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दिल्ली के दंगल में कांग्रेस के 'पंजे' की पकड़ ढीली... या लास्ट मोमेंट के लिए बचाया 'तुरुप का इक्का'?

टॉप गियर लगाने के बाद कांग्रेस अब फिर न्यूट्रल गियर में नज़र आ रही है. खराब स्वास्थ की वजह से राहुल गांधी का अरविंद केजरीवाल के खिलाफ नई दिल्ली में प्रचार कैंसिल हुआ. इसके बाद 22-24 जनवरी को इंद्रलोक, मुस्तफाबाद और मादीपुर में होने वाली तीन रैलियां भी कैंसिल हो गईं. हालांकि पहले भी ऐसा हो चुका है कि अगर किसी रैली में राहुल गांधी नहीं पहुंच पाए तो प्रियंका गांधी ने भरपाई कर दी. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. रैली में न प्रियंका गांधी नजर आईं न कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे.

दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के प्रचार की रफ्तार धीमी नजर आ रही है (फाइल फोटो) दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के प्रचार की रफ्तार धीमी नजर आ रही है (फाइल फोटो)
मौसमी सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 24 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 8:07 PM IST

दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी जमीन मजबूत करने के लिए कांग्रेस ने पहले तो आम आदमी पार्टी के ख़िलाफ़ आक्रामक तेवर दिखाए, खूब मोर्चा खोला. आलम ये था कि दिल्ली के सियासी दंगल में तीनों दल (कांग्रेस-बीजेपी-AAP) आमने-सामने आ गए. इस चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की एंट्री हुई और उन्होंने सीलमपुर की रैली में केजरीवाल पर तीखे हमले किया. राहुल गांधी के इस कदम ने साफ कर दिया कि कांग्रेस इस लड़ाई को गंभीरता से लड़ेगी.

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हालांकि टॉप गियर लगाने के बाद कांग्रेस अब फिर न्यूट्रल गियर में नज़र आ रही है. खराब स्वास्थ की वजह से राहुल गांधी का अरविंद केजरीवाल के खिलाफ नई दिल्ली में प्रचार कैंसिल हुआ. इसके बाद 22-24 जनवरी को इंद्रलोक, मुस्तफाबाद और मादीपुर में होने वाली तीन रैलियां भी कैंसिल हो गईं. हालांकि पहले भी ऐसा हो चुका है कि अगर किसी रैली में राहुल गांधी नहीं पहुंच पाए तो प्रियंका गांधी ने भरपाई कर दी. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. रैली में न प्रियंका गांधी नजर आईं न कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे.

स्थानीय संगठन से नाखुश हैं राहुल गांधी

सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी दिल्ली कांग्रेस की धीमी रफ्तार से भी नाख़ुश हैं. एक नेता ने बताया कि दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव से भी इस बाबत राहुल गांधी ने बात की है. इसका मतलब कहीं न कहीं पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को लगता है कि दिल्ली यूनिट अरविंद केजरीवाल के खिलाफ माहौल बनाने में कारगर नहीं रही.  कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पहले भी ये बात कह चुके हैं कि हर बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का लोकल संगठन पार्टी के टॉप नेताओं पर ही ज़्यादा निर्भर रहता है, जोकि सही नहीं है.

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अपने 'तुरुप के इक्के' को लेकर क्या रणनीति?

पार्टी के एक धड़े को ये भी लगता है कि केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोलकर और अपने सियासी सूरमाओं को उतारकर कहीं पार्टी को मुंह की ना खानी पड़े. पार्टी का आंतरिक सर्वे भी कांग्रेस को ज़्यादा सीटें नहीं दे रहा. ऐसे में अगर कांग्रेस का गेम ख़राब होता है, तो ठीकरा गांधी परिवार पर फूटेगा और कांग्रेस अपने तुरुप के इक्के को डैमेज नहीं करना चाहती.

प्रचार के आखिरी फेज में जोर लगाएगी पार्टी?

एक और रणनीति के तहत पार्टी को लगता है कि नेताओं को बहुत पहले उतार कर कांग्रेस अपना मोमेंटम नहीं बना पाएगी. इसलिए 27 जनवरी के बाद ही तीनों बड़े नेताओं की प्रॉपर लॉन्चिंग होगी. आखिरी फेज़ के चुनाव प्रचार में बैक टू बैक रैलियां, डोर-टू-डोर रोड शो और पद यात्रा करके कांग्रेस के पक्ष में हवा बनाने में कांग्रेस के स्टार प्रचारक कामयाब होंगे. ऐसे में सवाल ये है कि क्या तब तक बहुत देर हो चुकी होगी?

कांग्रेस के सामने करो यो मरो की स्थिति

दिल्ली में कांग्रेस को जीवंत करने के लिए 'करो या मरो' की स्थिति पार्टी के सामने है. दरअसल कांग्रेस सवालों से जूझ रही है कि अगर कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करती है और आम आदमी पार्टी को रोकने में क़ामयाब होती है, तो उस पर सांप्रदायिक ताक़तों को मज़बूत करने का आरोप लगेगा. दूसरी तरफ़ अगर वो आक्रामक तेवर अपनाती है, आम आदमी पार्टी को घेरती है और उसके बावजूद बावजूद भी अरविंद केजरीवाल जीत जाते हैं, तो पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की लोकप्रियता पर प्रश्नचिन्ह लग सकते हैं. 

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