
पश्चिम बंगाल में अभी तक के जिन इलाकों में वोटिंग हुई है, वो दक्षिण बंगाल के इलाके का एक हिस्सा हैं. ये क्षेत्र ममता बनर्जी का मजबूत गढ़ माना है, जिसे टीएमसी के लिए बचाए रखना बेहद अहम है. वहीं, अब अगले दो चरणों में उत्तर बंगाल और कोलकाता से लगे हुए इलाके की विधानसभा सीटों पर चुनाव होने हैं. ममता बनर्जी अपनी लहर में भी नार्थ बंगाल में बहुत बड़ा करिश्मा नहीं दिखा सकी हैं. इस इलाके में राजवंशी, आदिवासी और मुस्लिम वोट काफी महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें साधे बगैर चुनावी नैया पार नहीं हो सकती है.
बता दें कि पश्चिम बंगाल में चौथे चरण में 5 जिलों की 44 सीटों पर 10 अप्रैल यानी की शनिवार को वोटिंग होनी है. इनमें हावड़ा की 9 सीटों, साउथ 24 परगना की 11 सीटों, हुगली की 10 सीटों, अलीपुरद्वार की सभी 5 सीटों और कूच बिहार की सभी 9 सीटें शामिल हैं. पांचवें चरण में 6 जिलों की 45 सीटों पर 17 अप्रैल को वोट पड़ने है. इस फेज में उत्तरी 24 परगना की 16 सीट, दार्जिलिंग की सभी 5 सीटों पर, नादिया की 8 सीटों पर, पूर्वी बर्धमान की 8 सीटों पर, जलपाईगुड़ी की सभी 7 सीटों पर और कैलिमपोंग की 1 सीट पर वोटिंग होगी. इस चरण में ममता बनर्जी को बीजेपी से ही नहीं बल्कि कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन से भी दो-दो हाथ करने होंगे.
चाय बागान के मजदूर और चुनाव
बंगाल में जलपाईगुड़ी इलाके में तीन सौ से ज्यादा छोटे-बड़े बागानों में करीब आठ लाख मजदूर काम करते हैं. इनमें से कई बागान बरसों से बंद हैं, जो बागान खुले हैं उनकी भी हालत बहुत अच्छी नहीं है. बंगाल में हो रहे चुनावों के मौके पर एक बार फिर यह चाय मजदूर सुर्खियों में हैं. चाय बागानों वाले इस इलाके में आदिवासी चाय मजदूर दर्जन भर से ज्यादा सीटों पर किसी का भी खेल बना या बिगाड़ सकते हैं. ऐसे में सत्ता पर नजर गड़ाए टीएमसी और बीजेपी इनको अपने पाले में खींचने का हरसंभव प्रयास कर रही हैं. बीजेपी चाय बागानों के मजदूरों का मुद्दा बना रही है. इस तरह से बंगाल का उत्तरी इलाका टीएमसी कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही के लिए साख और नाक का सवाल बन गया है.
राजवंशी वोटर काफी अहम फैक्टर
चौथे और पांचवे चरण के इलाके की सीटों पर राजवंशी, आदिवासी और गोरखा वोटरों की खासी तादाद है. इसलिए तमाम राजनीतिक दल इनको लुभाने की कवायद में जुटी हैं. कूच बिहार इलाके की 9 विधानसभा सीटें हैं, जहां राजवंशी अहम भूमिका में है. कूच बिहार के अलावा अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग, रायगंज, बालुरघाट, उत्तरी मालदा और दक्षिण मालदा में राजवंशी समुदाय के वोट किसी की भी हार-जीत तय करने की ताकत रखते हैं. इसीलिए राजवंशी समुदाय को बीजेपी और टीएमसी दोनों ही अपने-अपने पाले में करने में जुटी हैं.
कूच बिहार राज्य की मांग
बंगाल सरकार ने राजवंशी को अनुसूचित जाति का दर्जा दे रखा है. राजवंशी वंशज का कोच साम्राज्य रहा है. इनके पूर्वजों ने चार सौ से अधिक बरसों तक राज किया था. यही वजह है कि राजवंशी समुदाय के लोग कूच बिहार अलग राज्य की मांग लंबे समय के करते रहे हैं. अलग राज्य के लिए आंदोलन करने वाले ग्रेटर कूचबिहार पीपुल्स एसोसिएशन (जीसीपीए) के महासचिव बंशी बदन बर्मन ने कहते हैं कि राजवंशी समुदाय के लिए ममता ने जितना किया है उतना पहले कभी किसी मुख्यमंत्री ने नहीं किया है.
वहीं, कामतापुर पीपुल्स पार्टी (केपीपी) के अध्यक्ष अतुल राय भी विकास परियोजनाओं के लिए सरकार की सराहना करते हैं, लेकिन केपीपी (यूनाइटेड) के नेता निखिल राय विकास परियोजनाओं को ममता बनर्जी का चुनावी हथकंडा मानते हैं. उनका कहना है कि कामतापुरी भाषा को मान्यता देने और अलग कूचबिहार राज्य के गठन के मामले में टीएमसी और बीजेपी दोनों ने चुप्पी साध रखी है. इन्हें राजवंशी समुदाय का वोट तो चाहिए, लेकिन राजवंशी समुदाय की समस्याओं से कोई वास्ता नहीं है.
राजवंशी लोकसभा में बीजेपी के साथ था
हालांकि, 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कूचबिहार पीपुल्स एसोसिएशन ने बीजेपी का समर्थन किया था. नतीजा यह हुआ कि उत्तर बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी को एक भी सीट नहीं मिली जबकि बीजेपी ने सात संसदीय सीटों पर जीत हासिल की थी और एक लोकसभा सीट कांग्रेस के खाते में गई थी. इस पूरे इलाके में 54 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से बीजेपी को 34 सीटों पर बढ़त मिली थी और टीएमसी को 12 सीटों पर आगे थी. यही वजह है यह इलाका ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के लिए काफी अहम माना जा रहा है जबकि बीजेपी लोकसभा जैसे नतीजे दोहराने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव नतीजों को ध्यान में रखें तो यह इलाका तृणमूल कांग्रेस के लिए कभी मुफीद नहीं रहा है. साल 2016 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी को महज 26 सीटें मिली थीं जबकि साल 2011 के चुनाव में ममता की भारी लहर में भी उसे महज 16 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. इसीलिए बीते लोकसभा चुनावों के बाद ही ममता बनर्जी इस इलाके में पार्टी की जड़ें मजबूत करने के लिए लगातार दौरे करती रही हैं.
दूसरी ओर, भाजपा भी इलाके में अपनी पकड़ और मजबूत रखने के कवायद में है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल में कूचबिहार दौरे के दौरान पूर्व राजा के वंशज अनंत राय से मुलाकात की थी और पीएम मोदी ने कूच बिहार में रैली करके ममता पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगए थे. वहीं, बीजेपी ने कूच बिहार के इलाके में पूरी ताकत झोंक रही है. ऐसे ही 24 परगना के इलाके में भी मतुआ समुदाय को साधने के लिए टीएमसी और बीजेपी ने हरसंभव कोशिश है. ऐसे में देखना है कि अगले दो चरणों में क्या सियासी नतीजे रहते हैं?