
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक समीकरण बनते और बिगड़ते नजर आ रहे हैं. जीतनराम मांझी महागठबंधन से अलग होकर एनडीए में शामिल हो गए हैं. वहीं, अब एनडीए के सहयोगी एलजेपी भी अपने सियासी भविष्य को लेकर चिंतित नजर आ रही है. ऐसे में एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर सख्त तेवर अख्तियार किए हुए हैं और आगामी चुनाव को लेकर महत्वपूर्ण बैठक सोमवार को करने जा रहे हैं. इस बैठक में एलजेपी यह तय करेगी कि जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ना है या फिर अपनी अलग सियासी राह तलाशना है?
एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान बिहार की नीतीश सरकार को लेकर हमलावर हैं. बैठक से पहले चिराग पासवान ने नीतीश को पत्र लिखकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों से किए गए वादों को पूरा नहीं करने का आरोप लगाया. चिराग ने कहा कि नीतीश कुमार की सरकार अगर गंभीर थी, तो समुदाय के उन सभी लोगों के परिवार के एक सदस्य को नौकरी देनी चाहिए थी, जो उनके 15 साल के शासन के दौरान मारे गए. उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के लोगों के परिजन को सरकारी नौकरी देने का नीतीश का फैसला और कुछ नहीं, बल्कि चुनावी घोषणा है.
एलजेपी नेता चिराग पासवान ने कहा, 'एससी या एसटी समाज का कहना कि इसके पूर्व 3 डिसमिल जमीन देने का वादा भी नीतीश सरकार ने किया था, जो अभी तक पूरा नहीं हुआ. इससे एससी या एसटी समाज को निराशा प्राप्त हुई थी.' उन्होंने कहा कि एससी या एसटी ही नहीं बल्कि किसी वर्ग के व्यक्ति की हत्या न हो, इस दिशा में भी कठोर कदम उठाने की जरूरत है.
बता दें कि जीतन राम मांझी और चिराग पासवान दोनों ही दलित समुदाय से आते हैं. मांझी मुसहर समुदाय से आते हैं तो चिराग दुसाध समुदाय से हैं. बिहार में इन दोनों दलित समुदाय का वोट फीसदी भले ही बराबर हो, लेकिन दुसाध समुदाय राजनीतिक और सामाजिक तौर ज्यादा जागरुक है. ऐसे में जाहिर है कि दोनों ही नेताओं का आधार वोट बैंक एक ही समुदाय है. ऐसे में नीतीश कुमार के पूर्व मुख्यमंत्री और दलित नेता जीतन राम मांझी से हाथ मिलाने के बाद एलजेपी और जेडीयू के रिश्तों में दरार और बढ़ गई है.
बैठक में राजनीतिक भविष्य का फैसला
हालांकि, नीतीश पर निशाना साधने के दौरान चिराग पासवान बीजेपी के प्रति नरम रुख अख्तियार किए हुए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ भी करते हैं. चिराग एक तरह से बीजेपी के साथ तो रहना चाहते हैं, लेकिन जेडीयू के लेकर सहज नहीं है. वहीं, चिराग के बागी तेवर को देखते हुए ही नीतीश ने मांझी को अपने साथ लाने का दांव चला है. इस दांव पेच के बीच अब चिराग पासवान सोमवार को पार्टी नेताओं के साथ अहम बैठक कर रहे हैं, जिसमें वो अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर फैसला करेंगे.
दरअसल, चिराग पासवान के तेवर के बीच सीट शेयरिंग को लेकर दबाव बनाने की राजनीति के तौर पर देखा जा रहा है. 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार एनडीए के बजाय महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़े और एलजेपी बीजेपी के साथ खड़ी थी. लेकिन नीतीश कुमार की वापसी के बाद अब समीकरण बदल गए हैं और मांझी के आने के बाद एनडीए में चार पाटर्नर हो गए हैं. ऐसे में सीट के बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बनती दिख रही है, क्योंकि एलजेपी को 2015 के चुनाव से कम सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही जा रही है.
कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा?
एनडीए अगर 2015 के के महागठबंधन के फार्मूले में चुनाव लड़ती है तो सीटों का बंटवारा कुछ इस तरह से हो सकता है. बीजेपी 101, जेडीयू 101 और एलजेपी 41. हालांकि, इस फार्मूले पर जेडीयू 2020 के चुनाव में राजी नहीं है. जेडीयू हमेशा से चाहती है कि वो सबसे अधिक सीटों पर लड़े यानी 120 सीटों से कम पर समझौता मुश्किल हो सकता है. जेडीयू की शर्तों पर एलजेपी तैयार नहीं है और न ही बीजेपी कम सीटों पर लड़ने को राजी है.
ऐसे में माना जा रहा है कि चिराग अपने पिता के 15 साल पुराने राजनीतिक फॉर्मूले के तौर पर अपने कदम बढ़ा सकते हैं. 2005 के फॉर्मूले के तहत एलजेपी केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा बनी रहे, लेकिन बिहार में उससे अलग होकर चुनाव लड़े. एक तरह से एलजेपी बिहार में जेडीयू के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन बीजेपी के खिलाफ नहीं. चिराग ने भी संकेत दिया है कि जेडीयू के खिलाफ प्रत्याशी उतारने को लेकर मंथन कर रहे हैं.
दरअसल, 2005 में राम विलास पासवान ने कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए का हिस्सा होते हुए भी आरजेडी के खिलाफ चुनाव लड़ी थी, लेकिन कांग्रेस के साथ अपने गठबंधन को बरकरार रखते हुए कांग्रेस के सामने अपने प्रत्याशी नहीं उतारे थे. इसकी वजह से राज्य में किसी को भी बहुमत नहीं मिला जिससे लालू प्रसाद यादव की आरजेडी का 15 साल का शासन बिहार में खत्म हुआ. इसके कुछ महीने के बाद दोबारा चुनाव हुए तो नीतीश कुमार पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफर रहे थे. हालांकि, अब देखना होगा कि चिराग क्या सियासी फैसला लेते हैं.