
पश्चिम बंगाल की नंदीग्राम विधानसभा सीट पहले भी हाइप्रोफाइल मानी जाती रही है, लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मैदान में उतरने से यह राज्य की सबसे हॉट बन गई है. ममता को नंदीग्राम में घेरने के लिए बीजेपी ने टीएमसी से आए शुभेंदु अधिकारी पर दांव लगाया है. वहीं, लेफ्ट गठबंधन ने सीपीएम की मीनाक्षी मुखर्जी को उम्मीदवार बनाया है, हालांकि ममता के खिलाफ इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) के प्रमुख अब्बास सिद्दीकी चुनावी ताल ठोंकने की तैयारी कर रहे थे. लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन ने यह सीट अब्बास सिद्दीकी को न देकर कहीं न कहीं बीजेपी के समीकरण को बिगाड़ दिया है और ममता के लिए इसे वॉकओवर माना जा रहा है?
नंदीग्राम विधानसभा सीट पर 30 फीसदी के आसपास मुस्लिम आबादी है. ऐसे में मुस्लिम मतदाता इस सीट पर काफी निर्णायक भूमिका अदा करते रहे हैं. मुस्लिम वोटों के समीकरण को देखते हुए इंडियन सेक्युलर फ्रंट के प्रमुख अब्बास सिद्दीकी नंदीग्राम से ममता के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरने का दावा कर रहे थे, जिससे टीएमसी की चिंता बढ़ गई थी और बीजेपी की बांछें खिली हुई थी. लेकिन, सीपीआई ने यह सीट आईएसएफ को देने के बजाय इस खुद चुनाव लड़ने का फैसला किया. वाम-कांग्रेस-आईएसएफ गठबंधन ने नंदीग्राम में मुस्लिम कैंडिडेट के बजाय मीनाक्षी मुखर्जी बनाया है, जिसका सीधा राजनीतिक फायदा ममता बनर्जी को मिल सकता है.
दरअसल, नंदीग्राम सीट पर मुस्लिम वोटर निर्णायक साबित होते आए हैं. नंदीग्राम सीट पर पिछले तीन चुनावों के नतीजे को देखें तो 2006 में पहले और दूसरे नंबर पर रहने वाले दोनों ही प्रत्याशी मुसलमान थे. 2011 में भी यहां मुस्लिम उम्मीदवार को ही जीत मिली थी. और सबसे बड़ी बात यह है कि जीत-हार का अंतर 26 फीसदी था. वहीं, 2016 के विधानसभा चुनाव में शुभेंदु अधिकारी ने इस सीट पर सीपीआई के अब्दुल कबीर शेख को 81 हजार 230 वोटों से मात दी थी. उस वक्त शुभेंदु को यहां कुल 1 लाख 34 हजार 623 वोट मिले थे.
मुस्लिम वोटों के समीकरण को देखते हुए माना जा रहा था कि लेफ्ट-कांग्रेस-आईएसएफ गठबंधन किसी मुस्लिम प्रत्याशी पर दांव लगा सकती हैं, क्योंकि पिछले तीन चुनाव में सीपीआई मुस्लिम कैंडिडेट पर दांव लगाती रही है. वहीं, अब्बास सिद्दीकी भी टिकट मांग रहे थे, लेकिन लेफ्ट ने मीनाक्षी मुखर्जी पर भरोसा जताया है. यहां टीएमसी और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर में मुस्लिम मतदाता का झुकाव ममता बनर्जी के पक्ष में हो सकता है.
ममता बनर्जी ने बुधवार को नामांकन से पहले नंदीग्राम में काली मंदिर जाकर पूजा अर्चना की, तो मजार पर जाकर चादर भी चढ़ाई. इस तरह ममता हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय को सियासी संदेश देने की कवायद करती नजर आई हैं. साथ ही कहा कि इंसानों में 70-30 (हिंदू-मुस्लिम) कुछ नहीं होता है. विभाजनकारी राजनीति नंदीग्राम में काम नहीं करेगी.
सीएम ममता ने कहा, 'नंदीग्राम का नाम पूरी दुनिया को पता है. नंदीग्राम ही सद्भावना का दूसरा नाम है. मैं सभी का नाम भूल सकती हूं, लेकिन नंदीग्राम का नाम नहीं. सिंगुर, नंदीग्राम नहीं होता तो आंदोलन का तूफान नहीं आता. मैं भी हिन्दू घर की लड़की हूं. मेरे साथ हिन्दू कार्ड मत खेलो.' उन्होंने कहा कि बंगाल की बेटी कैसे बाहरी हो गई? मैं यहां हर तीन महीने में आऊंगी. 1 अप्रैल को यहां वोटिंग होगी. उनका (बीजेपी) अप्रैल फूल कर दीजिएगा. एक अप्रैल को खेल होबे. मैं मंदिर, मस्जिद , गुरुद्वारा... सभी का समर्थन चाहतीं हूं.
बता दें कि नंदीग्राम सीट पर 1996 में कांग्रेस के देवीशंकर पांडा के बाद 2016 में टीएमसी से शुभेंदु अधिकारी जीतने वाले हिंदू नेता थे. इस बीच यहां से जीतकर विधायक बनने वाले सभी मुस्लिम थे. 2006 के विधानसभा चुनाव में भाकपा के इलियास मोहम्मद विजयी हुए. उन्हें 69,376 वोट मिले थे. इलियास ने टीएमसी के एसके सुफियान को हराया था. 2011 में नंदीग्राम सीट से फिरोजा बीबी को टीएमसी के टिकट पर जीत मिली थी. 2009 के उपचुनाव में इस सीट पर टीएमसी की फिरोजा बीबी विजयी हुईं.
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप शुक्ला कहते हैं कि नंदीग्राम मुस्लिम बहुल क्षेत्र है और यहां उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला अल्पसंख्यक मतदाता ही करते हैं. ऐसे में बीजेपी को यह लग रहा था कि लेफ्ट गठबंधन किसी मुस्लिम को अपना प्रत्याशी बनाएगी, जिसके बाद शुभेंदु अधिकारी को अपनी जीत की संभावना नजर आने लगी थी. लेकिन लेफ्ट ने जिस तरह से मीनाक्षी मुखर्जी को प्रत्याशी बनाया है, उसने ममता की राह को आसान कर दिया और उससे बीजेपी का गणित पूरी तरह से गड़बड़ा गया है. वैसे भी ममता के लिए लेफ्ट शासन के खिलाफ नंदीग्राम आंदोलन से पहचान मिली है. इसीलिए ममता नंदीग्राम से चुनाव मैदान में उतरकर एक साथ कई राजनीतिक समीकरण साधती नजर आ रही हैं.