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बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने पूरी तैयारी से उतरने का ऐलान कर दिया है. 2015 में महज 6 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली एआईएमआईएम ने इस बार के चुनाव में 50 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का मन बनाया है. पार्टी के इस बड़े निर्णय के पीछे किसी की मेहनत है तो वो हैं अख्तरुल ईमान. अख्तरुल ईमान ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के बिहार प्रदेश अध्यक्ष हैं.
अख्तरुल के इस बयान ने उनको कर दिया था फेमस
आपको याद दिला दें कि अख्तरुल ईमान ने फरवरी 2013 में स्कूली बच्चों द्वारा सूर्य नमस्कार किए जाने का विरोध कर सुर्खियां बटोरी थीं. अख्तरुल ने कहा था कि सरकार राज्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा को लागू करने की कोशिश कर रही है.
इसके अलावा नवंबर 2019 में जब अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया था तो अख्तरुल की टिप्पणी भी खबरों में आई थी. अख्तरुल ईमान ने कहा था कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दुःखी हैं. उन्होंने कहा था कि मस्जिद के हक में फैसला नहीं आने से वह दुखी हैं. एआईएमआईएम नेता ने कहा था कि मस्जिद पक्ष के लोगों के उम्मीदों के खिलाफ फैसला हुआ. इस फैसले से मुस्लिमों के विश्वास में कमी आ रही है कि सही और उचित इंसाफ नहीं मिला.
अख्तरुल का राजनीतिक जीवन
अख्तरुल ईमान बिहार के किशनगंज के कोचाधामन पुलिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले एक गांव के रहने वाले हैं. अख्तरुल के पिता का नाम ए राशिद है. अख्तरुल ने 1990 में मगध यूनिवर्सिटी से एमए की परीक्षा पास की थी.
ईमान के मुताबिक उन्होंने छात्र जीवन के समय ही राजनीति में प्रवेश किया था. उनके मुताबिक 1985 में उन्होंने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ एक अभियान शुरू किया था जिसमें उन्होंने पुलिस और प्रशासन के चोरों से मिले होने के आरोप लगाए थे. 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में अख्तरुल ने कोचाधामन से राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और विजयी हुए. जिसके बाद उन्होंने 2010 के चुनावों में भी अपनी सीट बरकरार रखी.
2014 में लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए ईमान ने आरजेडी छोड़ दी और जेडीयू में शामिल हो गए. 2014 के आम चुनाव में किशनगंज सीट से चुनाव लड़ने के लिए उन्हें उनकी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया था. हालांकि चुनाव से 10 दिन पहले उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार के पक्ष में यह कहते हुए अपनी दावेदारी वापस ले ली कि वह मुस्लिम वोटों को विभाजित नहीं करना चाहते क्योंकि उनका लक्ष्य बीजेपी को हराना था. ईमान का यह फैसला नीतीश कुमार के लिए किसी झटके से कम नहीं था.
पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अगस्त 2015 में अख्तरुल ईमान ने जेडीयू छोड़ ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ज्वाइन कर ली. जिसके बाद नवंबर 2015 में ईमान को 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में कोचाधामन सीट से पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया. उस चुनाव की रैलियों में पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उन्हें शेर-ए-बिहार (बिहार का टाइगर) कहा और बिहार के असदुद्दीन ओवैसी (पार्टी के राष्ट्रीय प्रमुख) के रूप में पेश किया गया क्योंकि वो बिहार में प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका में भी थे.
2015 के विधानसभा चुनावों में अख्तरुल ने कहा था कि अगर पासवान और यादव समुदाय के लोगों की अपनी राजनीतिक पार्टियां हो सकती हैं तो मुसलमानों की भी अपनी पार्टी होनी चाहिए. हालांकि कड़ी मेहनत के बाद भी वह जेडीयू उम्मीदवार मुजाहिद आलम से चुनाव हार गए थे. 2019 में ईमान को किशनगंज सीट से एआईएमआईएम का उम्मीदवार बनाया गया था. लेकिन उस चुनाव में भी उन्हें हार का ही मुंह देखना पड़ा था.
ईमान के इस कदम से हुई तीसरे मोर्च की चर्चा
बिहार में एआईएमआईएम और पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेन्द्र प्रसाद यादव की पार्टी समाजवादी जनतादल के बीच पिछले महीने गठबंधन हुआ है. गठबंधन को यूनाइटेड डेमोक्रेटिक सेक्युलर एलायंस (यूडीएसए) का नाम दिया गया है. इस गठबंधन के सामने आने के बाद बिहार में 'तीसरे मोर्चे' की भी चर्चा होने लगी है. उम्मीद की जा रही है राज्य के दो बड़े गठबंधनों एनडीए और महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर नाराज छोटे दल भी इस गठबंधन में शामिल हो सकते हैं.
इस वजह से ओवैसी खेल रहे हैं बिहार में दांव
बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं. इन इलाकों में मुस्लिम आबादी 20 से 40 प्रतिशत या इससे भी अधिक है. बिहार की 11 सीटें हैं जहां 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता है और 7 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा हैं. इसके अलावा 29 विधानसभा सीटों पर 20 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता हैं. मौजूदा समय में बिहार में 24 मुस्लिम विधायक हैं.
सीमांचल की सीटों पर है मुख्य फोकस
यहां आपको यह भी बता दें कि बिहार में ओवैसी की पार्टी पिछले साल उपचुनाव में खाता खोलने में कामयाब रही थी. लोकसभा चुनाव के बाद बिहार के किशनगंज सीट पर हुए चुनाव में उनकी पार्टी के उम्मीदवार कमरुल होदा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए जीत दर्ज की थी. एआईएमआईएम का बिहार के सीमांचल इलाके के मुस्लिम वोटरों के बीच काफी दबदबा है. सीमांचल से बाहर न तो पार्टी को कोई जनाधार है और न ही पार्टी का संगठन नजर आता है.
पिछले पांच सालों में ओवैसी ने सीमांचल में अच्छा खासा जनाधार बनाया है, जिसका नतीजा 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान किशनगंज सीट पर दिखा था. बता दें कि ओवैसी की पार्टी ने 2015 में पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव में छह उम्मीदवार उतार थे और सभी हार गए थे, लेकिन करीब 96 हजार वोट हासिल करने में कामयाब रही थी. कोचा धामन सीट पर एआईएमआईए 38 हजार से ज्यादा वोट हासिल कर दूसरे नंबर रही थी. इसीलिए अब ओवैसी की ज्यादा उम्मीदें इसी सीमांचल इलाके की विधानसभा सीटों से हैं.