
राजनीति में 34 साल की उम्र बहुत ज्यादा नहीं होती है. लेकिन 28 फरवरी को कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड में हुई रैली में 34 साल का ये मुस्लिम आलिम जब मंच पर आया तो इन्होंने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी. बात हो रही है फुरफरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की, और ये रैली थी भारत की ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस और बंगाल की सत्ता से वनवास भोग रहे सीपीएम की, लेकिन इस शो का लाइमलाइट चुरा लिया अब्बास सिद्दीकी ने.
अब्बास सिद्दीकी कांग्रेस के मंच पर क्या आए, बात विचारधारा की होने लगी? कांग्रेस में ही इस पर सवाल खड़ा हो गया? लेकिन कहा जाता है विचारधारा और सिद्धांत वह 'लग्जरी' है जिसका पालन लोग तभी करते हैं जब उसका इकबाल बुलंद रहता है. इसके अपवाद हो सकते हैं, लेकिन एक अदद जीत तलाश रही कांग्रेस इस समय इस 'लग्जरी' को अफोर्ड नहीं कर सकती है.
इसलिए जिस अब्बास सिद्दीकी के सेकुलर क्रेडेंशियल पर कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने सवाल खड़े किए, उसका जवाब देने अधीर रंजन चौधरी आए. सवाल है कि बंगाल की राजनीति में अब्बास सिद्दीकी का आभा मंडल कितना बड़ा है? उनकी राजनीति के धरातल पर क्या हैसियत है? बंगाल में ऑन पेपर वह कितना प्रभुत्व रखते हैं? आखिर क्यों जंग-ए-बंगाल के लिए औवैसी पहले उन्हें अपने साथ करना चाहते थे, लेकिन अब वे कांग्रेस-सीपीएम के साथ हैं. यहां ये जानना दीगर है कि पीरजादा अब्बास सिद्दीकी चुनावी राजनीति के डेब्यूटेंट हैं.
पीरजादा क्यों लिखते हैं अब्बास सिद्दीकी
पीरजादा फारसी शब्द है, जिसका मतलब होता है मुस्लिम धर्मगुरु की संतान. अब्बास सिद्दीकी का परिवार फुरफुरा शरीफ स्थित हजरत अबु बकर सिद्दीकी और उनके पांच बेटों की मजार की देख रेख करता आया है. अभी इसके कर्ता-धर्ता अब्बास सिद्दीकी हैं.
फुरफुरा शरीफ पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के जंगीपारा विकासखंड में स्थित एक गांव का नाम है. इस गांव में स्थित हजरत अबु बकर सिद्दीकी की दरगाह बंगाली मुसलमानों में काफी लोकप्रिय है. कहा तो यह भी जाता है कि अजमेर शरीफ के बाद ये मुसलमानों का भारत में दूसरा पवित्र दरगाह है. यहां पर हजरत अबु बकर सिद्दीकी के साथ ही उनके पांच बेटों की भी मजार है. यहां का सालाना उर्स बड़ी संख्या में बंगाली और उर्दू भाषी मुसलमानों को खींचता है.
ममता से कभी बहुत छनी, राजनीतिक महात्वाकांक्षा से जुदा हुई राहें
पीरजादा अब्बास सिद्दीकी अबतक मजहबी शख्सियत थे, ऐसा नहीं था कि उनका राजनीति से वास्ता नहीं था, एक समय सीएम ममता बनर्जी से उनकी खूब पटती थी. कहा जाता है कि जब ममता के संघर्ष के दिन थे और वह सिंगुर और नंदीग्राम में आंदोलन कर रही थीं तो फुरफुरा शरीफ के पीरजादा परिवार ने ममता का खुला समर्थन किया था. तब वहां कई मुसलमान किसानों की भी जमीन जा रही थी.
ममता और अब्बास शरीफ के बीच तब तक तो ठीक ठाक चलती रही जब तक अब्बास सिद्दीकी मौलाना के रोल में रहे. लेकिन ज्यों ही उनके अंदर राजनीतिक महात्वाकांक्षा पैदा हुई ममता से उनकी राहें जुदा हो गई.
सोशल मीडिया पर अब्बास सिद्दीकी का अपना फैन बेस
बंगाल के मुसलमानों के बीच युवा अब्बास सिद्दीकी का अपना फैन बेस हैं. अपने उत्तेजक भाषण, मजहबी तकरीरों की वजह से वह सोशल मीडिया के वर्चुअल स्पेस से लेकर हकीकत के जलसों में भी काफी भीड़ खींचते हैं. उनके कई वीडियो अब भी आपको फेसबुक, ट्विटर पर अलग अलग संदर्भों में मिल जाएंगे.
100 सीटों पर निर्णायक भूमिका में मुस्लिम वोटर
बता दें कि बंगाल के 294 सीटों में से लगभग 70 से 100 सीटों पर मुस्लिम आबादी का अनुपात 27 से 30 फीसदी तक है. मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तरी दिनाजपुर में मुस्लिम आबादी 50 फीसदी से ऊपर है. इन जिलों में फुरफरा शरीफ के लाखों फॉलोअर हैं जो हर साल जियारत करने यहां आते हैं?
दक्षिण बंगाल के दक्षिण 24 परगना, उत्तर 24 परगना, हुगली, हावड़ा, बर्दमान और बीरभूम में अब्बास सिद्दीकी के लाखों समर्थक हैं. अब्बास सिद्दीकी ने अपने समर्थकों की राजनीतिक वफादारी को कभी खुद नहीं आजमाया है, क्योंकि वह पहली बार ही प्रत्यक्ष राजनीति में उतर रहे हैं. उन्हें लगता है कि अगर वे इन मुसलमानों को राजनीतिक नेतृत्व चुनने का विकल्प दें तो वह बंगाल की राजनीति में सत्ता का एक केंद्र बन सकते हैं. हालांकि इन्हीं मुसलमानों ने 2011 और 2016 के चुनाव में ममता के पक्ष में गोलबंद होकर वोट किया था और उन्हें बंपर सीटें दी थी.
ममता के खिलाफ भड़ास निकालते हुए अब्बास सिद्दीकी कहते हैं कि उन्होंने मुस्लिम वोट बैंक को बंधुआ समझा. पीरजादा सिद्दीकी का दावा है कि अब बंगाल का मुस्लिम वोटर ममता के मोहपाश से निकल चुका है और अब वो आजाद है.
अब्बास सिद्दीकी की इसी कल्पना का परिणाम है उनका राजनीतिक संगठन, जिसको उन्होंने सेकुलर जामा पहनाते हुए नाम दिया है इंडियन सेक्युलर फ्रंट. हालांकि उनका धर्मनिरपेक्षता का दावा भारत के दूसरे दलों के दावे की तरह ही तर्कयोग्य है. कांग्रेस नेता तो खुद इस बात की तस्दीक कर चुके हैं. इस गठबंधन में कई दलित और आदिवासी संगठन भी शामिल हैं.
30 सीटें देने के लिए तैयार
पीरजादा अब्बास सिद्दीकी को पहले तो बिहार में प्रयोग कर चुके ओवैसी ने लुभाया, लेकिन जब इनकी बात न बनी तो अब्बास सिद्दीकी ने कांग्रेस और सीपीएम से पींगें बढ़ाई. अब अब्बास सिद्दीकी इन दोनों पार्टियों से लगभग 70 सीटें चाहते हैं. इनमें से 30 सीटें के लिए सहमति बन गई है.
इन जिलों पर हैं नजरें
आकंड़ों के अनुसार 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले मुर्शिदाबाद में 22 सीट, मालदा में 12 सीट, उत्तरी दिनाजपुर में 9, बीरभूम में 11 सीटें हैं.
जहां फुरफुरा शरीफ मौजूद है उस हुगली जिले में विधानसभा की 18 सीटें आती हैं. उत्तरी 24 परगना में 33 सीट और दक्षिण 24 परगना में 31 सीटें आती हैं. ये वो इलाके हैं जहां पर इंडियन सेक्युलर फ्रंट अपने उम्मीदवार उतारना चाहता है.
हालांकि यहां यह जानना जरूरी है कि बंगाल में अब तक उग्र मॉइनरिटी पॉलिटिक्स नहीं होती रही है. ममता सरकार में कई मुस्लिम सांसद, मंत्री और विधायक हैं, इनका मुस्लिम वोटों पर अपना होल्ड है. इसके अलावा उत्तर दिनाजपुर, मालदा और मुर्शिदाबाद में कांग्रेस की पकड़ है.
इसके अलावा बंगाल में मुस्लिम राजनीति एकधारा में नहीं चलती है. इनकी कई शाखाएं हैं, इनकी भाषा, संस्कृति, मजहब को मानने का तरीका भी अलग अलग है. राज्य में 8 से 10 प्रतिशत मुसलमानों की मादरी जुबान उर्दू है, ये लोग कोलकाता, आसनसोल और सिलीगुड़ी जैस शहरों में बसें हैं. बाकी 90 प्रतिशत मुस्लिम राज्य के दूसरे हिस्सों में हैं और बांग्ला के अलावा दूसरी बोलियां बोलते हैं. कहा जाता है कि उर्दू बोलने वाले मुसलमानों का झुकाव कांग्रेस की ओर रहा करता है.
इसलिए फिलहाल पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के दावे पर फेस वैल्यू के साथ यकीन कर लेना इस वक्त जल्दबाजी और नादानी होगी.
भतीजे के विरोध में और टीएमसी के समर्थन में हैं चाचा
पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की राजनीतिक महात्वाकांक्षाएं भले ही उफान मार रही हो, लेकिन उनके चाचा तोहा सिद्दीकी अभी भी ममता बनर्जी के सिपहसालार बने हुए हैं. तोहा सिद्दीकी ने आजतक से कहा था कि अब्बास अभी बच्चा है. वे कहते हैं कि यहां के मुसलमान साम्प्रदायिकता के खिलाफ वोट करेंगे. कहा जाता है कि इस परिवार में भी जायदाद को लेकर जंग चलती रहती है. इसका असर समर्थकों पर देखने को मिलता है. फुरफरा शरीफ के समर्थक भी दो भागों में बंटे हुए हैं.