
बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने अपनी तैयारी तेज कर दी है. कांग्रेस और वामदल ने मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है, लेकिन अभी सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय नहीं हो सका है. ऐसे में कांग्रेस ने वामदलों के साथ चुनावी गठजोड़ के लिए एक समिति का गठन किया है. यह समिति बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे और साझा कार्यक्रमों के बारे में वाममोर्चा के साथ बातचीत कर सीट शेयरिंग तय कर सकेगी.
बंगाल विधानसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस की ओर से बनाई गई समिति का अध्यक्ष कांग्रेस ने बंगाल कांग्रेस के प्रमुख अधीर रंजन चौधरी की बनाया है. चार सदस्यीय समिति में अधीर रंजन चौधरी के अलावा अब्दुल मन्नान, प्रदीप भट्टाचार्य और नेपाल महतो को जगह दी गई है. बंगाल के कांग्रेस प्रभारी जितिन प्रसाद ने कहा है कि यह समिति पश्चिम बंगाल चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे और संयुक्त कार्यक्रमों के बारे में वाम दलों के साथ बातचीत करेगी.
बता दें कि कांग्रेस ने 2016 के बंगाल विधानसभा चुनाव में भी वाममोर्चा के साथ गठबंधन किया था. इस चुनाव में माकपा ने 148 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 26 सीटों पर उसे जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस ने 92 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें उसे 44 सीटों पर जीत मिली थी. इसके अलावा वामदलों के सहयोगी के तौर पर ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक ने 25 सीटों पर चुनाव लड़ कर दो सीटें जीती थीं. सीपीआई ने 11 सीटों पर चुनाव लड़कर 1 सीटें जीती थीं. इसके अलावा रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी ने 19 सीटों पर चुनाव लड़कर 3 सीटें जीती थीं.
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इस तरह से देखें तो 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस वाम मोर्चे के गठबंधन में सबसे अधिक फायदा कांग्रेस को ही हुआ था. कांग्रेस पार्टी ने मात्र 92 सीटों पर चुनाव लड़कर 44 सीटें जीती थीं जबकि वामपंथी दल 202 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 32 सीटें ही जीत पाए थे. 44 सीटें जीतने के कारण कांग्रेस को विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी मिला था. इसके बाद कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन टूट गया था और 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी थी.
दिलचस्प बात यह है कि बंगाल की सत्ता पर तीन दशक तक कांग्रेस और करीब साढ़े तीन दशक तक वामपंथी दलों का सियासी वर्चस्व कायम रहा, लेकिन प्रदेश के बदले सियासी हालात में दोनों ही पार्टियों के सामने अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की चुनौती है. यही वजह है कि अब दोनों पार्टियां मिलकर एक साथ चुनावी मैदान में उतरने जा रही हैं, लेकिन सीट बंटवारे का पेच अभी भी फंसा हुआ है.
बंगाल में बीजेपी के जबरदस्त राजनीतिक उभार के चलते कांग्रेस और लेफ्ट दोनों के सामने अपने-अपने सियासी आधार को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. इसी सियासी मजबूरी या सियासी हालात को देखते हुए एक बार फिर दोनों को साथ आना पड़ा है. बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट के साथ आने का सीधा मतलब खुद के वजूद को बचाने की है, क्योंकि राज्य में सियासी लड़ाई बीजेपी और टीएमसी के बीच नजर आ रही है.
2016 के विधानसभा चुनाव के बाद से बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट दोनों ही पार्टियों का ग्राफ डाउन हुआ है जबकि बीजेपी का राजनीतिक ताकत बढ़ी है. पंचायत चुनाव हो या फिर 2019 का लोकसभा चुनाव बीजेपी राज्य में दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी है. लोकसभा में बीजेपी 18 सीटें और 40 फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रही है. वहीं, कांग्रेस महज 2 सीटें और 5.67 फीसदी वोट पा सकी है जबकि लेफ्ट को 6.34 फीसदी वोट मिले, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सकी थी. यही वजह है कि कांग्रेस और वाम मोर्चा एक साथ आए हैं.