बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में राजनीतिक दल अपनी-अपनी जीत को लेकर दावा कर रहे हैं, लेकिन हम यहां बात कर रहे हैं उन प्रवासी मजदूरों की जो लॉकडाउन के बाद अपने घर लौट आए हैं. ये प्रवासी मजदूर चुनावी आंकड़ों को इस बार बना या बिगाड़ सकते हैं. आइये देखते हैं कटिहार जिले से आजतक की ग्राउंड रिपोर्ट. क्या कहते हैं ये प्रवासी मजदूर? क्या है उनका चुनावी रुख? (रिपोर्ट - बिपुल राहुल )
बिहार के कटिहार जिले की बात करें, तो यहां का अधिकतर युवा वर्ग दूसरे राज्यों में रहकर मजदूरी करता है. कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए जब लॉकडाउन लगा, तो ये प्रवासी मजदूर अपने घर वापस आ गए.
पहले के चुनाव में ये दूसरे राज्यों में होने की वजह से वोट नहीं कर पाते थे, लेकिन इस बार घर होने की वजह से ये बिहार चुनाव 2020 में वोटिंग करेंगे. आजतक की टीम ने ऐसे ही मतदाताओं से बात की.
कटिहार जिले के रहने वाले उमर फारूक ने बताया कि वे देहरादून में रहते थे. लॉकडाउन के बाद घर वापस आ गए. उमर ने बताया कि जब दूसरे राज्य में फंसे थे, तो सरकार ने हमारे लिए नहीं सोचा. वहां पर ठेला चलाता था. जितनी भी पैसा जमा किया था, वो घर आने में खर्च कर दिया. घर वापस आने के बाद भी रोजगार का संकट है. वहीं जब वोट के बारे में पूछा गया, तो उमर ने कहा कि कोई भी सरकार हो, खाने के लिए नहीं देती है. पेट भरना है, तो खुद ही मेहनत करनी होगी. लॉकडाउन के बाद दूसरे प्रदेशों से वापस आए इन मजदूरों का साफ कहना है कि यदि सरकार हमें बिहार में ही काम दे, तो हम दूसरे प्रदेशों में काम करने के लिए क्यों जाएंगे.
कुरसेला प्रखंड के तीन घड़िया गांव के रहने वाले सतीश कुमार राम ने बताया कि लॉकडाउन के बाद परिवार के साथ दिल्ली में फंस गए थे. हर राज्य की सरकार ने अपने लोगों को घर वापस बुलाने के लिए व्यवस्था की, लेकिन हम बिहार में अपने पैसों से वापस घर आए. उसने कहा कि चुनाव का समय है. वोट मांगने के लिए नेता आ रहे हैं, लेकिन वोट उसी को देंगे, जो बिहार में रोजगार की बात करेगा. सतीश की पत्नी ममता ने कहा कि घर आने के बाद से हमारे पास कोई काम नहीं है. इससे रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है.
कटिहार जिले के रहने वाले मिथुन ने बताया कि राजस्थान के बीकानेर में मजदूरी करते थे. लॉकडाउन के बाद वहां फंस गए. कोरोना काल में काम धंधा बंद होने से भूख से मरने के हालत हो गए. ऐसे में घर जाने के लिए सोचा, लेकिन इतना पैसा भी नहीं था, कि घर पहुंच सकें. कई सौ किलोमीटर पैदल चलकर घर पहुंचे. सरकार ने मदद नहीं की. इस बार वोट देंगे, लेकिन सोच समझकर. वहीं उसकी पत्नी कल्पना का कहना है कि घर में रोटी के लिए आफत है. सरकार ने काम देने का वादा किया था, लेकिन काम नहीं मिला है.