
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तीन चरण की 91 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है और अब बाकी बची 203 सीटों पर अगले पांच चरणों में चुनाव होने हैं. सूबे में अभी तक के जिन इलाकों में वोटिंग हुई है, वो दक्षिण बंगाल के इलाके का एक हिस्सा हैं. यह ममता बनर्जी का मजबूत गढ़ माना है, जिसे टीएमसे के लिए बचाए रखना बेहद अहम है, क्योंकि आगे के चरण में उन्हें बीजेपी से ही नहीं बल्कि कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन से भी दो-दो हाथ करने होंगे. इसीलिए आगे होने वाले चुनाव ममता के लिए सबसे अहम चुनौती माने जा रहे हैं.
बंगाल में बाकी पांच चरण के चुनाव
पश्चिम बंगाल के चौथे चरण में 5 जिलों की 44 सीटों पर 10 अप्रैल को वोटिंग होनी है. इनमें हावड़ा की 9 सीटों, साउथ 24 परगना की 11 सीटों, हुगली की 10 सीटों, अलीपुरद्वार की सभी 5 सीटों और कूच बिहार की सभी 9 सीटों पर वोटिंग होगी. पांचवें चरण में 6 जिलों की 45 सीटों पर 17 अप्रैल को वोट पड़ने हैं. इस फेज में उत्तरी 24 परगना की 16 सीट, दार्जिलिंग की सभी 5 सीटों पर, नादिया की 8 सीटों पर, पूर्वी बर्धमान की 8 सीटों पर, जलपाईगुड़ी की सभी 7 सीटों पर और कैलिमपोंग की 1 सीट पर वोटिंग होगी.
वहीं, छठे चरण में 4 जिलों की 43 विधानसभा सीटों पर 22 अप्रैल को वोटिंग होगी. इसमें नॉर्थ 24 परगना की 17 सीटों, पूर्वी बर्धमान की 8 सीटों पर, नादिया की 9 सीटों और उत्तर दिनाजपुर की सभी 9 सीटों पर चुनाव होने हैं. सातवें चरण में 5 जिलों की 36 विधानसभा सीटों पर 26 अप्रैल वोट पड़ने हैं. इसमें फेज में मालदा की 6 सीटों पर, मुर्शिदाबाद की 11 सीटों पर, पश्चिम बर्धमान की सभी 9 सीटों पर, दक्षिण दिनाजपुर की सभी 6 सीटों पर और कोलकाता साउथ की सभी 4 सीटों पर वोट पड़ेंगे. बंगाल के आठवें यानी आखिरी चरण में 4 जिलों की 35 सीटों पर 29 अप्रैल को मतदान होना है. इसमें मालदा की 6 सीटों पर, बीरभूम की सभी 11 सीटों पर, मुर्शिदाबाद की 11 सीटों पर और कोलकाता नॉर्थ की सभी 7 सीटों पर वोटिंग होगी.
बंगाल के तीन फेज के चुनाव ममता के गढ़ में हुए
बता दें कि पश्चिम बंगाल में 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में कुल 294 सीटों में टीएमसी को 211 सीटें मिली थीं जबकि वामपंथी दलों को 33, कांग्रेस को 44 और बीजेपी को 3 सीटों पर जीत मिली थी. इसके अलावा तीन सीटें गोरखा मुक्ति मोर्चा को मिली थीं. इस तरह से बंगाल में 294 विधानसभा सीटों में से जिन 91 सीटों पर अभी तक चुनाव हुए है, उनमें से 77 सीटों पर टीएमसी का कब्जा था जबकि 10 सीटें लेफ्ट, तीन कांग्रेस और एक सीट पर बीजेपी का कब्जा था.
ममता की असल चुनौती अब होगी
वहीं, अब पांच चरणों के चुनाव वाली 203 सीटों के समीकरण को देखते हैं तो इसमें से 134 सीटें टीएमसी के पास हैं. इसके अलावा 23 सीटें लेफ्ट और 41 सीटें कांग्रेस, दो-दो सीटें बीजेपी और गोरखा मुक्ति मोर्चा की हैं. इस तरह से आगामी पांच चरण के चुनाव में ममता बनर्जी को बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन के साथ भी दो-दो हाथ करने होंगे. मालदा और मुर्शिदाबाद इलाके में कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में रही है जबकि बर्धमान और 24 परगना, नादिया में लेफ्ट का सियासी आधार भी काफी मजबूत है.
कांग्रेस के लिए वजूद बचाने की चिंता
बंगाल में जिस तरह से बीजेपी एक बड़ी चुनौती बनकर टीएमसी के सामने खड़ी हुई है, उससे ममता बनर्जी की बेचैनी बढ़ गई है. यही वजह है कि ममता बनर्जी ने हाल ही में सोनिया गांधी सहित तमाम विपक्षी नेताओं को पत्र लिखकर बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की अपील थी. मौके की नजाकत को देखते हुए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा था कि मालदा और मुर्शिदाबाद की 22 सीटों से कांग्रेस कैंडिडेट के खिलाफ टीएमसी अपने प्रत्याशी हटा लेती है तो हम उन्हें बाकी सीटों पर समर्थन देने के लिए तैयार हैं.
नॉर्थ बंगाल में टीएमसी और बीजेपी के बीच संग्राम
दक्षिण बंगाल के कुछ इलाकों सहित उत्तर बंगाल के इलाके में आगामी चरणों में चुनाव होने हैं. नॉर्थ बंगाल इलाके में 54 विधानसभा सीटें आती हैं, जो ममता बनर्जी का कभी मजबूत गढ़ नहीं रहा है. ममता की लहर में भी टीएमसी यहां आधी सीटें भी नहीं जीत सकी थी. बंगाल का उत्तरी इलाका टीएमसी और बीजेपी दोनों के लिए साख और नाक का सवाल बनता जा रहा है. इस इलाके में 54 विधानसभा सीटें ही हैं, जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में 34 सीटों पर बीजेपी को बढ़त मिली थी और टीएमसी को 12 सीटों पर बढ़त मिली थी.
वहीं, वर्ष 2016 के चुनावों में उत्तर बंगाल की सीटों के नतीजे को देखते तो टीएमसी को महज 26 सीटें मिली थीं जबकि साल 2011 में ममता की भारी लहर में भी उसे महज 16 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. दो सीटें बीजेपी और बाकी सीटें लेफ्ट-कांग्रेस के खाते में गई थी. इस इलाके में राजवंशी, आदिवासी और गोरखा वोटरों की खासी तादाद है. इसलिए तमाम राजनीतिक दलों ने इनको लुभाने की कवायद शुरू कर दी है. ऐसे में बंगाल में बचे हुए चरणों में अब सियासी लड़ाई काफी दिलचस्प होती नजर आ रही है.