
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की बढ़ती सरगर्मियों के बीच सियासी दल अपने-अपने सामाजिक समीकरण सेट करने में जुटे हैं. ममता बनर्जी के राजनीतिक दुर्ग को भेदने के लिए बीजेपी हिंदुत्व की बिसात बिछाने में जुटी है. वहीं, टीएमसी ने सूबे के अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय के वोटों को साधने में जुट गई है. चुनाव से ठीक पहले ममता बनर्जी ने टीएमसी में एससी-एसटी समिति का गठन किया है और जल्द ही ओबीसी समिति का भी गठन किया जाएगा.
बंगाल की सियासत में एससी-एसटी समुदाय की राजनीतिक ताकत को देखते हुए ममता बनर्जी ने चुनाव से ठीक पहले पार्टी में अलग-अलग समाज के समितियों का गठन किया है, यही नहीं, यह पहली बार है जब पार्टी की ओर से लिखित में समिति के सदस्यों के नामों का उल्लेख किया गया है. चुनाव से पहले उनका यह कदम राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
टीएमसी के द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए गठित की गई अलग-अलग समितियों में प्रमुख के लिए राज्य के विभिन्न हिस्सों से नेताओं को जगह दी गई है. डॉ. तापस मंडल को अनुसूचित जाति समिति का अध्यक्ष बनाया गया है जबकि वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रतिमा मंडल, असित कुमार मंडल, नवीन चंद्र बाग हैं. समिति में छाया दोलोई, स्वपन बाउड़ी, मानोदेव सिन्हा सहित कई सदस्य हैं
वहीं, पूर्व बर्द्धमान के देबू टुडू को टीएमसी ने अनुसूचित जनजाति समिति के प्रमुख हैं. टीएमसी के एसटी समिति के अन्य सदस्यों में जेम्स कुजूर, सुकुमार महतो, परेश मुर्मू, जोसेफ मुंडा सहित कई लोगों को शामिल किया गया है. टीएमसी ने समिति में राजबंशी, मटुआ और नमशूद्र जैसे समुदायों पर विशेष ध्यान देना है.
बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने अलग-अलग समुदायों के वोटों को साधने के लिए अलग-अलग तरीके से रणनीति बनाई है. माना जा रहा है कि टीएमसी जल्द ही ओबीसी समिति का गठन करेगी. इस तरह टीएमसी दलित समुदाय से लेकर एसटी और ओबीसी को साधे रखने की कवायद में है. देखना है कि इसमें टीएमसी को कितनी सफलता मिलती है.