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जानिए, बंगाल चुनाव 2021 क्यों है प्रशांत किशोर के लिए लिटमस टेस्ट?

बंगाल की हाईप्रोफाइल पॉलिटिकल बैटल के लिए प्रशांत किशोर ने अपना वर्किंग स्टाइल बदला है. बंगाल चुनाव किशोर के लिए लिटमस टेस्ट से कम नहीं है. ये उनके लिए मेक या ब्रेक का सवाल है.

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (फाइल फोटोः पीटीआई) चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (फाइल फोटोः पीटीआई)
इंद्रजीत कुंडू
  • कोलकाता ,
  • 22 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 10:39 PM IST
  • बंगाल में प्रशांत किशोर ने बदली अपनी कार्यशैली
  • विधायकों की लोकप्रियता का आकलन कर रही टीम
  • सत्ता विरोधी लहर और असंतोष से निपटने की चुनौती

'मास्टर चुनाव रणनीतिकार’ माने जाने वाले प्रशांत किशोर ने बंगाल की हाई वोल्टेज चुनावी जंग के लिए अपना बहुत कुछ दांव पर लगा दिया है. किशोर ने सोमवार को एक ट्वीट में कहा- 'मीडिया का एक वर्ग बीजेपी के समर्थन में माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन असल में बीजेपी दहाई के आंकड़े को पार करने के लिए संघर्ष करेगी. इस ट्वीट को सुरक्षित कर लीजिए, अगर बंगाल में बीजेपी कुछ बेहतर करती है तो मुझे जरूर ये स्पेस छोड़ देनी चाहिए.' किशोर ने ये ट्वीट कर सीधे भगवा खेमे को चुनौती दी. ये ट्वीट कुछ ही समय में वायरल हो गया. पहले से ही चार्ज माहौल में बंटे हुए मतदाताओं ने इस ट्वीट पर प्रतिक्रियाओं की झड़ी लगा दी. 

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भगवा खेमे ने दावा किया कि किशोर का ये ट्वीट उनकी घबराहट का प्रतीक है. वहीं टीएमसी समर्थकों के मुताबिक किशोर ने सीधे शब्दों में बीजेपी को ‘झांसेबाज’ करार दिया है. किशोर का इस तरह का ट्वीट वास्तव में उनके स्वभाव से मेल नहीं खाता. उन्हें पहले कभी अपने क्लाइंट्स के राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ खुद जुबानी मोर्चा खोलते नहीं देखा गया. चाहे वो आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी हों या दिल्ली में अरविंद केजरीवाल, वो हमेशा बैकरूम स्ट्रेटेजिस्ट के तौर पर ही अपनी भूमिका निभाना पसंद करते रहे. चुपचाप अपना काम करते हुए नतीजे देने में उनका यकीन रहा. 

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लेकिन बंगाल की हाईप्रोफाइल पॉलिटिकल बैटल के लिए प्रशांत ने अपना वर्किंग स्टाइल बदला लगता है. बंगाल चुनाव किशोर के लिए लिटमस टेस्ट से कम नहीं है. ये उनके लिए मेक या ब्रेक का सवाल है. दिल्ली विधानसभा की महज 70 सीटों की तुलना में बंगाल विधानसभा चुनाव में कहीं ज्यादा और जटिल 294 सीटें दांव पर होंगी. 

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किशोर के लिए चैलेंज सिर्फ विरोधी बीजेपी से ही नहीं बल्कि टीएमसी में अपने कैम्प से भी है. इस पार्टी के नेतृत्व के एक वर्ग से ही उन्हें नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है. इस वर्ग का मानना है कि एक ‘हायर्ड प्राइवेट एजेंसी’ जमीनी अनुभव वाले राजनेताओं को निर्देश नहीं दे सकती. टीएमसी रैंक में ऐसे नेताओं की कमी नहीं जो ‘टीम PK’ को फैसिलिटेटर की जगह अड़चन मानते हैं. 

सूत्रों के मुताबिक ये विरोध मुख्य तौर पर इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (IPAC)  की ओर से टीएमसी की जमीनी वर्कफोर्स से भ्रष्टाचारियों को खदेड़ने की कोशिशों की वजह से है. फील्ड पर टीम पीके के एक सदस्य ने कहा, “ममता दी की छवि बेदाग है, लेकिन पार्टी को जो कमजोर कर रहा है वो बेस पर भ्रष्टाचार है.”  

बंगाल में अधिक समय दे रहे पीके

इसमें हैरानी की बात नहीं कि किशोर अपना अधिकतर वक्त बंगाल की भूमि पर बिता रहे हैं, जबकि उनके एक और क्लाइंट डीएमके को लगभग उसी वक्त तमिलनाडु में चुनावी परीक्षा से गुजरना है. उनकी टीम IPAC ने पश्चिम बंगाल के लिए अपनी अब तक की सबसे बड़ी 1000 सदस्यों की टीम उतारी है. इनकी मौजूदगी हर निर्वाचन क्षेत्र में है. बंगाल की 294 में हर सीट के लिए टीम पीके माइक्रो स्ट्रेटेजी बनाने में जुटी है. इन्हें तीन श्रेणियों में बांटा गया है- सुरक्षित, मुश्किल और बैटलग्राउंड.  

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टीम मौजूदा टीएमसी विधायकों की जमीन पर लोकप्रियता का आकलन भी कर रही है. IPAC का रिपोर्ट कार्ड ही इन चुनावों के लिए यह तय करने में निर्णायक हो सकता है कि किसे टिकट दिया जाए या किसे नहीं. ये उन विधायकों में बेचैनी का कारण भी हो सकता है जिन्हें लगता है कि उन्हें शायद ही टिकट मिले. ममता बनर्जी ने हाल मे कूच बिहार में पार्टी कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था, ‘’जो इस बार टिकट पाने को लेकर आश्वस्त नहीं हैं, वही बीजेपी में जाने के लिए जहाज से कूद रहे हैं.” 

प्रशांत किशोर के सामने दोहरी चुनौती

पिछले कुछ महीनों से IPAC सदस्य लगातार पंचायत स्तर पर लोकल इनपुट लेने के अलावा जमीनी नेतृत्व से मिल रहे हैं और ‘दीदी कि बोलो’ कैम्पेन के जरिए नेताओं और लोगों के बीच गैप को भरने की कोशिश कर रहे हैं. टीम ने शिकायतों को पहचाना है. इनमें से अधिकतर विभिन्न सामाजिक योजनाओं की आखिरी चरण पर डिलिवरी में भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर हैं. इनमें ममता बनर्जी की ओर से शुरू की गईं ‘कन्याश्री’ और ‘स्वास्थ्य साथी’ जैसी योजनाएं हैं.   

IPAC की ओर से डिजाइन ताजा कैम्पेन ‘बंगध्वनि’ का लक्ष्य जनप्रतिनिधियों- विधायकों, पार्षदों- को जमीनी स्तर पर वापस ले जाने का है. जिससे कि लोग उनसे दोबारा संपर्क बना सकें जो जनप्रतिनिधियों के अक्सर सत्ता में आने पर टूट जाता है. निर्वाचित टीएमसी प्रतिनिधि अपने क्षेत्रों में हर दिन 8 से 10 घंटे बिता रहे हैं. इस काम में टीम पीके उनकी मदद कर रही है. IPAC के एक सदस्य ने कहा, “देखा जाए तो हम राउंड द क्लॉक काम कर रहे हैं. ये मुश्किल है क्योंकि टीएमसी कैडर आधारित पार्टी नहीं है.” 

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प्रशांत किशोर के सामने दोहरी चुनौती है- न सिर्फ सत्ता विरोधी लहर से टीएमसी को उबारना बल्कि पार्टी के अंदर अंसतोष की सुगबुगाहट को भी शांत करना है जो जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ जरी अभियान की वजह से है.

 

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