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महागठबंधन से अलग होगी RLSP? उपेंद्र के लिए आसान नहीं होगा 'मांझी' बनना

हिंदुस्‍तानी अवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतनराम मांझी के महागठबंधन से नाता तोड़कर एनडीए के साथ हाथ मिलाने के बाद अब राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा भी अपना अलग रास्ता तलाश रहे हैं. हालांकि, कुशवाहा के मांझी बनने की राह में कई कांटे हैं, जिसके चलते उनके पास सियासी विकल्प ज्यादा नहीं हैं. 

उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 24 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 12:39 PM IST
  • नीतीश से अलग होकर कुशवाहा ने बनाई थी पार्टी
  • एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन के साथ आए
  • महागठबंधन में सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर घमासान

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले तेजस्वी यादव की अगुवाई वाले विपक्षी महागठबंधन में महाभारत थमने का नाम नहीं ले रहा है. हिंदुस्‍तानी अवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतनराम मांझी के महागठबंधन से नाता तोड़कर एनडीए के साथ हाथ मिलाने के बाद अब राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा भी अपना अलग रास्ता तलाश रहे हैं. हालांकि, कुशवाहा के मांझी बनने की राह में कई कांटे हैं, जिसके चलते उनके पास सियासी विकल्प ज्यादा नहीं हैं. 

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महागठबंधन में सीट बंटवारे के मुद्दे पर फैसला नहीं लिए जाने की वजह से उपेंद्र कुशवाहा नाराज हैं. ऐसे में आरजेडी ने बड़ा बयान जारी करते हुए कहा है कि जिसे जाना है, वो जाए और सभी अपने फैसले के लिए स्‍वतंत्र हैं. ऐसे में अब उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन में आर-पार के मूड में दिख रहे हैं. इसपर फैसला के लिए उन्‍होंने पार्टी कार्यकारिणी की आपात बैठक गुरुवार को बुलाई है. आरएलएसपी के प्रधान महासचिव आनंद माधव की मानें तो इस आपात बैठक के बाद पार्टी कोई भी फैसला ले सकती है. 

उपेंद्र कुशवाहा के रिश्ते आरजेडी के साथ लगातार बिगड़ते जा रहे हैं, लेकिन उनके पास राजनीतिक विकल्प भी बहुत ही कम है. कुशवाहा 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन के साथ आए थे. आरएलएसपी ने 9 लोकसभा सीटों पर चुनावी किस्मत आजमाया था, लेकिन एक भी सीट पर जीत नहीं हो सकी थी. वहीं, आरजेडी भी लोकसभा चुनाव में खाता नहीं खोल सकी था. इसके बावजूद तेजस्वी यादव ने उपेंद्र कुशवाहा को राजनीतिक अहमियत नहीं दे रहे हैं. 

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वहीं, एनडीए में भी जीतन राम मांझी की तरह कुशवाहा के लिए राजनीतिक विकल्प बहुत ज्यादा खुले नहीं है. कुशवाहा मोदी सरकार से अलग होने के बाद से लगातार बीजेपी और जेडीयू को लेकर मोर्चा खोले हुए थे और ओबीसी विरोध बताने में जुटे थे. ऐसे में एनडीए में उनकी एंट्री हो यह कहना बहुत ही मुश्किल हैं, लेकिन राजनीति में किसी भी संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है. एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर भी घमासान मचा हुआ है. 

बिहार में जीतनराम मांझी के एंट्री के बाद एनडीए में चार सहयोगी हो गए हैं. एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान लगातार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं. एलजेपी ने तो यहां तक कह दिया है कि जेडीयू के खिलाफ अपने प्रत्याशी भी उतार सकती है. इन सबके बीच उपेंद्र कुशवाहा अगर एनडीए खेमे में आते हैं तो पांच सहयोगी हो जाएंगे, जिसके बाद तो घमासान ओर भी तेज हो सकता है. ऐसे में एनडीए उन्हें साथ लेने में बचेगा.

बता दें कि उपेंद्र कुशवाहा को बीजेपी ने तब साथ लिया था जब नीतीश कुमार एनडीए का साथ छोड़कर चले गए थे. ऐसे में बीजेपी ने उनके जरिए कुशवाहा वोट को साधने के लिए दांव लगाया था और अब जब नीतीश एनडीए खेमे के बिहार में अगुवाई कर रहे हैं. ऐसे में कुशवाहा की कोई खास जरूरत नहीं है, क्योंकि नीतीश खुद ही ओबीसी मतों के साधने के लिए सक्षम हैं. ऐसे में उनके लिए एनडीए में एंट्री की राह आसान नहीं है. 

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बिहार की सियासत में दो गठबंधनों के बीच सियासी लड़ाई सिमटती जा रही हैं. ऐसे में तीसरे मोर्चा इस स्थिति में नहीं है कि किंग या किंगमेकर बन सके. ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा के लिए राजनीतिक विकल्प बहुत ही सीमित है. ऐसे में देखना होगा कि तेजस्वी यादव के खिलाफ मोर्चा खोलने के बाद आरएसएसपी अपने आगे की सियासी भविष्य की राह क्या चुनती है. 

 

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