुए तो कांग्रेस ने 39 सीटें जीतीं और बहुमत हासिल किया. पार्टी ने चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव को पहला मुख्यमंत्री बनाया. इस सरकार में सरदार गुरमुख निहाल सिंह स्पीकर बनाए गए. हालांकि, करीब तीन साल बाद चौधरी को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी और पार्टी ने गुरमुख निहाल सिंह को दिल्ली का दूसरा मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया.

1952 में पहली बार चुनाव लड़े थे गुरमुख

गुरमुख निहाल सिंह ने 12 फरवरी 1955 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. वे 31 अक्टूबर 1956 तक सीएम की कुर्सी पर रहे. गुरमुख का कार्यकाल एक साल 262 दिन रहा. 1952 में हुए चुनाव में गुरमुख ने पहली बार चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी. वे कांग्रेस के दिग्गज नेता गोविंद वल्लभ पंत के बेहद करीबी माने जाते थे और उनके कहने पर ही चुनावी मैदान में उतरे.

Advertisement

लंदन में पढ़े और दिल्ली में नौकरी की

गुरमुख निहाल सिंह का जन्म 14 मार्च 1895 को अविभाजित पंजाब में हुआ था. उन्होंने लंदन यूनिवर्सिटी से बीएससी (अर्थशास्त्र) तक पढ़ाई की. उसके बाद साल 1920 में काशी हिंदू यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक नियुक्त हुए. बाद में कला संकाय के अधिष्ठाता बनाए गए. साल 1939 से 1943 तक अहमदाबाद स्थित एचएल कॉमर्स डिग्री कॉलेज, 1943 से 1949 तक दिल्ली के रामजस कॉलेज और जनवरी 1950 में दिल्ली के श्रीराम कॉलेज के प्राचार्य रहे. बाद में वे राजनीति में आए.

यह भी पढ़ें: गांधी जी के साथ आंदोलन से लेकर दिल्ली के सबसे यंग CM तक... कहानी शेर-ए-दिल्ली चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव की

कैसे मुख्यमंत्री बने गुरमुख निहाल सिंह?

1952 में दिल्ली में अंतरिम विधानसभा थी. कुल सीटें 42 थीं, लेकिन छह सीट ऐसी थीं, जो दो-दो सदस्यों वाली थीं. यानी चुनाव में कुल 48 सदस्य चुने गए. बहुमत के लिए 25 सदस्यों का होना जरूरी था. कांग्रेस ने 39 सीटें जीतीं. पार्टी ने तय किया कि अगले मुख्यमंत्री देशबंधु गुप्ता बनेंगे. लेकिन शपथ से ठीक पहले विमान हादसे में गुप्ता का निधन हो गया. उस समय तक देश में पहले आम चुनाव भी हो गए थे और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे. नेहरू ने चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव को नाम सीएम बनाने का फैसला लिया. इस सरकार में गुरमुख को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया.

Advertisement

चूंकि, दिल्ली में उस समय चीफ कमिश्नर ही राज्य के मुखिया होते थे. उपराज्यपाल का कोई प्रावधान नहीं था. राज्य अधिनियम, 1951 के पार्ट- सी में यह व्यवस्था दी गई थी कि दिल्ली में एक मंत्रिपरिषद और एक मुख्यमंत्री की नियुक्ति होगी, जो मुख्य आयुक्त को दैनिक कामकाज में सहायता और सलाह देंगे. 

ब्रह्म प्रकाश बने थे दिल्ली के पहले सीएम

चौधरी ब्रह्म प्रकाश को तेजतर्रार नेता माना जाता था और वे जमीन से जुड़े नेता थे. स्वभाव से थोड़ा अक्खड़ थे. यहां तक ​​कि तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत भी उन्हें पसंद नहीं करते थे. उस समय पंत का दिल्ली में अच्छा खासा प्रभाव था. इस बीच, ब्रह्म प्रकाश का राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त तत्कालीन मुख्य आयुक्त आनंद पंडित से विवाद हो गया. आनंद, नेहरू के करीबी थे. ब्रह्म प्रकाश और आनंद के बीच हमेशा अनबन रहने लगी. दोनों की कई फैसलों को लेकर सहमति नहीं बन रही थी. 

गुरमुख को पंत के करीबी होने का मिला फायदा

कांग्रेस के लिए चौधरी ब्रह्मप्रकाश को झेलना मुश्किल होता जा रहा था. आखिरकार 12 फरवरी, 1955 को चौधरी ब्रह्मप्रकाश से इस्तीफा ले लिया गया. दिल्ली में एक बार फिर गोविंद बल्लभ पंत की चली और उन्होंने अपनी पसंद के गुरमुख निहाल सिंह को नया मुख्यमंत्री बनवा दिया. 13 फरवरी, 1955 को निहाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद्भार संभाला.

Advertisement

यह भी पढ़ें: Delhi Assembly Election History: जब केजरीवाल ने कर ली शीला की बराबरी, BJP के हाथ सिर्फ 8 तो कांग्रेस का हो गया सूपड़ा साफ

गुरमुख निहाल सिंह. (फाइल फोटो- Getty)

शराबबंदी पर नेहरू को लिखनी पड़ी थी चिट्ठी

गुरमुख निहाल सिंह के बेटे और पत्रकार सुरेंद्र निहाल सिंह ने अपनी किताब 'Ink in my Veins' में लिखते हैं कि मुख्यमंत्री बनते ही गुरमुख ने दिल्ली में शराब बंदी लागू करवा दी. राष्ट्रीय राजधानी में विरोध के सुर उठने लगे. पार्टी में ही अलग-अलग तरह की बातें होने लगीं. मामला प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के संज्ञान में लाया गया और 26 जुलाई, 1956 को नेहरू ने गुरमुख को चिट्ठी लिखी. इस चिट्ठी में पंडित नेहरू ने लिखा, 'हमारी स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने दिल्ली में शराबबंदी की नीति के बारे में सूचना दी है. मैं इस विषय में ज्यादा जानकारी नहीं रखता हूं. हम शराबबंदी के पक्ष में हैं, लेकिन बैन होने के कारण हमेशा एक खतरा बना रहता है. इससे अवैध शराब निर्माण और तस्करी बढ़ सकती है. इस तरह का ट्रीटमेंट बीमारी से ज्यादा खतरनाक है. स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि कहीं-कहीं तो अवैध शराब का धंधा शुरू हो गया है. मुझे उम्मीद है कि आपकी सरकार इस पहलू को ध्यान में जरूर रखेगी.'

Advertisement

लेकिन शराबबंदी पर अड़े गुरमुख

नेहरू की ये चिट्ठी चर्चा में आई. लेकिन, गुरमुख निहाल सिंह ने अपने कदम वापस नहीं खींचे. पार्टी के अंदर भी दो गुट उभरे. एक पक्ष में खड़ा था और एक विरोध कर रहा था. किताब में आगे लिखा है, कांग्रेस नेता मोरारजी देसाई शराबबंदी पर बैन लगाने के पक्ष में थे. इस बीच, ये खबर भी चर्चा में आई कि गुरमुख ने अपने बेटे की शराब की लत से परेशान होकर दिल्ली में शराब बंदी करवा दी. 

यह भी पढ़ें: Delhi Assembly Election History: दिल्ली का वो चुनाव, जिसमें कांग्रेस का गेम हो गया फिनिश और AAP ने कायम कर ली बादशाहत

दिल्ली की कुर्सी गई तो राजस्थान भेजे गए गुरमुख

20 महीने बाद दिल्ली में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश लागू कर दी गई और दिल्ली विधानसभा भंग हो गई. 1 नवंबर को गुरमुख निहाल सिंह को राजस्थान का पहला राज्यपाल बना दिया गया. यानी दिल्ली विधानसभा के अस्तित्व समाप्त होने तक गुरमुख मुख्यमंत्री पद पर रहे. 

फिर 41 साल बाद हुए दिल्ली में चुनाव

1956 में दिल्ली को यूनियन टेरिटरी बनाया गया और प्रशासनिक व्यवस्था बदल गई. यहां उपराज्यपाल का शासन आ गया. बाद में 1966 में दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल अस्तित्व में आ गया. 1956 से लेकर 1993 तक दिल्ली पर केंद्र सरकार का सीधा नियंत्रण रहा. अगले 37 साल तक दिल्ली में मुख्यमंत्री का पद नहीं रहा. इस दौरान दिल्ली नगर निगम और महानगर परिषद अवश्य गठित हुईं. 41 साल बाद 1993 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी ने जीत हासिल की और 2 दिसंबर को मदन लाल खुराना ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

Advertisement

क्यों पंत की पसंद थे गुरमुख निहाल सिंह?

दरअसल, गुरमुख अपने शैक्षिक सेवाकाल में बनारस, इलाहाबाद, लखनऊ और दिल्ली समेत देश की विभिन्न यूनिवर्सिटी की कई महत्वपूर्ण कमेटी के सदस्य और अध्यक्ष रहे. प्राध्यापक भी बनाए गए. राजनीति विज्ञान विषय में कई पुस्तकें लिखीं. गोविंद बल्लभ पंत उनकी शैक्षिक योग्यता से बेहद प्रभावित थे. पंत को लगता था कि कई कॉलेजों में प्रिंसिपल रहा ये शख्स ना सिर्फ बोलने में अच्छा होगा, बल्कि पार्टी के अंदर अनुशासन बनाकर रखेगा और लापरवाह और गड़बड़ी करने वाले नेताओं को नहीं बख्शेगा. पंत ने ना सिर्फ गुरमुख को चुनाव लड़ने के लिए राजी किया. बल्कि पहले स्पीकर बनवाया. फिर मुख्यमंत्री और बाद में राज्यपाल के रूप मे ओहदेदार बनाया. वे 15 अप्रैल 1962 तक राज्यपाल की कुर्सी पर रहे.

यह भी पढ़ें: Delhi Assembly Election History: शीला हारीं, झाडू चली और त्रिशंकु बनी विधानसभा... दिल्ली की 2013 की चुनावी कहानी

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement