
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) आज बुधवार को आखिरकार अपना घोषणा पत्र जारी करने जा रही है, पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी के पिछले हफ्ते नंदीग्राम में चुनावी अभियान के दौरान चोटिल हो जाने के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था. घोषणा पत्र में वह 4 प्रमुख जातियों को ओबीसी में शामिल किए जाने का वादा कर सकती हैं.
माना जा रहा है कि टीएमसी अपने चुनावी घोषणा पत्र में सामाजिक क्षेत्रों पर जोर देगी. पार्टी से जुड़े सूत्रों ने आजतक/इंडिया टुडे टीवी को बताया कि ममता बनर्जी अपने घोषणा पत्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के तहत चार प्रमुख जाति समूहों को शामिल करने के लिए एक अहम घोषणा करेंगी.
उनमें से, पूर्व मेदिनीपुर जिले में आबादी का एक बड़ा हिस्सा वाली महिष्य जाति, बेहद महत्वपूर्ण होगी. ममता खुद इसी जिले से नंदीग्राम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं, जहां इस समुदाय की स्थिति बेहद मजबूत है.
अपने घोषणापत्र में, टीएमसी कुछ अन्य जाति समूहों के साथ महिष्य को ओबीसी का दर्जा देने का वादा करने जा रही है, जो ओबीसी के रूप में शामिल करने के लिए मंडल आयोग द्वारा अनुशंसित सूची का हिस्सा थे. कुछ अन्य जातियों में तमुल, साहा और तिली शामिल हैं.
ओबीसी वर्ग पर खासी नजर
ममता की ओबीसी वर्ग पर खासी नजर है क्योंकि हिंदू ओबीसी के एक बड़े वर्ग ने खासतौर से जंगमहल क्षेत्र में बीजेपी के पक्ष में वोट दिया था जो 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम के रूप में सामने आया.
सत्ता में आने के तुरंत बाद, ममता ने अपने पहले कार्यकाल में सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 17 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाला एक प्रमुख कानून पारित कराया था.
पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (एससी और एसटी के अलावा) (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) विधेयक, 2012 में ओबीसी आरक्षण के लिए दो अलग-अलग श्रेणियों ज्यादा पिछड़ा (श्रेणी ए) और पिछड़ा (श्रेणी बी) में वर्ग बनाया था.
अब तक 37 लाख से ज्यादा प्रमाण पत्र
पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2011 से ममता बनर्जी सरकार की ओर से 37 लाख से अधिक ओबीसी प्रमाण पत्र दिए गए हैं. हाल ही में शुरू किए दुआरे सरकार अभियान के तहत इस प्रक्रिया को और तेज कर दिया है.
विशेषज्ञों का कहना है, महिष्य (जिसे काईबारतस भी कहा जाता है) पुर्व मेदिनीपुर में एक प्रभावशाली जाति समूह में से एक हैं तथा हावड़ा, हुगली, दक्षिण और उत्तर 24 परगना जैसे जिलों में अपनी उपस्थिति दर्ज रखते हैं जबकि दक्षिण बंगाल में कम से कम 50 सीटों पर एक महत्वपूर्ण कारक हो सकते हैं.
बंगाल में समुदायों पर कई सालों से अध्ययन करने वाले डॉक्टर अनिर्बान बंदोपाध्याय बताते हैं कि अविभाजित मेदिनीपुर में महिष्य राष्ट्रवादी आंदोलन की रीढ़ हुआ करते थे. वर्ग आधार पर देखें तो ये काफी विजातीय रहे हैं. मध्यम वर्ग शिक्षित रहा है तो इनका एक बड़ा वर्ग ऐसा भी रहा जो छोटे स्तर के किसानों और भूमिहीन कृषि श्रमिकों के रूप में शामिल थे.
इस समुदाय से बीरेंद्र नाथ ससमल, सतीश सामंत, सुशील धारा जैसे चर्चित स्वतंत्रता सेनानी शामिल हैं तो रानी रश्मोनी भी हैं, जिन्होंने प्रसिद्ध दक्षिणेश्वर मंदिर की स्थापना की थी. विशेषज्ञों का कहना है कि 1921 की जनगणना के दौरान 25 लाख के अंतिम उपलब्ध आंकड़े के बाद से अब तक महिष्य आबादी कई गुना बढ़ गई है.