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बंगालः ममता बनर्जी लेंगी उम्मीदवारों पर आखिरी फैसला, चुनाव समिति की बैठक में हुआ तय

जानकारी के मुताबिक, 80 साल से ज्यादा उम्र का कोई भी उम्मीदवार चुनाव मैदान में नहीं उतरेगा. इस बार के चुनाव में कई महिला चेहरे को उतारने की तैयारी है. टीएमसी के टिकट पर इस बार कई नए उम्मीदवार उतारे जाने की भी तैयारी है. 

ममता तय करेंगी उम्मीदवारों के नाम (फाइल फोटो) ममता तय करेंगी उम्मीदवारों के नाम (फाइल फोटो)
पॉलोमी साहा
  • कोलकाता,
  • 01 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 4:20 PM IST
  • ममता के आवास पर हुई बैठक
  • ममता तय करेंगी उम्मीदवारों के नाम
  • चुनाव समिति की बैठक में हुआ तय

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के पहले चरण को ध्यान में रखते हुए टीएमसी ने सोमवार को चुनाव समिति की एक अहम बैठक बुलाई. मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने यह बैठक कालीघाट स्थित अपने निवास पर रखी थी. बैठक में पार्टी ने तय किया है कि उम्मीदवारों के नाम को लेकर आखिरी सहमति ममता बनर्जी की ही होगी.

जानकारी के मुताबिक, 80 साल से ज्यादा उम्र का कोई भी उम्मीदवार चुनाव मैदान में नहीं उतरेगा. इस बार के चुनाव में कई महिला चेहरे को उतारने की तैयारी है. टीएमसी के टिकट पर इस बार कई नए उम्मीदवार उतारे जाने की भी तैयारी है. 

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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की शुरुआत 27 मार्च से हो रही है जहां पहले चरण में जंगलमहल की 30 सीटों पर मतदान होगा. पश्चिम बंगाल के 4 जिले पुरुलिया, बांकुरा, पश्चिम मिदनापुर और झाड़ग्राम की गिनती जंगलमहल में होती है. नक्सल प्रभावित इन जिलों में एससी और एसटी वोटर्स की संख्या ज्यादा है. इन इलाकों में सबसे ज्यादा दबदबा कुर्मी समाज का है. 

टीएमसी के जंगलमहल वापस जीतना चुनौती से कम नहीं है. दिलचस्प बात यह है कि पुरुलिया में जिस उम्मीदवार का टाइटल महतो होगा वही चुनाव जीत सकता है. ऐसे में पुरुलिया में सभी पार्टियों के उम्मीदवार का सरनेम महातो होता है. अगर आंकड़ों के हिसाब से देखें तो जंगलमहल में आदिवासी और कुर्मी समाज का वोट प्रतिशत 50 से भी ऊपर है.

जंगलमहल के 4 जिलों को मिलाकर विधानसभा की लगभग 40 सीटें हैं. पिछले बार के विधानसभा चुनाव में यहां टीएमसी का दबदबा था. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इन चारों जिलों में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए सभी सीटों पर जीत हासिल की थी. ऐसे में इस बार जंगलमहल ममता के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है और ममता खोई जमीन पाने की पुरजोर कोशिश में जुटी हुई हैं. 

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जंगलमहल एक वक्त माओवादियों का केंद्र बिंदु था. उस वक्त पश्चिम बंगाल में लेफ्ट का राज था. उस दौरान ममता पर माओवादियों का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन लेने का आरोप भी लगा था. 2011 में सत्ता में आने के बाद सबसे बड़े नक्सली नेता किशन जी की मुठभेड़ में मौत पर भी आरोप लगे कि ममता सरकार ने एनकाउंटर कर किशन जी का खात्मा किया. लेकिन अब वही ममता बीजेपी को माओवादियों से ज्यादा खतरनाक बता रही हैं.

 

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