
एलजेपी के सांसद और मुखिया रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान का नाम बिहार के सियासी पटल पर तेजी से उभरते राजनेताओं में शामिल है. एक युवा नेता के रूप में, एक संगठनकर्ता के रूप में और मौके को भांपकर तेजी से फैसले लेने की अपनी क्षमता के बल पर बहुत कम समय में चिराग पासवान ने राजनीतिक गलियारे में अपनी जगह बनाई है. बिहारी अस्मिता को अपनी पहचान बनाने के लिए चिराग ने अपने ट्विटर हैंडल का नाम ही 'युवा बिहारी चिराग पासवान' रखा हुआ है.
बिहार में सियासी रूप से तेजी से अपना कद बढ़ा रहे चिराग पासवान के सफर पर आइए डालते हैं एक नजर. चिराग पासवान की सबसे बड़ी पहचान है उनका लोक जनशक्ति पार्टी यानी एलजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का पुत्र होना. लेकिन केवल इतने भर से चिराग पासवान के सियासत को आंका नहीं जा सकता. आज के वक्त में चिराग पासवान बिहार की सियासत के प्रभावशाली शख्सियतों में शामिल हैं और न केवल पार्टी बल्कि एनडीए गठबंधन में भी अच्छी-खासी सक्रियता दिखाते हैं.
चिराग पासवान बिहार में एक एनजीओ भी चलाते हैं जिसका नाम 'चिराग पासवान फाउंडेशन' है. यह एनजीओ बिहार के गरीब और वंचित बच्चों को शिक्षा दिलाने के अलावा राज्य के बेरोजगार युवकों को नौकरी दिलाने का काम भी करती है.
बचपन में शीशे के सामने किया करते थे हीरो बनने की प्रेक्टिस
आपको बता दें कि चिराग पासवान सिनेमा की ग्लैमरस दुनिया से राजनीति में आए हैं. 31 अक्टूबर 1982 को उनका जन्म हुआ था. कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करने वाले चिराग पासवान एक फैशन डिजायनर भी हैं. लेकिन उन्होंने अभिनय की दुनिया में भी अपना हाथ आजमाया. कहते हैं कि चिराग को बचपन से ही बॉलीवुड से जुड़ाव रहा. वो अक्सर फिल्में देखते ही पाए जाते थे. और शीशे के सामने फिल्मी संवाद बोल-बोलकर अभिनय की प्रेक्टिस किया करते थे.
चिराग पासवान ने राजनीति में आने से पहले फिल्म की दुनिया में अपनी किस्मत आजमाई थी. 2011 में आई फिल्म 'मिले ना मिले हम' से चिराग पासवान ने अपने फिल्मी करियर का आगाज किया था. इस फिल्म में चिराग के साथ कंगना रनौत, नीरू बाजवा और सागरिका घटगे ने काम किया था. इस फिल्म के लिए चिराग का नामांकन 'कल के सुपर स्टार' कैटेगरी में स्टारडस्ट अवार्ड के लिए हुआ था. फिल्म चल नहीं पाई और चिराग पासवान के फिल्मी करियर का अंत भी इसी फिल्म के साथ हो गया.
चिराग की मेहनत से बढ़ता गया उनकी लोकप्रियता का ग्राफ
फिल्मी करियर फ्लॉप हुआ तो 2012 में चिराग पासवान ने राजनीति का रुख किया. यहां चिराग को ज्यादा मुश्किलें नहीं आईं. पिता रामविलास पासवान जमे-जमाए राजनेता हैं और चिराग पासवान को लांचिंग पैड आसानी से मिला गया. आज चिराग पासवान बिहार के जमुई लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद हैं. बता दें कि सांसद के तौर पर यह उनका दूसरा कार्यकाल है. 2014 के चुनावों में भी चिराग जमुई सीट से सांसद चुने गए थे. 2019 के चुनावों में भी जमुई से सांसद बने. यही नहीं इस बार चिराग की जीत का आंकड़ा 241049 वोटों का रहा. जो उनकी लोकप्रियता साबित करने के लिए एक दस्तावेज से कम नहीं है.
मुश्किल दौर में चिराग ने थामी एलजेपी की बागडोर
जब चिराग ने राजनीति में कदम रखा तो रामविलास पासवान के लिए मुश्किल दौर था. लोकसभा चुनाव में पार्टी का खाता तक नहीं खुला था और खुद रामविलास पासवान जैसे-तैसे राज्यसभा तक पहुंचने का जुगाड़ बना पाए थे. राज्य विधानसभा में पार्टी की सदस्य संख्या कोई प्रभाव छोड़ने लायक नहीं थी. चिराग पासवान ने इस मुश्किल घड़ी में राजनीति का दामन थामा और पार्टी के लिए नए सिरे से संभावनाएं तलाशने का काम शुरू किया.
एलजेपी उन दिनों तेजी से अलोकप्रिय हो रही यूपीए के खेमे में दिख रही थी और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर रामविलास पासवान के लिए बीजेपी के खेमे में जाना मुश्किल लग रहा था. खासकर जब बीजेपी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आगे बढ़ने का फैसला कर चुकी थी. चिराग पासवान ने यहीं से पार्टी की सियासत का रुख और राजनीतिक किस्मत दोनों को बदलने वाला फैसला किया.
चिराग के इस फैसले ने बदल दी एलजेपी की तकदीर
जब नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी के खिलाफ बीजेपी से अलग हो गए तो बीजेपी को बिहार में नए साथी की तलाश थी. 2014 के आम चुनावों के लिए ऐसे वक्त में एलजेपी बीजेपी के साथ खड़ी हुई. माना गया कि रामविलास पासवान और एलजेपी के इस फैसले के पीछे पूरी तरह से चिराग पासवान की रणनीति काम कर रही थी. चिराग पासवान के इस फैसले ने सबकुछ बदल दिया. यहां आपको बता दें कि रामविलास ने 2002 में हुए गुजरात दंगों के बाद बीजेपी से नाता तोड़ लिया था. ऐसे में 12 सालों बाद उन्हें वापस बीजेपी के साथ खड़ा करने में चिराग पासवान को बहुत मेहनत करनी पड़ी. ये फैसला कारगर भी रहा 2009 के चुनावों में एक भी सीट न जीतने वाली एलजेपी ने 2014 में काफी बेहतर परिणाम देखे.
बीजेपी को 2014 के आम चुनावों में स्पष्ट बहुमत मिला. लोक जनशक्ति पार्टी के 6 सांसद चुनकर लोकसभा पहुंच गए जबकि पार्टी ने 7 सीटों पर चुनाव लड़ा था. खुद चिराग पासवान ने जमुई में आरजेडी के सुधांशु शेखर भास्कर को 85 हजार वोटों से हराकर लोकसभा की सदस्यता हासिल की और 32 साल की उम्र में सांसद के रूप में नई पारी शुरू की. सियासत और रणनीति में आए इस बदलाव ने एलजेपी को केंद्र की सरकार में सहयोगी बनाया. और रामविलास पासवान एक बार फिर केंद्रीय मंत्री बने. 2019 के आम चुनावों में भी एलजेपी ने एनडीए के साथ चुनाव ल़ड़ा और 6 सांसद लोकसभा पहुंचे जिसमें चिराग और उनके पिता रामविलास भी शामिल थे.
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में एलजेपी 243 में से 42 सीटों पर लड़ी थी लेकिन महागठबंधन की लहर में उसके सिर्फ दो विधायक ही विधानसभा पहुंचे. अब एक बार फिर राज्य में चुनाव आसन्न हैं. ऐसे में एनडीए में सीट बंटवारे का मसला हो या पार्टी के टिकट बंटवारे का फैसला हर जगह चिराग पासवान प्रमुखता से नजर आ रहे हैं और ये राजनीति में उनके बढ़ते कद को दर्शाता है.