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बिहार विधानसभा चुनाव

चिराग पासवान ने जिस गांव को गोद लिया वहां का हाल जान चौंक जाएंगे आप

aajtak.in
  • 19 अक्टूबर 2020,
  • अपडेटेड 10:01 PM IST
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बिहार के जमुई जिले का सांसद आदर्श गांव है बटिया. इसे यहां के सांसद चिराग पासवान ने गोद लिया था. आदर्श गांव के तौर पर यहां चिराग ने बड़े-बड़े वादे किए थे. अब यहां की जनता रोज उस जमीन की ओर ताकती है जहां अस्‍पताल बनना था, थाना बनना था, सोलर प्‍लांट लगना था. यही नहीं नीतीश के सात निश्चय भी यहां दम तोड़ते नजर आते हैं. यहां किसी भी व्‍यक्ति से बात करने पर सरकारी योजनाओं की स्‍याह हकीकत सामने आ जाती है. 

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बिहार में चुनावी यात्रा पर निकली दी लल्‍लनटॉप की टीम जब बटिया गांव पहुंची तो यहां के लोगों की दुश्‍वारियों को देख चौंक पड़ी. मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार की गांव-गांव घर-घर पानी की बात यहां बेमानी नजर आई. सोलर पंप के साथ पानी टंकी बनी है लेकिन करीब छह महीने से खराब है. शिकायत भी हुई लेकिन समस्‍या का समाधान नहीं हुआ. चिराग ने यहां डैम बना कर सिंचाई के पानी उपलब्‍ध कराने का सपना दिखाया था जो अब तक सपना ही साबित हुआ है. 

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बीड़ी से दो दिन में 90 रुपये कमाई 

इस गांव के अधिकांश घरों में महिलाएं बीड़ी बनाने का काम करती हैं. फुलवा और फुलवंती देवी ने बताया कि उन्हें एक हजार बीड़ी बनाने के एवज में 90 रुपये मजदूरी मिलती है. इसमें दो दिन का वक्‍त लगता है. गांव पुरुषों में ज्‍यादातर युवा प्रवासी मजदूर हैं जो लॉकडाउन में घर वापस आए थे. अब जाने के लिए पैसे नहीं हैं. बाकी बड़े-बुजुर्ग खेती से थोड़ी बहुत ही आमदनी ही कर पाते हैं. वो भी तब जब बारिश अच्‍छी हो. वरना यहां सिंचाई के साधन न होने की वजह से खेती भी भगवान भरोसे रहती है. 
 

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इलाज कराने के लिए बेचना पड़ा खेत 

गांव के लोगों की दुश्‍वारियों और गरीबी का अंदाजा उनके घरों को देखकर ही लग जाता है. अधिकांश लोगों के घर मिट्टी के हैं. पैसे की इतनी तंगी है कि एक महिला का पैर टूटा तो कर्ज लेकर इलाज कराना पड़ा. बाद में कर्ज चुकाने के लिए खेत बेचना पड़ा. गांव में कोई अस्‍पताल नहीं है. इलाज के लिए सोनवा झांझा तक जाना पड़ता है जो काफी दूर है. किसी को भी यहां प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिला है. 

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न सरकारी राशन और न ही राशन कार्ड 

गांव में गरीबी हद दर्जे की है. इसके बावजूद ज्‍यादातर के पास न राशन कार्ड है ना ही लॉकडाउन के दौरान इन्‍हें मुफ्त राशन मिला था. एक परिवार में 106 वर्षीय बुजुर्ग हैं, जिन्‍हें वृद्धावस्‍था पेंशन नहीं मिलती है. इसी परिवार में एक दिव्‍यांग लड़की भी है जिसे आज तक कोई सरकारी सहायता नहीं मिली. यहां के एक युवक ने बताया कि 10वीं के बाद पढ़ाई सिर्फ इसलिए छोड़ दी क्‍योंकि आगे पढ़ने के लिए रुपये नहीं थे.

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