
बिहार में विधानसभा चुनावों के रोचक किस्सों की भरमार है. इन्हीं में एक किस्सा रामगढ़ विधानसभा सीट से जुड़ा है. ये किस्सा है 1980 का. केंद्र और बिहार में जनता पार्टी की सरकार गिर गई थी. सत्ता से बाहर चल रही कांग्रेस के लिए ये घटना खुशी और अवसर, दोनों का सौगात लिए हुए थी. केंद्र की तरह बिहार में भी उस वक्त मध्यावधि चुनाव की घोषणा हुई. इसमें रामगढ़ सीट पर समाजवादी नेता सच्चिदानंद सिंह दूसरी बार जीत के सपने लिए मैदान में थे. लेकिन उनके ही भाई ने चुनाव मैदान में ताल ठोंक कर सभी समीकरणों को उलट पलट कर रख दिया था.
कांग्रेस से मैदान में आई प्रभावती
1980 के मध्यावधि चुनाव से पूर्व 1977 के विधानसभा चुनाव में सच्चिदानंद सिंह ने रामगढ़ सीट से सीटिंग एमएलए थे. इतना ही नहीं, कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्रित्व वाली सरकार में वह सिंचाई मंत्री भी थे. जनता पार्टी सेकुलर के टिकट पर दोबारा चुनाव का सामना करने वाले सच्चिदानंद सिंह अपनी जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थे. क्योंकि उन्हें खुद अपनी लोकप्रियता का अंदाज था. उनके खिलाफ कांग्रेस ने प्रभावती सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया था.
भाई ने दे दिया था झटका
सच्चिदानंद सिंह के सपनों की उड़ान को उस वक्त धक्का लगा जब उनके अपने ही भाई जगदानंद सिंह ने रामगढ़ सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पर्चा दाखिल कर दिया. जगदानंद के मैदान में उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय के साथ बेहद दिलचस्प हो गया था. अब सभी की नजर रामगढ़ सीट पर थी. हर कोई ये जानने के लिए बेताब था कि क्या सच्चिदानंद अपने सीट की रक्षा कर पाएंगे.
दोनों भाइयों के हाथ आई हार
चुनाव परिणाम चौंकाने वाले थे. तत्कालीन चुनावी विश्लेषक दोनों भाइयों के बीच सीधी लड़ाई मान रहे थे. लेकिन दोनों भाइयों की इस लड़ाई में जीत मिली कांग्रेस की प्रभावती सिंह को. उन्होंने करीब 1500 वोटों से जीत हासिल की. प्रभावती को 15953 मत, सच्चिदानंद सिंह को 14198 मत तथा उनके भाई और निर्दलीय उम्मीदवार जगदानंद को 10 हजार के करीब वोट मिले.
अगली बार जगदानंद पड़े भारी
जानकारों के मुताबिक इस हार के बाद सच्चिदानंद सिंह टूट गए थे. हालांकि जगदानंद का जोश बरकरार था. 1985 के विधानसभा चुनाव में सच्चिदानंद सिंह चुनाव मैदान में नहीं उतरे. जबकि कांग्रेस से प्रभावती सिंह दोबारा मैदान थीं. इस बार लोकदल ने जगदानंद सिंह को उम्मीदवार बनाया. यहां बाजी पलट गई. जगदानंद सिंह बड़े अंतर के साथ विजयी हुए. प्रभावती दूसरे स्थान पर रहीं. इसके बाद जगदानंद सिंह अपनी जबरदस्त लोकप्रियता के चलते रामगढ़ सीट से लगातार छह बार विधायक निर्वाचित हुए.