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बंगाल में शुभेंदु अधिकारी बड़ी सियासी ताकत, BJP और टीएमसी साधने में जुटी

बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले टीएमसी नेता और ममता बनर्जी के करीबी रहे शुभेंदु अधिकारी के इस्तीफा देने के बाद उन्हें मनाने की कवायद की जा रही है तो बीजेपी अपने खेमे में लाने की कोशिशों में जुटी है. शुभेंदु अधिकारी आखिर क्यों महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें बीजेपी और टीएमसी में दोनों ही साधने में जुटी है. 

टीएमसी नेता शुभेंदु अधिकारी टीएमसी नेता शुभेंदु अधिकारी
aajtak.in
  • नई दिल्ली ,
  • 03 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 4:02 PM IST
  • ममता बनर्जी अपने करीबी शुभेंदु को मनाने में जुटीं
  • शुभेंदु की बंगाल की राजनीति में जबरदस्त पकड़ है
  • शुभेंदु की सियासी ताकत के चलते बीजेपी डोरे डाल रही

पश्चिम बंगाल विधानसभा की सियासी जंग फतह करने के लिए टीएमसी और बीजेपी के बीच शह मात का खेल जारी है. ऐसे में चुनाव से पहले टीएमसी नेता और ममता बनर्जी के करीबी रहे शुभेंदु अधिकारी के इस्तीफा देने के बाद उन्हें मनाने की कवायद की जा रही है तो बीजेपी अपने खेमे में लाने की कोशिशों में जुटी है. शुभेंदु अधिकारी आखिर क्यों महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें साधने में बीजेपी और टीएमसी दोनों ही जुटे हैं. 

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शुभेंदु अधिकारी ने बीते शुक्रवार को पर्यटन मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. इससे पहले वो हुगली रिवर ब्रिज कमीशन (HRBC) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके थे. शुभेंदु के टीएमसी छोड़कर बीजेपी में जाने की अटकलें तेज थीं, क्योंकि बीजेपी ने उनके लिए पार्टी में स्वागत के लिए दरवाजे खोल रखे थे. ऐसे में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने खुद उनसे मुलाकात कर उनकी नाराजगी को दूर करने की कवायद की है, जिसके बाद माना जा रहा है कि वो पार्टी में बने रहेंगे. 

नंदीग्राम आंदोलन से मशहूर हुए शुभेंदु अधिकारी राजनीतिक रूप से इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि टीएमसी उन्हें मनाने की हर संभव कोशिश में जुटी है. शुभेंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर जिले के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं. उनके पिता शिशिर अधिकारी 1982 में कांथी दक्षिण से कांग्रेस के विधायक थे, लेकिन बाद में वे टीएमसी को खड़ी करने वालों में से एक हैं.

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शुभेंदु अधिकारी 2009 से ही कांथी सीट से तीन बार विधायक चुने जा चुके हैं और उनके दूसरे भाई भी 2009 में विधायक रह चुके हैं. शिशिर अधिकारी तीसरी बार सांसद हैं और ऐसे में उनकी राजनीतिक प्रभाव को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. 

शुभेंदु की लोकप्रियता और संगठनात्मक क्षमता इतनी है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा की करीब 110 से अधिक सीटों पर चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं. पश्चिम मिदनापुर, बांकुरा और पुरुलिया जिले में टीएमसी की सियासी जमीन तैयार करने में शुभेंदु अधिकारी की अहम भूमिका रही है. ममता बनर्जी भी इस बात को बखूबी समझती हैं, जिसके चलते वो किसी भी सूरत में उन्हें पार्टी से नहीं खोना चाहती हैं. 

शुभेंदु की जंगल महल और पूर्वी मिदनापुर इलाके में जननेता के तौर पर पहचान है. 2016 में उनके प्रभाव वाले इलाके की 49 सीटों में से 36 सीटें जीत ली थीं. इसके अलावा दूसरे इलाके की सीटों पर भी उनका प्रभाव है, जहां टीएमसी ने बेहतर प्रदर्शन पिछले चुनाव में किया था.

इस बात को टीएमसी छोड़कर बीजेपी में आए मुकुल रॉय भी समझते हैं, जिसके चलते उन्हें बीजेपी में लाने का खुला ऑफर दिया था. हालांकि, टीएमसी ने शुभेंदु अधिकारी की राजनीतिक छमता को समझते हुए, उन्हें साधने की कोशिशों में जुटी है. ऐसे में देखना है कि शुभेंदु को टीएमसी अपने साथ रख पाती है या फिर बीजेपी उन्हें अपने खेमे में शामिल करने में कामयाब होती है. 

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