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गैर बंगाली हिन्दू वोटर्स का गुस्सा, मुस्लिम मतों में बिखराव, भवानीपुर से क्यों भंग हुई दीदी की 'ममता'

साल 2016 में ममता बनर्जी चुनाव तो जीत गईं, लेकिन उनके जीत का अंतर 2011 के मुकाबले आधे से भी कम रह गया. ममता बनर्जी 2011 का चुनाव 54 हजार वोटों के मार्जिन से जीती थीं, लेकिन 2016 में उनकी जीत का मार्जिन घटकर 25 हजार रह गया.

पश्चिम बंगाल की CM ममता बनर्जी (फोटो- पीटीआई) पश्चिम बंगाल की CM ममता बनर्जी (फोटो- पीटीआई)
पन्ना लाल
  • नई दिल्ली,
  • 10 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 4:35 PM IST
  • भवानीपुर से ममता बनर्जी का मोहभंग क्यों?
  • आधा रह गया ममता की जीत का मार्जिन
  • राजनीति का अर्थमैटिक और भावनाओं की केमिस्ट्री

ममता बनर्जी अपना वोट भवानीपुर में डालती हैं. भवानीपुर में ही उनका घर है. देश के सियासी फलक पर पहली बार ममता बनर्जी को प्रसिद्धि भवानीपुर की ही एक घटना से मिली थी. जब 30 साल पहले 16 अगस्त 1990 को तत्कालीन कांग्रेस नेत्री ममता एक राजनीतिक हमले में खून से लथपथ हो गई थीं और उनकी जान पर बन आई थी. 

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निश्चित रूप से भवानीपुर से दीदी की 'ममता' जुड़ी है. भवानीपुर की भूमि में उनकी 'स्ट्रीट फाइटर' की छवि निखरी. लेकिन इस बार राजनीति का अर्थमैटिक और भावनाओं की केमिस्ट्री एक दिशा में नहीं चल रही है, लिहाजा ममता बनर्जी को भवानीपुर से नंदीग्राम की ओर प्रस्थान करना पड़ा है. 

सवाल उठता है कि राज्य की मुख्यमंत्री को अपने पारंपरिक सीट से पलायन कर 150 किलोमीटर दूर नंदीग्राम क्यों जाना पड़ा है? टीएमसी और बीजेपी समर्थक इसका अलग अलग जवाब देते हैं. भवानीपुर से टीएमसी नेता नील मालाकार कहते हैं कि दीदी नंदीग्राम में बागी शुभेंदु अधिकारी से सीधे टकराना चाहती हैं, ताकि वोटर को संदेश दिया जाए कि ऐसे पालाबदल का ज्यादा असर ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस पर नहीं पड़ा है. 

'भवानीपुर से ममता को सता रहा था हार का डर'

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लेकिन बीजेपी नेता और सांसद बाबुल सुप्रियो का कहना है कि जब मौजूदा सीएम को अपने पारंपरिक सीट से जीत का भरोसा नहीं है तो इसका मतलब साफ है कि उन्हें हार का डर सता रहा है. बीजेपी नेता अमित मालवीय ने भी इस मुद्दे को लेकर ममता पर हमला किया है. राजनीतिक दावों से अलग हम हकीकत पर नजर डालते हैं.

भवानीपुर में ममता के जनाधार में दरार

हम पिछले 10 साल के 4 अहम चुनावों पर नजर डालते हैं. ये चुनाव हैं 2011, 2014, 2016 और 2019 के. इन चुनावों के डाटा बताते हैं कि भवानीपुर सीट पर दीदी के जनाधार में दरार पड़ रहा है. उनका वोटर बेस खिसक रहा है.

2011 में जब TMC ने बंगाल की सत्ता हासिल की तो ममता बनर्जी चुनाव नहीं लड़ी थीं, सीएम बनने के बाद ममता के लिए  एक सुरक्षित सीट की तलाश हुई, यूं तो ममता तब 34 साल के सीपीएम शासन को उखाड़ फेंककर अपने लोकप्रियता के चरम पर थीं, और किसी भी सीट से चुनाव जीत सकती थीं, फिर भी उन्होंने विधानसभा में जाने के लिए अपने गृहनगर भवानीपुर सीट को चुना. इस सीट से मौजूदा विधायक सुब्रत बख्शी ने त्यागपत्र दिया और ममता चुनाव लड़ीं. 

बतौर सीएम इस चुनाव में ममता बनर्जी ने 78 फीसदी वोट हासिल किया. उन्होंने सीपीएम की नंदिनी मुखर्जी को 54 हजार वोटों के भारी भरकम अंतर से हराया. 

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2011 के बाद भवानीपुर में नहीं बढ़ पाया दीदी की लोकप्रियता का ग्राफ

2011 में दीदी बंगाल में आईं तो 2014 में नरेंद्र मोदी केंद्र में आए. इसका असर बंगाल में भी दिखने लगा. भवानीपुर विधानसभा सीट बंगाल की कोलकाता दक्षिण लोकसभा सीट के अंदर आती है. ममता बनर्जी इस लोकसभा सीट पर 1991 से लेकर 2011 तक लगातार 6 बार सांसद रही हैं. 

भवानीपुर में TMC से ज्यादा वोट ले आई BJP

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने भवानीपुर क्षेत्र में अपनी स्थिति सुधार ली. जिस बीजेपी को 2011 के विधानसभा चुनाव में मात्र 5078 वोट मिले थे उसी भाजपा को 2014 में 'अबकी बार मोदी सरकार' के नारे के बीच भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र में 47 हजार से ज्यादा वोट मिले. आंकड़ों के अनुसार 2014 में बीजेपी के तथागत राय को टीएमसी के सुब्रत बख्शी से 185 वोट ज्यादा भी मिले. हालांकि सुब्रत बख्शी कुल मिलाकर इस चुनाव को जीतने में सफल रहे थे. 

लेकिन मात्र 3 साल में यानी कि 2011 से 14 के बीच भवानीपुर में बीजेपी ने सिर्फ अपना आधार बढ़ाया बल्कि टीएमसी से ज्यादा वोट भी ले आई. 

अब एक बार फिर चर्चा करते हैं विधानसभा चुनाव की, साल था 2016. ममता बनर्जी एक बार फिर भवानीपुर से ताल ठोक रही थीं. कांग्रेस ने उनके सामने दीपा दासमुंशी की चुनौती दी तो बीजेपी ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस के रिश्तेदार चंद्र कुमार बोस को इस सीट से उतारा. ममता चुनाव तो जीत गईं, लेकिन उनके जीत का अंतर 2011 के मुकाबले आधे से भी कम रह गया. ममता बनर्जी 2011 का चुनाव 54 हजार वोटों के मार्जिन से जीती थीं, लेकिन 2016 में उनकी जीत का मार्जिन घटकर 25 हजार रह गया. इस तरह से उनके वोट बैंक में काफी गिरावट हुई.  इस सीट पर बीजेपी को भी 26,299 वोट मिले.

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2019 के लोकसभा चुनाव में दक्षिण कोलकाता सीट से TMC की माला रॉय खड़ी हुईं, उन्हें चुनौती दे रहे थे बीजेपी के चंद्र कुमार बोस. इस बार भी भवानीपुर विधानसभा सीट क्षेत्र में टीएमसी मात्र 3168 वोट से ही लीड़ ले सकी. टीएमसी चुनाव भले ही जीत गई लेकिन ममता के गढ़ में बीजेपी की लगातार बढ़ती धमक ममता को 2021 के लिए टेंशन दे गई थी. इस बार जब ममता अपनी राजनीतिक जीवन की अहम लड़ाई लड़ रही हैं तो वह अपनी सीट को लेकर किसी तरह का कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती थीं.

आखिरकार दीदी ने बिना कोई रिस्क लिए भवानीपुर की नॉस्टेलजिया से मुक्त हुईं और नंदीग्राम चली गईं.

नॉन बंगाली हिन्दू वोटर्स का झुकाव बीजेपी की ओर 

पश्चिम बंगाल के विधानसभा सीट नंबर 159 भवानीपुर में 60 प्रतिशत से ज्यादा गैर बंगाली हिन्दू वोटर्स हैं. यहां गुजराती, मारवाड़ी और दूसरे गैर बंगाली मतदाता हैं. इनका बंगाल में अपना बिजनेस है. जग्गू बाबू बाजार और अलीपुर जैसे इलाके में इनका घनत्व है. ये मतदाता बंगाली टच वाली हिन्दी बोलते हैं और मोदी-शाह के नाम पर शक्ति हासिल करते हैं. इनका अपने जन्मस्थान से संपर्क लगातार कायम है. माना जा रहा है कि ममता द्वारा 'बंगाली बनाम बाहरी', 'गुजराती' मुद्दे का जिक्र बार बार करने से ये वोटर्स ममता से नाराज हैं,  टीएमसी की ओर से इस मुद्दे को बार बार उछाला जा रहा है. इससे इनके बीच असुरक्षा घर कर रही है. 

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हालांकि पिछले चुनाव में इन गैर बंगाली वोटर्स ने ममता को वोट किया है. लेकिन इस बार 'जय श्रीराम', बीजेपी द्वारा लगाए गए मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप जैसे मुद्दों ने माहौल गर्म कर दिया है. देखना होगा कि गैर बंगाली हिन्दू वोटर्स की ये बैचेनी वोटों में कितना रिफ्लैक्ट होती है.

हालांकि टीएमसी कार्यकर्ता नील मालाकार कहते हैं कि दीदी ने मतदाता का नब्ज समझकर ही फैसला लिया है और यहां से शोभनदेब चटर्जी को टिकट दिया है. शोभनदेब चटर्जी भवानीपुर के बगल की सीट रासबिहारी से चुनाव जीतते आए हैं. लेकिन बंगाल स्थित एक केंद्रीय विद्यालय की प्राध्यापिका इस बात को मानती हैं कि मुस्लिम तुष्टिकरण गैर बंगाली हिन्दू वोटर्स के बीच मुद्दा है और ममता को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है. 

जब ममता के गढ़ में जीत गई थी बीजेपी

भवानीपुर के कालीघाट में 73 नंबर वॉर्ड स्थित हरीश चटर्जी रोड पर ममता बनर्जी का अपना घर है. इस घर में पूर्व पीएम वाजपेयी भी आ चुके हैं. ममता बनर्जी रमेश मित्रा इंस्टिट्यूट पोलिंग बूथ पर अपना वोट डालती रही हैं. 

2015 में कोलकाता नगर निगम के लिए हुए चुनाव के दौरान भवानीपुर में दो वार्ड पर TMC हार गई थी. ये वार्ड थे 70 और 77. 70 नंबर वार्ड पर बीजेपी को जीत मिली थी जबकि 77 नंबर वार्ड पर फॉरवर्ड ब्लॉक जीती थी. 

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गैर बंगाली वोटर्स को लुभाने में जुटी बीजेपी

इधर गैर बंगाली वोटर्स के इस असंतोष को बीजेपी भुनाने में जुटी है. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भवानीपुर में पिछले साल दिसंबर में विशाल रैली की थी. यहां पर बीजेपी ने डोर टू डोर कैम्पेन चला रखा है और मतदाताओं को गोलबंद कर रही है, बीजेपी ने यहां से अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है, लेकिन पार्टी के कई हैवीवेट यहां से चुनाव लड़ने को तैयार हैं. भवानीपुर में मतदान 26 अप्रैल को है. 

45 हजार मुस्लिम वोटों में सेंधमारी का डर

भवानीपुर में 40 से 45 हजार मुस्लिम मतदाता हैं. टीएमसी के राजनीति में आने साथ ही ये मतदाता ममता को वोट करते आए हैं. लेकिन इस बार सीपीएम, कांग्रेस और फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की तिकड़ी ने ममता के लिए इन वोटों पर भी सेंधमारी का डर पैदा कर दिया है. ओवैसी की बंगाल यात्राएं भी मुस्लिम वोटरों पर हिस्सेदारी के लिए है. इन सब संभवानाओं और नए राजनीतिक समीकरणों के बीच बंगाल की सीएम ने नंदीग्राम कूच करने का फैसला किया है.

बंगाली ब्रह्माण शोभनदेब चटर्जी पर दांव

भवानीपुर में ममता की जगह चुनाव लड़ रहे शोभनदेब चटर्जी की सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी है उनकी ईमानदार राजनीतिक छवि. वे ममता की कैबिनेट में ऊर्जा मंत्रालय संभालने वाले शोभनदेब 1998 में पहली बार टीएमसी के विधायक बने. शोभनदेब चटर्जी बंगाल की नारदा-शारदा पॉलिटिक्स से दूर रहे हैं और उन चुनिंदा नेताओं में हैं जिनपर पिछले 10 साल में भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है. ममता बनर्जी ने जब भवानीपुर के राजनीतिक उत्तराधिकारी की तलाश में आस पास नजरें दौड़ाई तो उन्हें बंगाली ब्रह्माण और स्वच्छ छवि वाले शोभनदेब चटर्जी को बिना झिझक चुन लिया. 

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