बिहार में चुनाव की घोषणा के साथ एनडीए से एलजेपी अलग हो गई. इसके साथ ही एक नारा आया कि मोदी से कोई बैर नहीं, नीतीश की अब खैर नहीं. ये चुनावी नारा आते ही छा गया. लेकिन ये पहला नारा नहीं जो बिहार में चर्चित हुआ. हाल ही में 'बिहार में का बा?" के जवाब में एक और नारा बच्चों में बड़ा लोकप्रिय हुआ है. बिहार में चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो कई ऐसे नारे थे जिन्होंने चुनावी फिजा ही बदल दी थी. ऐसे कुछ नारों के बारे में आप भी जान लीजिए. शायद गुजरा वक्त याद आ जाए...
'ऊपर आसमान, नीचे पासवान'
पिछले दिनों जब एलजेपी प्रमुख और केंद्रीय मंत्री रहे राम विलास पासवान का निधन हुआ तो कार्यकर्ताओं ने एक पुराने नारे से माहौल को गरमा दिया. ये नारा था- 'ऊपर आसमान, नीचे पासवान'. इस नारे की अलग कहानी है. करीब 25 साल पहले पटना के गांधी मैदान में आयोजित गरीब रैली को लालू यादव संबोधित कर रहे थे. उस वक्त पासवान उनके गठबंधन में थे. लालू के भाषण के दौरान ही पासवान का हेलीकॉप्टर आया तो लालू ने माइक पर कहा 'ऊपर आसमान, नीचे पासवान'. ये नारा उसी वक्त छा गया. पासवान समर्थकों ने इसे बाद में 'नीचे जमीन, ऊपर आसमान, रामविलास पासवान, रामविलास पासवान' के रूप में कई चुनावों में इस्तेमाल किया.
जब तक समोसे में आलू रहेगा, तब तक बिहार में लालू रहेगा
ये बात है 1997-98 की जब लालू प्रसाद यादव को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाना पड़ा था. वह जब भागलपुर के बेउर जेल में बंद थे तब किसी ने कहा कि लालू जी, अब राजनीति में आपके दिन तो गिनती के रह गए हैं. इस पर लालू ने अपने अंदाज में कहा कि- 'जब तक समोसे में आलू रहेगा तब तक बिहार में लालू रहेगा'. कार्यकर्ताओं ने इसे नारा ही बना दिया.
एक रुपया में तीन गिलास, लालू, वीपी, रामविलास
1990 में बिहार में जनता दल की सरकार बनी और लालू प्रसाद को सीएम पद मिला था. सत्ता संभालने के अगले ही साल लालू ने बिहार में ताड़ के पेड़ से निकलने वाले तरल पदार्थ 'ताड़ी', जिसे ज्यादातर नशा के लिए इस्तेमाल किया जाता है, पर से टैक्स हटा लिया. विपक्ष ने इसे मुद्दा बना दिया. तर्क ये था कि इससे नशाखोरी बढ़ेगी. तब विपक्ष की ओर से नारा आया कि- 'एक रुपये में तीन गिलास, लालू, वीपी, रामविलास'. हालांकि पासवान समर्थकों ने इस नारे का इस्तेमाल कुछ इस तरह से किया- 'एक रुपया में तीन गिलास, जीतेगा भाई रामविलास'.
कर कर्पूरी कर पूरा, छोड़ गद्दी उठा उस्तरा
दिसंबर 1970 में कर्पूरी ठाकुर ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में पद संभाला. वह नाई जाति के थे. उन दिनों बिहार में पिछड़ी जातियों की स्थिति बेहद दयनीय थी. कर्पूरी ठाकुर के सीएम बनने पर अगड़ी जाति के लोग उनका मजाक उड़ाते थे. उस वक्त नारा आया था कि 'कर कर्पूरी कर पूरा, छोड़ गद्दी उठा उस्तरा'. आलोचनाओं को नजरअंदाज करते हुए कर्पूरी ठाकुर ने अपनी जीवन पिछड़े वर्ग के लोगों के उत्थान में गुजार दिया.
गली-गली में शोर है, केबी सहाय चोर है
बात है 1963 की. बिहार के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री बिनोदानंद झा को संगठन की सेवाओं के लिए दिल्ली बुला लिया गया. उनके स्थान पर केबी सहाय ने बिहार के तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. एक साल बाद ही केबी सहाय पर भ्रष्टाचार के आरोप लग गए. विपक्ष ने उस वक्त नारा दिया 'गली गली में शोर है, केबी सहाय चोर है'. ये नारा बहुत ज्यादा चर्चित हुआ. खुद केबी सहाय उस वक्त हैरान रह गए जब एक दिन उन्होंने देखा कि उनका ही छोटी उम्र का पोता घर में ये नारा लगा रहा था.