
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव का भले ही औपचारिक ऐलान न हुआ हो, लेकिन इसकी सियासी सरगर्मियां उफान पर हैं. बीजेपी के सामने ममता बनर्जी का मजबूत दुर्ग भेदने की चुनौती है. आरोप-प्रत्यारोप से लेकर कार्यकर्ताओं की हिंसक झड़प, केंद्र-राज्य में टकराव चरम पर है. इसी घमासान के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने भी कोलकाता का दौरा किया है. संघ प्रमुख का 15 महीने में ये पांचवां बंगाल दौरा था, जिसके राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं.
मोहन भागवत ने कोलकाता में प्रसिद्ध सरोद वादक पंडित तेजेंद्र नारायण मजूमदार के घर पर कवियों और लेखकों सहित सांस्कृतिक जगत से जुड़े हुए लोगों से मुलाकात की. इसके अलावा वे उन युवा प्रतिभाओं से मिले, जो स्पेस रिसर्च, नासा, माइक्रोबायोलॉजी, मेडिकल साइंस के क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल कर मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान में अहम योगदान दे रहे हैं.
15 महीने में संघ प्रमुख के पांच दौरे
बंगाल विधानसभा चुनाव में जीत बीजेपी और संघ के लिए राजनीतिक रूप से जितनी महत्वपूर्ण है, वैचारिक रूप से भी उतनी ही जरूरी है. संघ प्रमुख मोहन भागवत पिछले 15 महीने में बंगाल के पांच दौरे कर चुके हैं. पिछले साल अगस्त-सितंबर में उन्होंने तीन दौरे किए. इस साल सितंबर को वे चार दिन के लिए बंगाल आए थे और अभी हाल में 12 दिसंबर को दो दिवसीय दौरा किया है. विधानसभा चुनाव से पहले भागवत के बंगाल दौरे आरएसएस के स्वयंसवेकों और भाजपा कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने वाला है.
संघ की मौजूदगी 1939 से ही बंगाल में रही है. हालांकि वामपंथ के 34 साल के कार्यकाल में संघ का प्रभाव राज्य में व्यापक नहीं हो पाया. 2011 में वामपंथी सरकार जाने के बाद और 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से संघ लगातार बंगाल में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. इसका नतीजा 2019 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला. यही वजह है कि बीजेपी के बाद अब संघ भी बंगाल चुनाव में पूरी तरह से एक्टिव हो गया है.
बीजेपी के लिए संघ कितना अहम
संघ से बीजेपी में आए नेताओं को बंगाल चुनाव की रणनीति बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. देश के अलग-अलग पांच राज्यों के संगठन महामंत्रियों को बंगाल के पांच अलग-अलग इलाकों की जिम्मेदारी दी गई है. संघ से बीजेपी में आए सुनील देवधर जैसे नेताओं को मुस्लिम बहुल और आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय किया गया है.
मिशन बंगाल में बीजेपी को आरएसएस का भी कदम-कदम पर साथ मिलेगा. बंगाल में फिलहाल आरएसएस के 2300 मंडल हैं. 2021 के विधानसभा चुनाव के पहले प्रत्येक मंडल में दो शाखाएं, साप्ताहिक बैठक 'मिलन' और मासिक बैठक 'मंडली' करने का लक्ष्य संघ प्रमुख ने पिछले दौरे में दिया था.
पिछले साल अगस्त के आखिर में संघ प्रमुख ने बंगाल की सभी 3,342 ग्राम पंचायतों में शाखा खोलने का निर्णय लिया था. राज्य में 341 डेवलपमेंट ब्लॉक और 127 शहरी निकाय क्षेत्र हैं. शाखा के लिहाज से आरएसएस शहरी क्षेत्रों में मौजूदगी रखता है और अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी आधी से अधिक पंचायतों में इसकी मौजूदगी हो गई है.
शाखा के अलावा आरएसएस से जुड़े वनवासी कल्याण आश्रम, वनबंधु परिषद, श्री हरि सत्संग समिति, विवेकानंद विद्याविकास परिषद, समाज सेवा भारती और आरोग्य भारती जैसे संगठन भी पश्चिम बंगाल में सक्रिय हैं. इन संगठनों से जुड़े लोग बीजेपी के लिए मददगार साबित हो सकते हैं.
बंगाल में बीजेपी का बढ़ता ग्राफ
गौरतलब है कि 1952 के चुनाव में भारतीय जनसंघ और हिंदू महासभा को देश में सात सीटें मिली थीं, जिनमें से तीन पश्चिम बंगाल से थीं. बंगाल की तीन सीटों में से दो पर दिग्गज नेताओं को जीत मिली थी. इनमें से एक थे जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दूसरे जाने-माने नेता और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के पिता निर्मल चंद्र चटर्जी.
इसके बाद हिंदुत्व बंगाल में उभर नहीं पाया, लेकिन अब बंगाल में एक नया हिंदुत्व समर्थक वर्ग बना, जिसका राजनीतिक लाभ 2014 लोकसभा चुनाव से पहले कोई दल नहीं उठा पाया था. मोदी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी बने और पार्टी ने राज्य में दो लोकसभा सीटें जीतीं. इससे भी बड़ी बात यह थी कि बीजेपी का वोट शेयर बढ़कर 17 फीसदी से अधिक हो गया.
बीजेपी 2016 के विधानसभा चुनावों में इस परफॉरमेंस को नहीं दोहरा पाई और सिर्फ तीन विधानसभा सीटें ही उसके हाथ लगीं. बीजेपी का वोट शेयर भी लोकसभा चुनाव के 17 फीसदी से घटकर 10 फीसदी पर आ गया, लेकिन इसके बाद पार्टी ने काफी मेहनत की और 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने हैरान करने वाली परफॉरमेंस दी. बीजेपी 18 सीटें जीतने में कामयाब रही और उसका वोट शेयर बढ़कर 40.64 फीसदी जा पहुंचा. यही वजह है कि बीजेपी की कोशिश बंगाल की सत्ता पर काबिज होने की है, जिसमें संघ काफी अहम भूमिका अदा कर सकता है. इसीलिए संघ प्रमुख का चुनाव से पहले बंगाल दौरा काफी अहम और महत्वपूर्ण माना जा रहा है.