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बिहार: चंपारण कांग्रेस का वो मजबूत किला, जिसे आपातकाल में भी विपक्ष नहीं भेद सका

कांग्रेस ने सोमवार को बापू की कर्म-भूमि चंपारण से चुनावी अभियान का शंखनाद किया, जिसे पार्टी ने क्रांति महासम्मेलन का नाम दिया है. बिहार के करीब 40-45 विधानसभा क्षेत्र में अगले 20 दिनों का तक कांग्रेस का यह वर्चुअल अभियान चलेगा. कांग्रेस ने चंपारण की धरती से चुनावी बिगुल फूंका है. कांग्रेस का यह ऐसा किला रहा है, जिसे आपातकाल में भी विपक्ष दल भेद नहीं सका था.  

बिहार में कांग्रेस की वर्चुअल रैली बिहार में कांग्रेस की वर्चुअल रैली
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 07 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 2:40 PM IST
  • कांग्रेस का बिहार चुनाव अभियान का आगाज
  • चंपारण कांग्रेस का मजबूत किला हुआ करता था
  • आपातकाल में भी विपक्ष नहीं भेद सका था किला

बिहार की सियासत में कांग्रेस अपनी खोई हुई सियासी जमीन को वापस पाने की कवायद में जुटी है. इसी के मद्देनजर कांग्रेस ने सोमवार को बापू की कर्म-भूमि चंपारण से चुनावी अभियान का शंखनाद किया, जिसे पार्टी ने क्रांति महासम्मेलन का नाम दिया है. बिहार के करीब 40-45 विधानसभा क्षेत्र में अगले 20 दिनों का तक कांग्रेस का यह वर्चुअल अभियान चलेगा. कांग्रेस ने चंपारण की धरती से चुनावी बिगुल फूंका है. कांग्रेस का यह ऐसा किला रहा है, जिसे आपातकाल में भी विपक्ष दल भेद नहीं सका था.  

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इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जेपी आंदोलन ने बिहार नहीं बल्कि देश की राजनीतिक दशा और दिशा को बदलकर रख दिया. साल 1974 के जेपी आंदोलन के बाद बिहार में 1977 में विधानसभा का चुनाव हुआ. इसके पहले केंद्र में कांग्रेस का पतन हो चुका था और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी. इसके बाद बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ. उम्मीद के मुताबिक विधानसभा चुनाव में भी जनता पार्टी की लहर रही और कांग्रेस का सफाया हो गया था. 

बिहार की में 324 सदस्यों वाली विधानसभा में जनता पार्टी के 214 विधायक जीत कर आए. बिहार में पूर्ण बहुमत से जनता पार्टी ने सरकार बनाया था. कांग्रेस के कई दिग्गज नेता चुनाव हार गये, लेकिन चंपारण ऐसा जिला था, जहां विपक्ष की भी दाल नहीं गल सकी थी. चंपारण की 20 विधानसभा सीटों में अधिकतर पर कांग्रेस के ही उम्मीदवार चुनाव जीते. यहां की 20 सीटों में तीन पर जनता पार्टी, दो पर सीपीआई और एक पर सीपीएम की जीत हुई. यहां की बाकी की 14 विधानसभा सीटें कांग्रेस की ही झोली में गई थी. कांग्रेस 1977 के चुनाव में कुल 57 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. 

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चंपारण जिले की चनपटिया सीट पर जनता पार्टी के वीर सिंह, ढाका में सियाराम ठाकुर और हरसिद्धि में युगल किशोर प्रसाद सिंह चुनाव जीते. वहीं, सुगौली में सीपीएम के रामाश्रय सिंह, पिपरा में सीपीआई के तुलसी राम और केसरिया में पीतांबर सिंह चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे. हालांकि, बाकी बिहार में जनता पार्टी की एकतरफा जीत हुई थी. कर्पूरी ठाकुर के सिर मुख्यमंत्री का ताज सजा था. करीब 4 दशक के बाद अब कांग्रेस एक बार फिर से अपने पुराने किले से चुनावी अभियान का आगाज कर सियासी समीकरण साधने की कवायद की है.

तीन दशक से सत्ता का वनवास

बता दें कि 1990 के बाद से कांग्रेस का बिहार में जनाधार लगातार कम हुआ है. तीन दशक से कांग्रेस बिहार में सत्ता का वनवास झेल रही है. इस बार भी कांग्रेस महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है, जिसका नेतृत्व आरजेडी के हाथ में है. कांग्रेस का बिहार में सामाजिक समीकरण भी बिखर गया है. एक दौर में कांग्रेस के पास माने जाने वाले दलित वोटर दूसरी पार्टियों की ओर शिफ्ट होने लगे. सवर्ण खासकर ब्राह्मण मतदाताओं को बीजेपी ने अपनी ओर आकर्षित किया. वहीं, अल्पसंख्यक मतदाता भी पूरी तरह साथ नहीं रह पाए हैं. 

2015 में कांग्रेस ने 27 सीटें जीती थीं

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बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में कांग्रेस ने नीतीश कुमार और लालू यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. कांग्रेस ने 41 सीटों पर अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, जिनमें से 27 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. हालांकि, माना जाता है कि कांग्रेस के इस प्रदर्शन में जेडीयू और आरजेडी के साथ होने का फायदा मिला था. इस बार कांग्रेस का पूरा दारोमदार आरजेडी के सामाजिक मतों के सहारे ही नैया पार लगाने की है. कांग्रेस 2010 में अकेले चुनाव लड़कर अपना हश्र को देख चुकी है. 

 

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