
जम्मू और कश्मीर में विधानसभा चुनाव के इंतजार की घड़ी अब समाप्त होने की ओर है. चुनाव आयोग की आज शाम 3 बजे से प्रेस कॉन्फ्रेंस होनी है जिसमें जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव कार्यक्रम का ऐलान होना है. साल 2019 में राज्य पुनर्गठन और केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से ही जम्मू कश्मीर की राजनीतिक पार्टियां जल्द विधानसभा चुनाव कराने और पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग कर रही थीं. सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव आयोग को सितंबर तक जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव संपन्न कराने के निर्देश दिए थे.
लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद पहली बार होने जा रहे इन चुनावों में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर की जनता 90 विधानसभा सीटों के लिए अपना प्रतिनिधि चुनेगी. 2019 के पहले तक जम्मू और कश्मीर पूर्ण राज्य हुआ करता था और तब विधानसभा की 87 सीटों के लिए वोट डाले जाते थे. जम्मू और कश्मीर के पिछले चुनावी नतीजे कैसे रहे हैं?
पिछले चुनाव में कैसे रहे थे नतीजे
राज्य पुनर्गठन के पहले जम्मू कश्मीर विधानसभा के लिए चुनाव आखिरी बार साल 2014 में हुए थे. तब जम्मू कश्मीर विधानसभा की 87 सीटों के लिए करीब 65 फीसदी वोटिंग हुई थी. चुनाव नतीजों की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को सबसे ज्यादा 23 फीसदी वोट मिले थे लेकिन पार्टी 25 सीटों के साथ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के बाद दूसरे नंबर रही थी. पीडीपी तब 22.7 फीसदी वोट शेयर के साथ 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी लेकिन बहुमत के लिए जरूरी 44 के जादुई आंकड़े से पीछे रह गई थी.
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डॉक्टर फारुक अब्दुल्ला की अगुवाई वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस को 20.8 फीसदी वोट शेयर के साथ 15, कांग्रेस को 18 फीसदी वोट शेयर के साथ 12 सीटों पर जीत मिली थी. पीपुल्स कॉन्फ्रेंस 1.9 फीसदी वोट शेयर के साथ दो, सीपीआईएम एक फीसदी से भी कम वोट शेयर के साथ एक सीट जीतने में सफल रही थी. तब पीडीएफ के एक उम्मीदवार को भी जीत मिली थी और तीन निर्दलीय भी विधानसभा पहुंचने में सफल रहे थे. किसी भी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. दो सबसे बड़ी पार्टियों पीडीपी और बीजेपी साथ आए और गठबंधन सरकार बनाई. साल 2018 में ये गठबंधन टूट गया था जिसके बाद राज्य में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया था.
जम्मू कश्मीर का चुनावी अतीत
महाराजा हरि सिंह ने 1934 में विधायिका गठित कर दी थी लेकिन जम्मू और कश्मीर के चुनावों में किसी भी पार्टी को इसमें भाग लेने की इजाजत नहीं थी. 1951 में विधायिका के चुनाव हुए और तब शेख अब्दुल्ला की पार्टी ने सभी सीटें निर्विरोध जीत ली थीं. 1962 में पहली बार जम्मू कश्मीर विधानसभा के चुनाव हुए और उसमें शेख अब्दुल्ला की पार्टी ने बख्शी गुलाम मोहम्मद की अगुवाई में 70 सीटों पर जीत हासिल की थी. 1967 के विधानसभा चुनाव में 61 सीटों पर जीत के साथ कांग्रेस सत्ता में आई. नेशनगल कॉन्फ्रेंस तब तीन सीटें ही जीत सकी थी.
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साल 1972 के जम्मू कश्मीर चुनाव में कांग्रेस को 58, भारतीय जनसंघ को तीन और जमात-ए-इस्लामी को पांच सीटों पर जीत मिली थी. 1977 के विधानसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस 47 सीटें जीतकर सत्ता में आई. 1983 के चुनाव में भी नेशनल कॉन्फ्रेंस को जीत मिली थी. 1987 में नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. 1996 के चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 57 सीटों पर जीत हासिल की थी. 2002 के जम्मू कश्मीर चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.2008 के चुनाव में भी किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था और नेशनल कॉन्फ्रेंस 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी थी.